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गलता तीर्थ की गद्दी को लेकर विवाद फिर चर्चाओं में:गलता तीर्थ की रामानंद संप्रदाय की गद्दी को रामोदराचार्य ने वर्षों पहले किया था रामानुज घोषित


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गलता तीर्थ की गद्दी को लेकर विवाद फिर चर्चाओं में:गलता तीर्थ की रामानंद संप्रदाय की गद्दी को रामोदराचार्य ने वर्षों पहले किया था रामानुज घोषित

गलता तीर्थ की गद्दी को लेकर विवाद फिर चर्चाओं में:गलता तीर्थ की रामानंद संप्रदाय की गद्दी को रामोदराचार्य ने वर्षों पहले किया था रामानुज घोषित

जयपुर : उत्तर भारत की प्रधान पीठ गलता तीर्थ की गद्दी को लेकर 16 साल पहले उपजा विवाद फिर चर्चाओं में आ गया है। सोमवार को हाईकोर्ट के फैसले के बाद गलता पीठ के अवधेशाचार्य ने फैसले पर अनभिज्ञता जताते कहा कि उन्हें पता नहीं है कि फैसला क्या आया है, लेकिन जो भी है, उस पर विधिक सलाह लेंगे। अवधेशाचार्य बोले-मंहत कभी नियुक्त नहीं होता।

ट्रस्ट की संपत्ति का बेचान नहीं किया। गलता पीठ को रामानंद संप्रदाय की बताने वाले रेवासाधाम पीठाधीश्वर राघवाचार्य ने कहा कि ठाकुरजी नाबालिग हैं, उन पर सरकार का अधिकार है, किसी निजी ट्रस्ट का नहीं हो सकता। कोर्ट का फैसला इसी पर आया है। उन्होंने कहा कि मंगलवार को गलता गेट स्थित कनक बिहारी मंदिर में संत समाज एकजुट होगा। इसके लिए सुबह 11 बजे कार्यक्रम रखा गया है। संतों की प्रसादी होगी और चर्चा की जाएगी।

महंत का पद उत्तराधिकारी व वंशानुगत प्रकृति का नहीं: हाईकोर्ट ने कहा कि ठिकाना गलताजी के महंत का पद उत्तराधिकार वंशानुगत प्रकृति का नहीं है। महंत का चयन व नियुक्ति करने की शक्ति राज्य के पास ही है। गलता की संपत्तियों का स्वामित्व गलता की मूर्ति में ही निहित है।

महंत मूर्ति के हितों को पूरा करने के लिए है जो कि एक सतत नाबालिग बनी हुई है। मूर्ति ही संपत्तियों की पूर्ण व अंतिम स्वामी है। महंत तो सिर्फ प्रबंधक है। राज्य मूर्ति व महंत के बीच संरक्षक की भूमिका निभाता है। उसे सुनिश्चित करना हाेता है कि महंत अपने अधिकार से ज्यादा कार्य नहीं करे।

जिस त्रिवेणी पीठ ने पिता रामोदराचार्य को गद्दी पर बैठाया, उसी ने बेटे अवधेशाचार्य को हटाने की मुहिम छेड़ी

रामोदराचार्य के निधन के बाद उनके पुत्र अवधेशाचार्य ने करीब 16 साल पहले गलता की गद्दी संभाली। इसी के साथ विवाद खड़ा हो गया। त्रिवेणीधाम के पीठाधीश्वर नारायणदास महाराज और रेवासाधाम पीठाधीश्वर राघवाचार्य ने उन्हें हटाने की मुहिम छेड़ दी। वजह यह थी कि यह पीठ रामानंद संप्रदाय यानी विरक्त (ब्रह्मचर्य) के लिए थी, जबकि अवधेशाचार्य गृहस्थ हैं। हालांकि अवधेशाचार्य इसे रामानुज संप्रदाय की गद्दी ही बताते हैं।

दूसरी तरफ राघवाचार्य का कहना है कि गलता ठिकाने का मंदिर है, जिस पर महंत की नियुक्ति वर्ष 1943 में स्टेट द्वारा की गई थी। इसके लिए बाकायदा विज्ञप्ति जारी की गई थी। उस समय रामोदराचार्य विरक्त थे और गलता गद्दी रामानंद संप्रदाय की थी, जिस पर त्रिवेणीधाम के तत्कालीन गुरुजी भगवानदास महाराज की सिफारिश पर रामोदराचार्य को बैठाया गया।

बाद में रामोदराचार्य ने कोर्ट की अनुमति से विवाह कर लिया। साथ ही उन्होंने इस गद्दी को रामानुज संप्रदाय की घोषित कर दिया, जो संभव नहीं था। इसकी शिकायत हमने उदयपुर जाकर देवस्थान निदेशालय में की थी, लेकिन राजनीतिक दबाव के चलते निर्णय नहीं हो पाया और मामला कोर्ट में चला गया। अब फैसला आया है।

गलता की प्रॉपर्टी हड़पने के लिए बनाया पारिवारिक ट्रस्ट : शर्मा

जयपुर शहर हिंदू विकास समिति के पूर्व न्यायाधीश जय दयाल शर्मा ने बताया कि सारे दस्तावेज कोर्ट में पेश किए हैं, जिसमें रामानंद संप्रदाय के चिह्न और स्टेट से पत्राचार शामिल हैं। उसमें रामानंद संप्रदाय होने के सबूत थे, लेकिन बाद में रामोदराचार्य के परिवार ने खुद को रामानुज संप्रदाय का घोषित कर दिया, क्योंकि रामानंद संप्रदाय की गद्दी विरक्त की है और रामानुज संप्रदाय को विवाह करने की छूट है।

शर्मा का कहना है कि वर्ष 1943 में रामोदराचार्य का एक लेख अखबार में छपा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि रामानंद संप्रदाय का संत अगर विवाह कर ले तो उसे रामानंद की गद्दी से तुरंत हटा देना चाहिए। उस लेख पर बाकायदा गलता की मुहर भी लगी है। उसे भी कोर्ट में पेश किया है। अवधेशाचार्य के परिवार ने यह सब गलता की प्रॉपर्टी हड़पने के लिहाज से किया और पारिवारिक ट्रस्ट बना लिया।

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