गौवंश को आसियाने की खोज, गौशाला संचालक कर रहे मौज: राजेंद्र प्रसाद शर्मा झेरीलीवाला
गौवंश को आसियाने की खोज, गौशाला संचालक कर रहे मौज: राजेंद्र प्रसाद शर्मा झेरीलीवाला

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : चंद्रकांत बंका
झुंझुनूं : झुंझुनूं जिले में अनगिनत गौशालाएं है और इनका संचालन करने वाले खुद को परम गौभक्त कहते नहीं थकते । झुंझुनूं जिला संतो की पावन धरा होने के साथ ही अनगिनत भामाशाहों की जननी भी है । यह भामाशाह गौशालाओं को समय समय पर भामाशाह भरपूर आर्थिक सहयोग प्रदान करने के साथ ही राजस्थान सरकार भी इनको आर्थिक अनुदान प्रदान करती है । लेकिन दुर्भाग्यवश कहना पड़ रहा है कि असहाय व लाचार गौवंश अपने आसियाने के लिए तरस रहा है । यदि इन गौशालाओ की कार्यप्रणाली देखें तो इनको गौशालाए न कह कर यदि डेयरी कहे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । ऐसा नहीं जिले में बहुत सी गोशालाएं है जो गौवंश के लिए पूर्ण रूप से समर्पण भाव से उनकी सेवा कर रही है । उनके संसाधन भले ही कम हो लेकिन उनका दृढ़विश्वास व गौवंश के प्रति सेवाभाव से संसाधनों में कहीं भी कोई कमी नजर नहीं आती । उन गौशालाओं की नजरों में गौवंश केवल गौवंश है उसमें विलायती या देशी में वर्गीकरण नहीं किया जाता जैसा कि गौशालाओं की आड़ में डेयरी संचालकों ने गौवंश का भी वर्गीकरण कर रखा है । उन गौशालाओं का दूध भी केवल रसूखदारों की रसोई की ही शोभा बढाता है ।
आयुष अंतिमा हिन्दी समाचार पत्र सामाजिक सरोकार के समाचारों को लेकर विख्यात रहा है और उन कथित गौशालाओं को लेकर आवाज बुलंद की है जो गौवंश की सेवा के नाम पर निजी स्वार्थ की पूर्ति कर पाप कमा रहे हैं । भीषण गर्मी में लाचार व असहाय गौवंश भूखा प्यासा सड़कों पर घूमता है लेकिन उनको यह गौवंश नजर नहीं आता है क्योंकि निजी स्वार्थ के चश्मे ने उनको अंधा कर दिया है । एक ज्वलंत प्रश्न जिले के भामाशाहों व प्रबुद्ध जनों के समक्ष रखने की हिम्मत कर रहा हूं कि क्या यह गोशालाए इसी बात को लेकर संचालित हो रही है कि केवल उनको दुधारु व देशी गौवंश ही चाहिए केवल उन्हीं को गौशाला में प्रवेश दिया जाएगा ? क्या भामाशाह भी इसी शर्त पर इन गौशालाओं को आर्थिक सहायता देते हैं ? क्या राज्य सरकार भी इन बातों से अनभिज्ञ हैं ? अनगिनत गोशालाओ का संचालन जिले में हो रहा है इनको देखकर यही कहा जा सकता है कि “गौवंश कर रहा है आसियाने की खोज, गौशाला संचालक कर रहे हैं मौज ।”