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भारत का मसाला जो दुनिया में पाकिस्तानी नाम से मशहूर:नागौरी मेथी को इसलिए है GI टैग की जरूरत; 5 स्थानों से लिए सैंपल


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भारत का मसाला जो दुनिया में पाकिस्तानी नाम से मशहूर:नागौरी मेथी को इसलिए है GI टैग की जरूरत; 5 स्थानों से लिए सैंपल

भारत का मसाला जो दुनिया में पाकिस्तानी नाम से मशहूर:नागौरी मेथी को इसलिए है GI टैग की जरूरत; 5 स्थानों से लिए सैंपल

नागौर : नागौरी मेथी हर रसोई के मसालों में शामिल होती है। स्वाद और महक के लिए प्रसिद्ध नागौरी मेथी को GI टैग (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन) दिलाने की कोशिश जोरों पर है। नागौरी मेथी को नागौरी पान मेथी के नाम से भी जाना जाता है। जीआई टैग मिलने के बाद न सिर्फ इस मेथी को असल पहचान मिलेगी बल्कि किसानों को भी मेथी का उचित दाम मिलने लगेगा।

नागौरी मेथी जिसे आप कसूरी मेथी भी कहते हैं। इसमें फर्क सिर्फ लोकेशन का है। पाकिस्तान के कथूर नामक स्थान पर इसी तरह की मेथी होती है। इसलिए इसे कसूरी मेथी कहा जाता है। पाकिस्तान में पैदा होने वाली मेथी को जीआई टैग मिलने के कारण दुनियाभर में इस किस्म की मेथी को कसूरी मेथी कहा जाता है। जीआई टैग न मिलने के कारण नागौर में होने वाली पान मेथी की पहचान विशेषज्ञों और जानकारों तक ही सिमट गई है।

नागौरी पान मेथी की फसल की इस तरह कटाई की जाती है। घास मशीन की तरह बॉक्स में मेथी इकट्‌ठी हो जाती है।
नागौरी पान मेथी की फसल की इस तरह कटाई की जाती है। घास मशीन की तरह बॉक्स में मेथी इकट्‌ठी हो जाती है।

GI टैग के लिए कमेटी कर रही काम

अब नागौरी पान मेथी को जीआई टैग दिलाने के लिए नागौर जिला कलक्टर की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई है। इसके साथ ही केमिकल कंपोजिशन का काम भी शुरू हो चुका है। इसके लिए 5 जगह से मेथी के सैंपल लिए गए हैं। नागौर में ताऊसर से जनाणा और मेड़ता रोड से सैंपल लिए गए हैं। इन दोनों जगह पर उन्नत किस्म की नागौरी मेथी होती है। 1999 के जीआई एक्ट के अनुसार भाैगोलिक परिस्थितियों के आधार पर पान मेथी को शामिल किए जाने के प्रयास चल रहे हैं।

जोधपुर के पास मथाणियां में भी इसी किस्म की मेथी का उत्पादन हो रहा है। मेथी के साथ मृदा के सैंपल भी लिए जा रहे हैं, क्योंकि विशेषज्ञों का मानना है कि संभव है कि इस क्षेत्र की मिट्‌टी में कोई ऐसी विशेषता है जाे नागौरी मेथी को विशिष्ट बना रही है। बड़ी बात ये है कि अब नागौरी पान मेथी के पौधों की प्लांट फीजियो की जाएगी, ताकि इसकी विशेषता का विस्तृत अध्ययन हो सके। 1 महीने के भीतर जीआई टैग के लिए आवेदन किया जाएगा।

मेथी को तिरपाल पर रख धूप में सुखाया जाता है। नमी दूर करने के लिए जेलियों (औजार) से इसे हवा में फटकारा जाता है।
मेथी को तिरपाल पर रख धूप में सुखाया जाता है। नमी दूर करने के लिए जेलियों (औजार) से इसे हवा में फटकारा जाता है।

भोजन का स्वाद बढ़ाती है पान मेथी

सामान्य दाना मेथी की बात करें तो इसके बीज को स्वाद और सब्जी में छौंक लगाने के लिए काम में लिया जाता है। जबकि पान मेथी का पत्ता भोजन में स्वाद बढ़ाने के काम में लिया जाता है। पान मेथी शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है।

नागौर एग्रीकल्चर काॅलेज के प्रोफेसर डॉ. विकास पावड़िया ने बताया कि कोविड के मध्यकाल में नागौरी पान मेथी की डिमांड में अचानक से तेजी आई। जब इस बारे में रिसर्च की तो पता चला कि लोग पान मेथी का इम्यूनिटी बढ़ाने में सेवन कर रहे हैं। इसका बीज एकदम महीन होता है। पान मेथी की तासीर एकदम गरम होती है।

गौरतलब है कि सरकार ने पान मेथी को 2017 में विपणन में शामिल किया था।

पूरी तरह सूखने के बाद बोरियों में भरा जाता है।
पूरी तरह सूखने के बाद बोरियों में भरा जाता है।

मसालों में शामिल होगी पान मेथी

स्थानीय कृषि मंडी सचिव रघुनाथ राम सींवर ने बताया- काफी प्रयासों के बाद हाल ही में जोधपुर स्पाइस बोर्ड की बैठक में नागौरी पान मेथी को लेकर शुभ खबर आई है। पान मेथी को मसालों की सूची में शामिल किया जा सकता है। लंबे समय तक स्पाइस बोर्ड नागौरी पान मेथी को मसाला मानने को ही तैयार नहीं था। फिलहाल बीज की गुणवत्ता का अध्ययन किया जा रहा है। हैरत की बात ये है कि आज तक पान मेथी के बीज को पूरी तरह विकसित नहीं किया जा सका है।

दाना मेथी से इस तरह अलग है नागौरी मेथी

पान मैथी की फसल दाना मेथी से पूरी तरह अलग है। पान मेथी की फसल उगाने के लिए खेत में पान मेथी के बीज का छिड़काव किया जाता है। पान मेथी के पौधे की लंबाई 15 से 20 सेमी होती है। पान मेथी का अनुमानित उत्पादन 1.5 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होता है।

नागौर कृषि कॉलेज के सहायक आचार्य डॉ. विकास पावड़िया ने बताया कि 2011 की स्टडी में पाया गया कि नागौरी पान मेथी स्वादिष्ट मसाला होने के साथ ही एंटी आक्सीडेंट के रूप में भी काम करता है। नागौरी मेथी का पत्ता पान के आकार का होने के कारण इसे पान मेथी कहा जाता है। नागौरी मेथी की फसल को ही बीज के रूप में काम में लिया जाता है। इसका बीज राई के समान होता है।

अक्टूबर-नवंबर महीने में नागौरी मेथी की फसल बोई जाती है। लगभग एक महीने में ये फसल कटाई के लिए तैयार हाेती है। मेथी की फसल की जमीन से 5 इंच तक कटाई की जाती है। कटाई के बाद 15 दिन में ये फसल दोबारा तैयार हो जाती है।

मशीन में डालकर पूरी तरह साफ किया जाता है और फिर पैकिंग की जाती है।
मशीन में डालकर पूरी तरह साफ किया जाता है और फिर पैकिंग की जाती है।

यह होंगे जीआई टैग के फायदे

इस तरह की मेथी को नागौरी मेथी के नाम से जाना जाएगा। इस क्षेत्र को मेथी के असली उत्पादक के रूप में जाना जाएगा। किसान को पान मेथी का उचित दाम मिलने लगेगा। उत्पाद को कानूनी सुरक्षा मिलेगी। उत्पाद के अनधिकृत उपयोग पर रोक लगेगी। राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय बाजारों में जीआई टैग वस्तुओं की मांग बढ़ने से किसानों को संवर्द्धन मिलेगा। उत्पाद की विश्वसनीयता बढ़ेगी।

किसान नागौरी पान मेथी का उत्पादन कर 60 से 150 प्रति किलो के हिसाब से बेच रहे हैं। जबकि देश-दुनिया के मार्केट में यही नागौरी पान मेथी कंपनियों के लोग 700 से 1500 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचकर 90 फीसदी मुनाफा कमा रहे हैं। अपनी गुणवत्ता से पहचान रखने वाली नागौरी पान मेथी का 90 फीसदी उत्पादन अकेले नागौर में होता है। नागौर के किसान 4000 हैक्टेयर से अधिक क्षेत्र में पान मेथी की बुवाई कर रहे हैं। 90 फीसदी किसानों का कहना है कि नागौरी मेथी की विशिष्टता जितना मूल्य नहीं मिलता है।

नागौरी पान मेथी को कसूरी मेथी के नाम से जाना जाता है। कसूरी स्थान पाकिस्तान में है। जीआई टैग होने के कारण कसूरी की मेथी को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली है।
नागौरी पान मेथी को कसूरी मेथी के नाम से जाना जाता है। कसूरी स्थान पाकिस्तान में है। जीआई टैग होने के कारण कसूरी की मेथी को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली है।

क्या है जीआई टैग

जीआई की फुल फाॅर्म है ज्योग्राफिकल इंडिकेशन। इसका मलतब है कि संबंधित उत्पाद को मूल रूप से उस स्थान के नाम से पहचान मिले। जीआई टैग मिलने के बाद पान मेथी को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में न सिर्फ पहचान मिलेगी बल्कि किसानों को उचित मूल्य भी मिलने लगेगा। पान मेथी के उत्पादन के प्रति किसानों का रुझान बढ़ने लगा है।

नागौर के मेथी किसानों के लिए ब्रिकी की ठोस व्यवस्था नहीं होने से फसल बेचने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। पान मेथी ने दुनिया में नागौर का नाम चमकाया है। जिले के करीब दो दर्जनों गांवों में करीब पांच हजार हैक्टेयर के रकबे में इसकी खेती होती है। नागौर की जलवायु एवं मिट्टी इसके उत्पादन के लिए अनुकूल होने से मेथी की खुशबू भी लाजवाब है। नागौर में वर्तमान में 50 के करीब प्रोसेसिंग यूनिट लगी हुई हैं, जो किसानों से खरीद कर मेथी को साफ कर एक्सपोर्ट करती हैं।

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