राजेन्द्र शर्मा झेरलीवाला, वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक चिंतक
भारतीय राजनीति जाति व धर्म के इर्द-गिर्द ही घूमती रहती है । ज्यादातर राजनीतिक दल इसी योग्यता को ध्यान में रखकर राजनीतिक नियुक्तियां करते हैं । इसके बाद दूसरी योग्यता होती है बगावती तैवर दिखाने के बाद किसी समझौते के तहत पार्टी में निष्ठा व्यक्त करना। उन्हीं दो योग्यता ही रही कि राजस्थान में मदन राठौड़ को भाजपा अध्यक्ष पद मिला । विदित हो विगत चुनावों में मदन राठौड़ ने सुमेरपुर विधानसभा से भाजपा का टिकट मांगा था लेकिन टिकट न मिलने के कारण उनकी पार्टी के प्रति निष्ठा व समर्पण भाव काफूर हो गया और उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप मे नामांकन कर दिया । सूत्रों की मानें तो उस समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मदन राठोड़ से बात की और समझौते के तहत उन्होंने अपनी उम्मीदवारी वापिस ले ली । राजनितिक विश्लेषकों का मानना है कि उनके बागी तेवर और फिर समझौते के तहत शांत होना व तेली घांची ओबीसी समाज से आना ही उनको राज्यसभा में भेजा गया । मदन राठोड़ को अध्यक्ष पद मिलने का एक कारण सामाजिक समीकरणों को भी ध्यान में रखा गया है । तेली घांची मूल ओबीसी में आते हैं । राजस्थान में ओबीसी वोटरों को लुभाने के लिए भी उनको यह पद दिया गया ।
ब्राह्मण जाति के भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद यह कयास लगाए जाने लगे कि जाट, गूर्जर या राजपूत जाति के नेता को राजस्थान की बागडोर सौपी जाएगी । लेकिन जिस तरह स्थापित नेताओ को दरकिनार कर भजनलाल शर्मा कौ मुख्यमंत्री बनाया गया उसी परम्परा का निर्वहन करते हुए मदन राठौड़ को अध्यक्ष पद मिला । यदि यह दोनों प्रयोग सफल होते हैं तो स्थापित नेताओ का राजनीतिक भविष्य अंधकारमय हो जाएगा अन्यथा शीर्ष नेतृत्व को दुबारा स्थापित नेताओ की शरण में जाना होगा । ओबीसी वर्ग के नेता को अध्यक्ष पद देना लोकसभा में भाजपा की करारी हार होना भी है । मदन राठौड़ के सामने महत्वपूर्ण चुनौती प्रदेश में होने वाले उपचुनाव भी है । इसके साथ ही प्रदेश में अपनी नई का गठन भी उनकी प्राथमिकता होगी । भाजपा में गुटबाजी का जो दौर सतीश पूनीया के कार्यकाल में था उससे भाजपा अभी उबर नहीं पाई है । इस गुटबाजी से पार पाना भी उनके लिए चुनौतीपूर्ण काम होगा ।
यदि इस बदलाव को गृह जिले झुंझुनूं के परिप्रेक्ष्य में देखे तो झुंझुनूं विधानसभा में भी उपचुनाव होने है । बागी नेताओं का रोग विधानसभा चुनावों में हार का मुख्य कारण रहा है । पिछले दो विधानसभा चुनावो में भाजपा बागी नेताओं पर ही भरोसा जताया था लेकिन भाजपा का इन बागियों पर भरोसा जताना झुंझुनूं के आवाम को रास नहीं आया और भाजपा को हार का सामना करना पड़ा । उन बागियों पर भरोसे का कारण रहा कि भाजपा का परम्परागत वोट भाजपा से खिसक गये । इन बागियों को मदन राठौड़ से सीख लेनी चाहिए कि बागी न होने का इनाम राज्यसभा में सांसद और अब भाजपा अध्यक्ष के रूप में मिला ।
राजेन्द्र शर्मा झेरलीवाला, वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक चिंतक