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होलिका दहन के वक्त जलीं चिताएं:पिता तीन बेटियों को दुल्हन बने नहीं देख पाया; बुजुर्ग बोले- काश मेरे हीरया की जगह मैं मर जाता


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होलिका दहन के वक्त जलीं चिताएं:पिता तीन बेटियों को दुल्हन बने नहीं देख पाया; बुजुर्ग बोले- काश मेरे हीरया की जगह मैं मर जाता

होलिका दहन के वक्त जलीं चिताएं:पिता तीन बेटियों को दुल्हन बने नहीं देख पाया; बुजुर्ग बोले- काश मेरे हीरया की जगह मैं मर जाता

जयपुर : जयपुर का बैनाड़ा गांव…. रविवार शाम जब हर तरफ होलिका दहन हो रहा था, तब इस गांव में भी लपटें उठ रही थीं, लेकिन वे उन चिताओं की थी जो केमिकल फैक्ट्री में आग का शिकार हो गए थे। इनमें एक वो पिता भी था जिसकी 3 बेटियां 21 अप्रैल को दुल्हन बनने वाली हैं, तो एक वो 90 साल का बुजुर्ग भी है जिसे यकीन नहीं हो रहा कि उसका बुढ़ापे का सहारा चला गया।

दरअसल, जयपुर से 25 किलोमीटर दूर बस्सी की एक केमिकल फैक्ट्री में बॉयलर फटने से 6 लोगों की मौत हो गई थी। इनमें से चार लोग पास के ही बैनाड़ा गांव के रहने वाले थे। इन मृतकों में शामिल हीरालाल गुर्जर, कृष्ण गुर्जर, मनोहर गुर्जर और गोकुल हरिजन की मौत से हर घर में मातम छाया हुआ है। सारा गांव इस कदर सदमे में है कि रविवार शाम से चूल्हा नहीं जला है। धुलंडी (सोमवार) को भी पूरे गांव में सन्नाटा पसरा रहा।

केमिकल फैक्ट्री में लगी आग में जान गंवाने वालों का रविवार शाम बैनाड़ा गांव में अंतिम संस्कार किया गया।
केमिकल फैक्ट्री में लगी आग में जान गंवाने वालों का रविवार शाम बैनाड़ा गांव में अंतिम संस्कार किया गया।

जहां बजनी थी शहनाइयां, वहां सिसकियां

हादसे में जान गंवाने वाले मनोहर गुर्जर की तीन बेटियों रीटा, टीना और गरिमा की 21 अप्रैल को शादी तय है। कार्ड छप चुके थे। शादी की तैयारियां भी जोर शोर से चल रही थीं। कपडे़, गहने सहित हर सामान मनोहर खुद जुटा रहे थे। केमिकल फैक्ट्री में हुए हादसे ने पिता से कन्यादान का सुख छीन लिया और बेटियों के सिर से पिता का साया।

5 साल के बेटे शिवम को पता ही नहीं कि घर पर क्या पहाड़ टूटा है? उसका रुंआसा चेहरा जरूर ये बताता है कि उसे भी इस बात का एहसास है कि अब वह कभी पिता के कंधे पर बैठ कर होली का मेला नहीं देख सकेगा। जिस पेड़ के नीचे बैठकर मनोहर फैक्ट्री से आकर बैठते थे, आज उसी पेड़ के नीचे उनकी तस्वीर पर लोग फूल चढ़ा रहे हैं। गरिमा ने बताया कि मम्मी की तबयत बहुत खराब है। मनोहर के भतीजे कैलाश ने बताया कि घर में कमाने वाले वही थे। उनके बाद तीन बेटियों और पांच साल के बेटे को संभालने वाली उनकी पत्नी और मां ही बचे हैं।

हादसे में जान गंवाने वाले गोकुल, मनोहर और कृष्ण।
हादसे में जान गंवाने वाले गोकुल, मनोहर और कृष्ण।

गोकुल की पत्नी को सदमा ऐसा कि आवाज़ ही नहीं निकल रही

हादसे में मारे गए गोकुल की पत्नी लक्ष्मी के आंसू सूख गए हैं। पति के हादसे का शिकार होने की खबर सुनने के बाद से चेहरा भाव विहीन हो गया है। पति की मौत की खबर मिलने के बाद से ही लक्ष्मी खामोश है। किसी से कुछ नहीं बोल रही। आंसू भी नहीं निकले। सदमा इतना गहरा है कि गांव की औरतें उसे इस सदमे से बाहर लाने के लिए रुलाने का प्रयास कर रही हैं, लेकिन लक्ष्मी की खामोशी को नहीं तोड़ पा रहीं। लक्ष्मी के पास अपने दो बच्चों के साथ ही बहन और जीजा के दो बच्चों की ज़िम्मेदारी भी है। गोकुल की मां गीता देवी बार बार गोकुल का नाम पुकार कर उन्हें भी अपने साथ ले चलने की गुहार लगाती हैं और फफक-फफक कर रोने लगती हैं।

गांव के युवकों के अंतिम संस्कार के दौरान मौजूद ग्रामीण। स्थानीय लोगों में प्रशासन के खिलाफ भी नाराजगी है।
गांव के युवकों के अंतिम संस्कार के दौरान मौजूद ग्रामीण। स्थानीय लोगों में प्रशासन के खिलाफ भी नाराजगी है।

हीरालाल के 90 वर्षीय पिता बोले- अब जीकर क्या करूंगा

मृतक हीरालाल गुर्जर के पिता 90 वर्षीय छीत्तरमल मीडिया कर्मी को देखते ही हाथ जोड़कर सिसकने लगे। बड़ी मुश्किल से टूटे-फूटे लड़खड़ाते लफ़्ज़ों में बोले- इस बुढ़ापे में बेटे की अर्थी देखने से ज़्यादा दुर्भाग्य और क्या होगा। अब जीवन मेरे लिए व्यर्थ है… मेरे हीरया की जगह मैं मर जाता।

बेटे सूरज और चांद कसाणा ने बताया कि परिवार कि रोज़ी-रोटी का पिता ही सहारा थे। उन्हीं के कंधों के भरोसे दोनों भाई सुनहरे भविष्य के सपने बुन रहे थे। अब परिवार को सहारा देने के लिए किसी एक को पढ़ाई छोड़नी पड़ेगी। मां की तबीयत पहले से खराब रहती है। हाल ही दो बार अस्पताल में भी भर्ती करवाना पड़ा था। ऐसे में पिता की मौत ने परिवार को पूरी तरह तोड़ दिया है। उधर हीरालाल के परिवार के ही कृष्ण गुर्जर के घर भी कोहराम मचा हुआ है। सोमवार को जिस आंगन में फाग के गीत गाये जाने थे, वह अंतिम संस्कार के बाद की रीति निभाई जा रही थी।

हीरालाल गुर्जर के पिता 90 वर्षीय छीत्तरमल हादसे के बाद पूरी तरह से टूट गए हैं।
हीरालाल गुर्जर के पिता 90 वर्षीय छीत्तरमल हादसे के बाद पूरी तरह से टूट गए हैं।

डिब्बों मे बंद रह गई मिठाइयां, कलश में अस्थियां

होली के लिए गांव के घरों में मिठाइयां बनाई गई थीं। अतिरिक्त राशन लाया गया था, लेकिन ये सब कुछ पैकेट में बंद रह गया। सोमवार को जब दूसरे लोग रंग खेल रहे थे तब बैनाड़ा के परिवार श्मशान में अपनों की अस्थियां चुन रहे थे। एक ही गांव के चार लोगों की मौत के गम में गांव के ढाई हजार परिवार पूरी तरह शामिल हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि अंतिम संस्कार से लेकर हर विधि तक में लोग साथ हैं।

घटना के शोक में होली होने के बावजूद गांव के बाजार बंद रहे।
घटना के शोक में होली होने के बावजूद गांव के बाजार बंद रहे।

गांव के युवा क्राउड फंडिंग से जुटाएंगे आर्थिक मदद

गांव के जागरूक युवाओं ने चारों गरीब परिवारों की अब तक प्रशासन की ओर से कोई आर्थिक मदद न मिलने पर दुख जताया है। उन्होंने अपने स्तर पर ही चारों परिवारों की आर्थिक मदद के लिए क्राउड फंडिंग से पैसा जुटाने का फैसला किया है। इसके लिए सर्व समाज से भी अनुरोध किया जाएगा।

शुभम गुप्ता ने बताया कि हम लोग गांव वालों की सहमति से चारों पीड़ित परिवारों की आर्थिक मदद के लिए क्राउड फंडिंग शुरू कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर केमिकल फैक्ट्री पीड़ितों के परिवार की मदद के लिए एक क्राउड फंडिंग चैरिटी ग्रुप बनाया जाएगा। एक कॉमन जॉइंट अकाउंट नंबर शेयर कर लोगों से मदद की अपील की जाएगी।

एकत्रित राशि को बराबर हिस्सों में समाज और गांव के पंच पटेल बांटेंगे। साथ ही सरपंच रमेश चंद्र महावर ने भी अपने स्तर पर आर्थिक मदद और सरकारी योजनाओं का पीड़ित परिवारों को मुआवज़ा दिलाने के लिए कवायद शुरू कर दी है। महावर ने बताया कि हमारे गांव में पहली बार इस तरह की त्रासदी हुई है। चारों परिवार आर्थिक रूप से बहुत कमज़ोर हैं। प्रशासनिक स्तर पर और ग्रामीणों की मदद से आर्थिक सहायता दिलवाएंगे।

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