[pj-news-ticker post_cat="breaking-news"]

ईद-उल-फितर: जानें कब हुई ‘ईद’ की शुरुआत; क्या है ‘फितर’ का मतलब


निष्पक्ष निर्भीक निरंतर
  • Download App from
  • google-playstore
  • apple-playstore
  • jm-qr-code
X
आर्टिकलधर्म/ज्योतिष

ईद-उल-फितर: जानें कब हुई ‘ईद’ की शुरुआत; क्या है ‘फितर’ का मतलब

ईद-उल-फितर इस साल 10 या 11 अप्रैल को मनाई जाएगी. इसका फैसला चांद के दीदार के साथ होगा. इस्लामिक कैलेंडर हिज़री के 10वें महीने शव्वाल की पहली तारीख को ईद-उल-फितर मनाई जाती है. ईद को लेकर मुस्लिम समाज में तैयारियां शुरू हो चुकी हैं. इस स्टोरी में आप ईद-उल-फितर से जुडी अहम जानकारियों से रूबरू हो सकते हैं. आप जान सकते हैं ईद कब, क्यों और कैसे मनाई जाती है?

लेखक : मोहम्मद आरिफ चंदेल

इस्लामिक कैलेंडर में नवां महीना रमजान करीम का होता है जो सबसे पाक महीना होता है। वहीं दसवें महीने (शव्वाल) की पहली चांद वाली रात ईद की रात कहलाती है। इस चांद को देखे जाने के बाद ही ईद- उल-फितर का ऐलान किया जाता है। इस साल भारत में चांद 10 अप्रैल को देखा गया है यानी इस बार ईद भारत में 11 अप्रैल को मनायी जा रही है। ईद का त्योहार भाईचारे को बढ़ावा देने वाला और बरकत के लिए दुआएं मांगने वाला होता है।

ईद के दिन घर में मीठे पकवान बनते हैं. सभी घरों में सिवइयां जरुर बनाई जाती हैं. नए कपड़े पहनना, इत्र लगाना, एक दूसरे को गले मिलकर ईद की मुबारकबाद देना यह सभी इस त्यौहार की खुशियां हैं, लेकिन सिर्फ यहीं काम करने से ईद पूरी नहीं होती. ईद के मायने खुशी होते हैं और इस त्यौहार को सभी के साथ हंसी-खुशी सेलिब्रेट करना सबसे महत्तवपूर्ण काम है।

मुसलमानों को मिली दो ‘ईद’

मुसलमानों को अल्लाह ने खुशी के तौर पर दो ईद दी हैं. इनमें एक ईद-उल-फितर और दूसरी ईद-उल-अज़हा कही जाती है. रमजान के पवित्र महीने के बाद शव्वाल की पहली तारीख को ईद-उल-फितर और हिज़री कैलेंडर के अंतिम महीने ज़िलहिज्जा की 10 तारीख को ईद-उल-अज़हा मनाई जाती है. बात ईद-उल-फितर की करते हैं. इस दिन सभी मुस्लिम ईद की खुशियों में शामिल होते हैं. इस त्यौहार की खुशी में अमीर-गरीब की कोई खाई नहीं होती. सभी लोग नए कपड़े पहनते हैं और अच्छे पकवान खाते हैं. अब आप सोच रहे होंगे कि भला गरीब लोग कैसे इस दिन नए कपड़े और अच्छे पकवान खा सकते हैं? जी हां, ऐसा इस पवित्र त्यौहार में कॉंसेप्ट है, चलिए आइए जानते हैं ईद क्यों मनाई जाती है और इस त्योहार की शुरुआत कैसे हुई…

कब और क्यों मनाई जाती है ईद-उल-फितर?

जैसा कि आप पहले पढ़ चुके हैं कि ईद-उल-फितर कब मनाई जाती है. जाहिर है यह रमजान के महीने के बाद मनाई जाती है. यह खुशियों का त्यौहार है. इसकी शुरुआत 02 हिज़री यानी 624 ईस्वी में पहली बार हुई थी. इस त्यौहार को मनाने की दो बड़ी वजह हैं. पहली जंग-ए-बद्र में जीत हासिल करना. यह जंग 02 हिज़री 17 रमजान के दिन हुई थी. यह इस्लाम की पहली जंग थी।

इस जंग में 313 निहत्थे मुसलमान थे. वही, दूसरी ओर तलवारों और अन्य हथियारों से लैस दुश्मन फौज की संख्या 1 हजार से अधिक थी. इस जंग में पैगंबर हजरत मोहम्मद (S.W) की अगुआई में मुसलमान बहुत बहादुरी से लड़े और जीत हासिल की. इस जीत की खुशी में मिठाई बांटी गई और एक-दूसरे से गले मिलकर मुबारकबाद दी गई. इसी खुशी में ईद मनाए जाने की बात कही जाती है।

रोजे पूरे होने की खुशी में अल्लाह का तोहफा ‘ईद’

दूसरी बड़ी वजह रमजान के पूरे महीने में रखे जाने वाले रोजे, रात की तरावीह और अल्लाह की इबादत पूरी होने की खुशी में ईद मनाई जाती है. कुरआन के मुताबिक, ईद को अल्लाह की तरफ से मिलने वाले इनाम का दिन माना जाता है. एक महीने के रोजे रखने के बाद मुसलमान ईद पर दिन के उजाले में पकवान खाते हैं और खुशियां मनाते हैं.

इस दिन खजूर और मीठे पकवान खाने की परंपरा चली आ रही है, जिनमें सिवइयां प्रमुख हैं. मीठे पकवानों की वजह से आम बोल-चाल भाषा में भारत सहित कुछ एशियाई देशों में इसे मीठी ईद भी कहा जाता है. इस दिन ईदगाह में सभी लोग मिलकर ईद की नमाज अदा करते हैं.

ईद-उल-फितर पर ‘फितरा’

ईद-उल-फितर के दिन अमीर और गरीब की खाई मिट जाती है. ईद का त्यौहार सबके साथ खुशियां मनाने का पैगाम देता है. सभी मुसलमान चाहे वो अमीर हो या गरीब सभी इस दिन एक साथ नमाज अदा करते हैं. इस दिन सभी लोग ईद की खुशियों में शामिल होते हैं और इसके लिए कुछ खास नियम बनाए गए हैं. ‘ईद’ के मायने खुशी हैं जिसे आप समझ चुके हैं,

अब बात ‘फितर’ की करते हैं जिसका मतलब धर्मार्थ उपहार (Charitable Gift) है. इस्लाम में चैरिटी यानी फितरा देना ईद का सबसे अहम पहलू है. ईद की नमाज अदा करने से पहले हर मुसलमान का फर्ज है कि वो फितरा दे। रमजान में अढ़ाई प्रतिशत के हिसाब से एक खास रकम (जकात) गरीबों और जरूरतमंदों के लिए निकाली जाती है। जिससे वह भी अपनी ईद मना सके और खुशियों में शामिल हो सकें।

किसे दे सकते हैं ‘जकात’

इस्लाम में फितरा देना वाजिब (उचित) है. वहीं, जकात देना फर्ज (अनिवार्य) है. जकात वो मुसलमान देता है जिसके पास इस्लाम के बताए गए नियमों के मुताबिक सोना, चांदी, नकदी और व्यापार हो. इसका सालाना 2.5 फीसदी हिस्सा जकात के रूप में गरीब और जरुरतमंद लोगों को देना फर्ज है. मसलन किसी मुसलमान के पास 52.50 तोला चांदी या 7.5 तोला सोना या फिर दोनों हो उसे जकात देना जरूरी है. यह जकात अपने गरीब रिश्तेदारों, पड़ोसियों, गरीब असहाय को दिया जा सकता है. अधिकतर मुसलमान ईद से पहले जकात अदा करते हैं.

ऐसे मनाई जाती है ईद

ईद के दिन की शुरुआत सुबह फज्र की नमाज के साथ होती है. फिर सभी लोग ईद की नमाज के लिए तैयारियां शुरू कर देते हैं. इस दिन मर्द लोग ईद की नमाज के लिए ईदगाह, जामा मस्जिद या वो नजदीकी मस्जिद जहां ईद की नमाज होती है वहां जाते हैं. नमाज से पहले नहाकर नए कपड़े पहने जाते हैं. खुशबू के लिए इत्र लगाया जाता है. घर से निकलने से पहले खजूर या सीर खाई जाती है. फिर वुजू करके नमाज के लिए जाया जाता है.

ईदगाह में सभी मुसलमान इकट्ठा होकर कांधे से कांधा मिलाकर ईद की नमाज पढ़ते हैं जो सुबह सूरज निकलने के बाद पढ़ी जाती है. ईद की नमाज के बाद सभी लोग एक दूसरे के गले मिलते हैं और ईद की मुबारकबाद देते हैं. इस दिन घरों पर दावते दी जाती हैं जो आपसी मोहब्बत और भाईचारे का पैगाम देती हैं.

सदकतुल फितर के मुताबिक कुछ बाते

  1. सदकतुल फितर हर मुसलमान (साहिबे निसाब) पर वाजिब है।
  2. जिस शख्स के पास अपनी इस्तेमाल और जरूरीयात से ज्यादा इतनी चीजें हो कि अगर उनकी कीमत लगाई जाए तो साढ़े 52 तोले चांदी कि मिकदार हो जाए तो यह शख्स साहिबे निसाब कहलाएगा और उसके जिम्मे जकात निकालना लाजिम होगा।
  3. हर शख्स जो साहिबे निसाब हो उसको अपनी तरफ से और अपने नाबालिक औलाद की तरफ से स‌दकातुल फितर अदा करना वाजिब है और अगर नाबालिगों का अपना माल हो तो उसमें से अदा किया जाएगा।
  4. जिन लोगों ने सफर या बीमारी की वजह से या वैसे ही गफलत और कोताही की वजह से रोजे नहीं रखे सदकतुल फितर उन पर भी वाजिब है, जबकि वह खाते पीते साहिवे निसाब हो।
  5. जो बच्चा ईद की रात सुबह सादिक तुलु से पहले पैदा हुआ उसका सकतुल फितर लाजिम है और अगर सुबह सादिक के बाद को पैदा हुआ तो लाजिम नहीं।
  6. जो शख्स ईद की रात सुबह सादिक से पहले मर गया उस का सदके फितर वाजिब नहीं और अगर सुबह सदीक के बाद मरा तो उसका सदके फितर वाजिब है।
  7. ईद के दिन ईद की नमाज को जाने से पहले स‌दकतुल फितर अदा कर देना बेहतर है लेकिन अगर पहले अदा नहीं किया तो बाद में भी अदा करना जायज है, और जब तक अदा नहीं करेगा उसके जिम में वाजिब उल आदा रहेगा।
  8. सदका ऐ फित्र हर शख्स की तरफ से 2 किलो 50 ग्राम गेहूं या आज के भाव के हिसाब से उतनी गेहूं के पैसे (लगभग 60 रुपए) भी दे सकता है।
  9. एक आदमी का स‌कतुल फित्र एक से ज्यादा फकीरों मोहताज हो को देना भी जायज है और कई आदमियों का सदकतुल फित्र एक फकीर मोहताज को भी देना दरुस्त है।
  10. जो लोग साहिबे निसाब नहीं उनको स‌दकतुल फित्र देना दुरुस्त है।
  11. अपने हकीकी भाई बहन, चाचा, फूफी को सदकतुल फित्र देना जायज है। मियां बीवी एक दूसरे को सदकतुल फित्र नहीं दे सकते।इसी तरह मां-बाप औलाद को और औलाद मां बाप दादा दादी को सदके फित्र नहीं दे सकती।
  12. सदकतुल फित्र का किसी मोहताज फकीर को मालिक बनाना जरूरी है इसलिए सदकतुल फित्र की रकम मस्जिद में लगाना या किसी और अच्छाई के काम में लगाना दुरुस्त नहीं।

Related Articles