रोत का दावा-अगले 10 साल में मिल जाएगा ‘भील प्रदेश’:सरकार कह चुकी- हम प्रस्ताव नहीं भेजेंगे, एक्सपट्र्स बोले- नया राज्य बनने की राहें मुश्किल
रोत का दावा-अगले 10 साल में मिल जाएगा 'भील प्रदेश':सरकार कह चुकी- हम प्रस्ताव नहीं भेजेंगे, एक्सपट्र्स बोले- नया राज्य बनने की राहें मुश्किल

बांसवाड़ा : राजस्थान की धरती से देश के 4 राज्यों के 49 जिले मिलाकर ‘भील प्रदेश’ बनाने की मांग जोर पकड़ने लगी है। हाल ही में मानगढ़ धाम (बांसवाड़ा) में आदिवासी नेताओं ने भीड़ इकट्ठी कर बड़ी रैली की। यह वही जगह है, जहां करीब 110 साल पहले ‘भील प्रदेश’ के आंदोलन की नींव रखी गई थी।
इस आंदोलन को लीड कर रही भारतीय आदिवासी पार्टी (BAP) के सांसद (डूंगरपुर-बांसवाड़ा) राजकुमार रोत ने दावा किया है कि 10 साल में ‘भील प्रदेश’ उन्हें मिल जाएगा। बीएपी के इस एजेंडे पर सरकार का कहना है जाति के आधार पर नया राज्य नहीं बनाया जा सकता।
बड़ा सवाल यही है कि जो मांग अब तक पूरी नहीं हुई, क्या 10 साल में संभव होगी? यह आंदोलन आगे कितना जोर पकड़ेगा? क्या ताकत और क्या कमजोरी है? एक्सपट्र्स का क्या मानना है? ऐसे ही सवालों के जवाब पढ़िए इस रिपोर्ट में….

हमें 10 सालों में हमारा नया प्रदेश मिल जाएगा : राजकुमार रोत
आदिवासी समाज की मांग है कि राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात एवं मध्य प्रदेश के 49 जिलों को मिलाकर नया राज्य ‘भील प्रदेश’ बनाया जाए। इसमें राजस्थान के पुराने 33 जिलों में से 12 जिलों को शामिल किया जाए। भील प्रदेश का एजेंडा लेकर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में जीत से सियासत में एंट्री करने वाली बीएपी के सांसद राजकुमार रोत से भास्कर ने इस मुद्दे पर सवाल किए…
भास्कर : ‘भील प्रदेश’ की मांग को लेकर क्या तैयारियां हैं?
रोत : हमारी आइडियोलॉजी को पूरे समाज के के दिलों में जगाने का काम किया जाएगा। वास्तविकता को समझाया जाएगा कि नया प्रदेश क्यों बनना चाहिए। पूरा इतिहास बताएंगे। यह भी बताया जाएगा कि नया प्रदेश बनने से कितना लाभ मिलेगा।
भास्कर : क्या ये मुद्दा आंदोलन का रूप लेगा?
रोत : हमने पूरी योजना बनाई हुई है। हमारे पास आंदोलन तेज करने के लिए भी पूरी प्लानिंग है। राजनीतिक रूप से ये मुद्दा बड़े आंदोलन का रूप लेगा। विधानसभा में ज्यादा से ज्यादा ये मांग उठाई जाएगी। सड़क पर भी उतरने की नौबत आई, तो समाज पीछे नहीं हटेगा।
भास्कर : एमपी और गुजरात को लेकर क्या सोचा है, क्या प्रभाव देखने को मिलेगा?
रोत : एमपी और गुजरात में विधानसभा चुनाव होने हैं। यह मुद्दा वहां भी गूंजेगा। राजस्थान के जैसे दोनों राज्यों में भी हमारा अच्छा परफॉर्मेंस रहेगा। उसी हिसाब से तैयारियां की जा रही हैं।

भास्कर : क्या लगता है, आपकी मांग को पूरा होने में कितना समय लगेगा?
रोत : यदि राजस्थान के साथ एमपी और गुजरात में भी हमारा चुनावी प्रदर्शन बेहतर रहता है, तो हो सकता है कि आने वाले 10 सालों में ही हमें हमारा नया प्रदेश मिल जाए।
भास्कर : झारखंड, छत्तीसगढ़ जैसे राज्य विकास के लिए पहले से संघर्ष कर रहे हैं, फिर आदिवासी समाज के लिए नया राज्य बनाना क्या सही है?
रोत : स्वाभाविक है कि जब नया राज्य बनता है तो विकास में समय तो लगता है। नया स्टेट बनाएंगे तो बनने के बाद 10-15 साल तो संघर्ष करना ही पड़ेगा। संघर्ष तो है, लेकिन आने वाले समय में इसका लाभ मिलेगा और दिखाई भी देगा। मांग के अनुसार राज्य मिल जाता है, तो लोग सिक्योर फील करते हैं। भले ही कुछ राज्य विकास के मामले में आज पीछे दिख रहे हैं, लेकिन आने वाले समय में सब अच्छा दिखेगा।

सरकार कह चुकी – जाति आधार पर नहीं बना सकते राज्य, आदिवासी परिवार बोला- हमें कोई रोक नहीं सकता
नया राज्य बनाने की मांग पर जनजाति मंत्री बाबूलाल खराड़ी विधानसभा में भी अपना रुख स्पष्ट कर चुके हैं। उन्होंने कहा था कि जाति के आधार पर राज्य नहीं बन सकता।
भास्कर ने कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं से बात की, लेकिन उन्होंने ऑन रिकॉर्ड कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि यह राजस्थान ही नहीं महाराष्ट्र, गुजरात और एमपी का भी मुद्दा है। इसलिए हम इस मुद्दे पर आलाकमान के रुख का इंतजार कर रहे हैं।
इधर, आंदोलन की अगुवाई कर रहे आदिवासी परिवार के संस्थापक भंवरलाल परमार ने भास्कर से कहा कि सौ-सवा सौ साल पहले हमारे पुरखों ने आंदोलन शुरू कर दिया था। तब 1500 लोगों को मार दिया गया। उनका क्या कसूर था? अब हमने फिर आंदोलन शुरू किया है।

आंदोलन को लेकर आदिवासी समाज की क्या ताकत और क्या कमजोरी?
आदिवासी भील समुदाय की वर्तमान संख्या सवा करोड़ से अधिक बताई जाती है। समाज के लोग राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में फैले हुए हैं। चार राज्यों के लगभग 39 से 43 जनजाति बहुल जिलों में यह आबादी निवास करती है। आंदोलन किस दिशा में आगे जाएगा उससे पहले आदिवासी समाज की ताकत और कमजोरी को समझना जरूरी है…
ताकत : विधायकों की संख्या 3 हुई, एक सांसद भी बना, उपचुनाव में बढ़ सकता है एक और विधायक
एक्सपर्ट का मानना है कि राजस्थान के साथ ये आंदोलन एमपी, गुजरात और महाराष्ट्र में तेज होगा। इसका कारण है युवाओं का साथ और युवा नेतृत्व। राजस्थान विधानसभा में वर्तमान में BAP से तीन युवा विधायक हैं और तीनों ही सदन में ‘भील प्रदेश’ की मांग उठा रहे हैं।
विधानसभा चुनाव, 2018 में पहली बार आदिवासी समुदाय से 2 विधायक राजकुमार रोत चौरासी (बांसवाड़ा) और सागवाड़ा (डूंगरपुर) सीट से रामप्रसाद भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) के टिकट पर जीतकर राजस्थान विधानसभा में पहुंचे।

राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 से पहले राजकुमार रोत ने भारतीय आदिवासी पार्टी (BAP) का गठन किया और तीन सीटें (चौरासी, आसपुर व धरियावद) जिताकर चौंका दिया। अब पार्टी का 2018 के मुकाबले एक विधायक और बढ़ गया। इसके बाद राजकुमार रोत ने लोकसभा चुनाव में ताल ठोकी और सांसद बन गए। अब उनकी जगह चौरासी विधानसभा सीट खाली हो गई है। कांग्रेस छोड़कर बीजेपी से सांसदी लड़े महेंद्र जीत सिंह मालवीय बागीदौरा सीट गंवा बैठे। इस सीट पर बीएपी ने कब्जा जमा लिया है।
अब इस क्षेत्र में चौरासी सीट पर उपचुनाव होना है। समीकरण को देखते हुए मजबूत दावा BAP का बना हुआ है। कांग्रेस या बीजेपी का यहां से जीतना काफी मुश्किल लग रहा है। ऐसे में BAP विधायकों की संख्या और बढ़ सकती है।
कमजोरी : सभी समाजों का साथ नहीं, सर्वमान्य नेता की कमी
एक्सपट्र्स का कहना है कि समाज के युवाओं और युवा नेताओं का साथ भरपूर है। फिलहाल जयपाल सिंह मुंडा (झारखंड आंदोलन के सर्वोच्च नेता) जैसा कोई नेता नहीं है, जिसकी स्वीकार्यता समाज में भी हो और समाज के बाहर भी।
समाज में ऐसे नेताओं की कमी है, जिसका कोई राजनीतिक दर्शन हो और जो निर्विवाद हो। भावनात्मक तौर पर आंदोलन को आगे ले जाए और सभी समाजों का समर्थन हासिल कर सके। समाज को यदि ऐसा नेता मिल गया, जिसकी बात या आह्वान सरकारें नजर अंदाज नहीं कर पाएं, तो नए राज्य की राह की कुछ मुश्किलें हल हो सकती हैं।

आखिर कहां से पहचानी इस समाज ने अपनी सियासी ताकत
2018 के विधानसभा चुनाव से पहले डूंगरपुर-बांसवाड़ा में युवाओं के बीच ‘भील प्रदेश’ को लेकर अच्छा खासा मुद्दा बना और छात्र राजनीति पर इसका असर दिखाई दिया। 2016 में छात्रसंघ चुनावों में बांसवाड़ा और डूंगरपुर में एनएसयूआई और एबीवीपी को साफ करते हुए, ‘भील प्रदेश’ का समर्थन करने वाले छात्र संगठन भील प्रदेश विद्यार्थी मोर्चा (BPVM) के 4 कॉलेजों में अध्यक्ष बने। वर्तमान BAP सांसद राजकुमार रोत छात्रसंघ राजनीति की ही देन हैं।
राजकुमार रोत BPVM से छात्र संघ चुनाव जीत कर डूंगरपुर कॉलेज के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वहीं, 2013 में रोत एनएसयूआई से स्टूडेंट इलेक्शन में प्रेसिडेंट रहे थे। बाद में वे BPVM से जुड़ गए।
इधर, 2023 के राजस्थान विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अगस्त, 2022 में हुए छात्र संघ चुनाव में BPVM ने बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, डूंगरपुर में एबीवीपी और एनएसयूआई का सूपड़ा साफ कर दिया था। BPVM ने छात्र संघ चुनाव में बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, डूंगरपुर में एबीवीपी और एनएसयूआई को हरा कर 21 कॉलेज में जीत दर्ज की थी।

जब बीजेपी-कांग्रेस को करना पड़ा गठबंधन
BAP के नेता पहले भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) से चुनाव लड़ते थे। गौरतलब है कि 1977-84 के दौरान दाहोद (गुजरात) से लोकसभा सांसद रहे सोमजी भाई डामोर ने ‘भील प्रदेश’ का अलग नक्शा दिया था। इसी मांग को लेकर 2013 में जांबूखंड पार्टी और फिर 2017 में बीटीपी का गठन हुआ था।
डूंगरपुर जिला परिषद के चुनाव, 2020 में BTP (अब BAP) सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी। बहुमत से केवल एक सीट कम रही थी। तब डूंगरपुर जिला परिषद में बहुमत के लिए 14 सीटें चाहिए थीं। BTP से समर्थित 13 निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी। बीजेपी को 8 सीटें और कांग्रेस को 6 सीटें मिली थीं।
हर चुनाव में धुर-विरोधी रहने वाली बीजेपी और कांग्रेस को गठबंधन करना पड़ गया था। अपना बोर्ड बनाकर BTP को जिला परिषद पर काबिज नहीं होने दिया। इस गठबंधन ने राजस्थान ही नहीं, पूरे देश को चौंका दिया था। तब BTP नेताओं ने इस गठबंधन पर काफी निशाना साधा था। इससे भी आदिवासी समाज में बीजेपी और कांग्रेस के खिलाफ मैसेज गया।

नए प्रदेश बनना मुश्किल, तेज होगी सियासत और बढ़ेगा तनाव
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार नारायण बारेठ सहित अन्य एक्सपट्र्स का कहना है कि ये सालों का असंतोष है, जो एक बार फिर उठ रहा है। हालांकि अलग राज्य या नया राज्य बनाने की राह इतनी आसान नहीं है। अभी के नजरिए से आदिवासी समाज को नया राज्य मिलना मुश्किल लग रहा है। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि प्राथमिक सफलता ने समाज और समाज के नेताओं को उत्साहित कर दिया है। आंदोलन तेज होने के संकेत भी मिल गए हैं।
सियासत के नजरिए से देखें, तो कहा जा सकता है कि यदि मुख्य धारा की पार्टियां आदिवासी समाज के हित में काम करतीं तो BAP जैसी पार्टियां कभी नहीं पनपतीं। इन क्षेत्रों में पक्षपात को लेकर नाराजगी है और लोग नाखुश हैं। टकराव भी दिखाई दे रहा है, जो किसी के हित में नहीं है। भील प्रदेश की मांग को क्षेत्रीय युवाओं का साथ मिल रहा है, जो सरकार के लिए तनाव का कारण बनेगा।
कैसे बनता है नया प्रदेश?
राजस्थान की तरह ही उत्तर प्रदेश का विभाजन कर पूर्वांचल राज्य बनाने की अटकलें जारी हैं। ऐसे में जानते हैं कि नए राज्यों का गठन कैसे होता है।
- संविधान के अनुच्छेद-3 के तहत अलग राज्य के गठन का अधिकार केंद्र सरकार को है। वह किसी भी राज्य का क्षेत्र बढ़ा या घटा सकती है। सीमाएं बदल सकती है। वह राज्य का नाम भी बदल सकती है।
- पहले राज्य की विधानसभा नए राज्य के गठन का प्रस्ताव पास करती है। फिर इसे राष्ट्रपति को भेजती है। इस पर केंद्र कदम उठा सकता है। गौरतलब है कि यूपी विधानसभा नवंबर 2011 में राज्य के 4 हिस्सों- बुंदेलखंड, पूर्वांचल, अवध प्रदेश और पश्चिम प्रदेश में बंटवारे का प्रस्ताव पास कर चुकी है।
- राज्यपाल ऐसे प्रस्ताव को राष्ट्रपति को भेजते हैं। राष्ट्रपति से ऐसे प्रस्ताव गृह मंत्रालय भेजे जाते हैं। गृह मंत्री संसद में नए राज्य के गठन का प्रस्ताव पेश करते हैं। इसमें यह भी तय होता है कि नए राज्य में कितने जिले, विधानसभा और लोकसभा सीटें होंगी।
- नए राज्य के विधानसभा, लोकसभा क्षेत्रों का परिसीमन चुनाव आयोग के दायरे में आता है। आयोग को तय करना होता है कि कौन सी सीटें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित होंगी।