युवाओं के नेतृत्व में एक समृद्ध भारत: त्वरित नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता -युथ एक्टिविस्ट डॉ.एन.पी गाँधी
केंद्रीय स्तर पर द्रुतगामी युवा सशक्तिकरण नीति: भारत के भविष्य की कुंजी , केंद्र सरकार को युवाओं के लिए एक व्यापक और द्रुतगामी नीति तैयार करनी चाहिए

- वन नेशन वन एक्जाम के साथ वन नेशन वन सेंट्रलाइज्ड जॉब एप्लीकेशन को करना होगा लागु
- सेंट्रलाइज्ड न्यूनतम वेतनमान अधिनियम (फॉर आल स्टेट ) वेतन असमानता विसंगतियों और युवा वैतनिक शोषण रोकने हेतु है जरूरी
- डॉ कलाम शहरी एवं ग्रामीण युवा स्किल्ड रोजगार गारंटी योजना (शिक्षित बेरोजगार आत्महत्या रोकथाम एवं युवा सशक्तिकरण हेतु है आवश्यक )
- डॉ कलाम युवा करियर मार्गदर्शन केंद्र (मानसिक करियर तनाव मुक्ति और युवा सशक्त मार्गदर्शन हेतु है जरूरी)
- सरकार, उद्योग, शिक्षा संस्थान और युवाओं को मिलकर प्रयास करने होंगे:
युवा रोजगार का असर पूरे देश पर पड़ता है, कैसे?
- आर्थिक विकास में बाधा: जब युवाओं को रोजगार नहीं मिलता है, तो वे अर्थव्यवस्था में योगदान नहीं दे पाते हैं। इसका मतलब है कि कम खपत, कम कर राजस्व और कम आर्थिक विकास।
- सामाजिक अशांति: बेरोजगारी से हताशा और सामाजिक अशांति पैदा हो सकती है।
- असमानता में वृद्धि: जब युवाओं को रोजगार के अवसर नहीं मिलते हैं, तो यह आय और धन की असमानता को बढ़ा सकता है।
- प्रतिभा का पलायन: योग्य युवा बेहतर अवसरों की तलाश में विदेश जा सकते हैं, जिससे देश का नुकसान होता है।
- सरकार:
- शिक्षा और कौशल विकास में निवेश
- रोजगार सृजन के लिए अनुकूल नीतियां
- युवाओं के लिए उद्यमिता को प्रोत्साहित करना
- उद्योग:
- युवाओं को प्रशिक्षण और इंटर्नशिप के अवसर प्रदान करना
- कौशल-आधारित भर्ती
- उचित वेतन और काम करने की बेहतर स्थिति प्रदान करना
- शिक्षा संस्थान:
- रोजगार योग्य कौशल पर ध्यान केंद्रित करने वाला पाठ्यक्रम
- उद्योगों के साथ संबंध
- छात्रों को करियर मार्गदर्शन और सलाह प्रदान करना
- युवा:
- कौशल विकास पर ध्यान देना
- उद्यमिता और नवाचार के लिए खुले रहना
- अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों के बारे में जागरूक होना

मानव विकास संस्थान और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के द्वारा जारी ‘भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024’ रिपोर्ट से खुलासा हुआ है की भारत के युवा बढ़ती बेरोज़गारी दर से जूझ रहे है। इस रिपोर्ट में युथ एम्प्लॉयमेंट ,एजुकेशन एवं स्किल में गत बीस वर्षो में भारत जैसे विकासशील देश में उभरते आर्थिक ,लेबर मार्किट एवं एजुकेशन स्किल परिदृश्य में हुए परिवर्तन एवं युवा रोजगार के संदर्भ में मौजूदा चुनोतिया परलक्षित होती हुई दिखाई देती है। उपरोक्त रिपोर्ट कुल बिस वर्षो की समेकित विश्लेषण वर्ष 2000 और वर्ष 2022 के बीच राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण तथा आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के डेटा पर आधारित है, जिसमें वर्ष 2023 के लिये एक पोस्टस्क्रिप्ट सम्मिलित है।समग्र श्रम बल भागीदारी और रोज़गार दरों में सुधार के बावजूद, भारत में रोज़गार की स्थिति खराब बनी हुई है, जिसमें स्थिर या घटती मज़दूरी, महिलाओं के बीच स्व-रोज़गार में वृद्धि एवं युवाओं के बीच अवैतनिक पारिवारिक काम का उच्च अनुपात जैसे मुद्दे शामिल हैं।भारत के बेरोज़गार कार्यबल में लगभग 83% युवा हैं और कुल बेरोज़गारों में माध्यमिक या उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं की हिस्सेदारी वर्ष 2000 में 35.2% से लगभग दोगुनी होकर वर्ष 2022 में 65.7% हो गई है।पिछले दो दशकों में, भारत के नौकरी बाज़ार में कुछ श्रम संकेतकों में कुछ सुधार देखा गया है, लेकिन समग्र रोज़गार की स्थिति चुनौतीपूर्ण बनी हुई है।वर्ष 2018 से पहले कृषि रोज़गार की तुलना में गैर-कृषि रोज़गार तेज़ी से बढ़ने के बावजूद, गैर-कृषि क्षेत्र कृषि से श्रमिकों को अवशोषित करने के लिये पर्याप्त रूप से विकसित नहीं हुए हैं।अधिकांश श्रमिक, लगभग 90%, अनौपचारिक कार्य में लगे हुए हैं और नियमित रोज़गार का अनुपात, जो वर्ष 2000 के बाद लगातार बढ़ रहा था, वर्ष 2018 के बाद घटने लगा।भारत के बड़े युवा कार्यबल को, जिसे अक्सर जनसांख्यिकीय लाभ के रूप में देखा जाता है, आवश्यक कौशल की कमी के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
युवा रोज़गार, शिक्षा और कौशल पर यह रिपोर्ट भारत में उभरते आर्थिक, श्रम बाज़ार, शैक्षिक एवं कौशल परिदृश्य व पिछले दो दशकों में हुए बदलावों के संदर्भ में युवा रोज़गार की चुनौती की जाँच करती है।डिजिटल रूप से मध्यस्थता वाले गिग और प्लेटफॉर्म कार्य का परिचय तेज़ी से हुआ है, जो प्लेटफॉर्म द्वारा एल्गोरिथम द्वारा नियंत्रित होते हैं तथा श्रम प्रक्रिया के नियंत्रण में नई सुविधाएँ लेकर आए हैं।तेज़ी से, प्लेटफ़ॉर्म और गिग कार्य का विस्तार हो रहा है, लेकिन यह काफी हद तक, अनौपचारिक कार्य का विस्तार है, जिसमें शायद ही कोई सामाजिक सुरक्षा प्रावधान है।विभिन्न राज्यों में रोज़गार परिणामों में महत्त्वपूर्ण भिन्नताएँ मौजूद हैं, कुछ राज्य रोज़गार संकेतकों में लगातार निचले स्थान पर हैं।बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, मध्य प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य पिछले कुछ वर्षों में खराब रोज़गार परिणामों से जूझ रहे हैं, जो क्षेत्रीय नीतियों के प्रभाव को दर्शाता है।