सीएस व रालसा को आदेश की पालना कराने का निर्देश:2009 से पहले की नाबालिग दुष्कर्म पीड़िताएं तीन लाख रुपए मुआवजे की हकदार: कोर्ट
सीएस व रालसा को आदेश की पालना कराने का निर्देश:2009 से पहले की नाबालिग दुष्कर्म पीड़िताएं तीन लाख रुपए मुआवजे की हकदार: कोर्ट

जयपुर : हाईकोर्ट ने नाबालिग दुष्कर्म पीड़िताओं को मुआवजा नहीं मिलने से जुड़े 19 साल पुराने मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा है कि साल 2009 में सीआरपीसी की धारा 357ए के संशोधन से पहले की वे सभी नाबालिग पीड़िताएं तीन लाख रुपए मुआवजा पाने की हकदार हैं, जिनके साथ यह जघन्य अपराध हुआ है। वहीं अदालत ने आदेश की पालना सुनिश्चित करवाने के लिए सीएस व रालसा के सदस्य सचिव व डीएलएसए जयपुर को भी निर्देश दिए हैं।
जस्टिस अनूप कुमार ढंड ने यह आदेश नाबालिग पीड़िता के पिता की याचिका पर दिया। अदालत ने कहा कि एक नाबालिग पीड़िता के साथ किया गया दुष्कर्म का अपराध अमानवीय व मानवीय गरिमा का अपमान है। इसलिए पीड़िताओं को मुआवजा दिया जाना चाहिए। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह आदेश नए मामलों में लागू नहीं होगा, बल्कि उन मामलों में लागू होगा जिनमें सीआरपीसी की धारा 357 ए में संशोधन से पहले ही सक्षम अधिकारी के यहां पर मुआवजेे के लिए क्लेम दायर कर दिए हों और वे वहां पर पेंडिंग हों।
मामले के अनुसार, प्रार्थी की दो साल की बेटी के साथ 19 जुलाई 2004 को दुष्कर्म हुआ और इसकी रिपोर्ट सोडाला पुलिस थाने में दर्ज हुई। शहर की एडीजे कोर्ट ने अभियुक्त को 31 मई 2005 को दस साल की कैद व जुर्माने की सजा सुनाई, लेकिन पीड़िता को कोई मुआवजा राशि नहीं दी।
जिस पर उसने जिला कलेक्टर के यहां पर तीन लाख रुपए मुआवजा दिलवाए जाने का प्रार्थना पत्र दायर किया। लेकिन उस पर कोई निर्णय नहीं हुआ। इसे प्रार्थी ने हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए मुआवजा दिलवाने का आग्रह किया। मामला पेंडिंग रहने के दौरान 2011 में पीड़ित प्रतिकर स्कीम लागू हुई। जिसमें नाबालिग से दुष्कर्म मामले में तीन लाख रुपए मुआवजा देने का का प्रावधान किया।