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झुग्गी-झोपड़ी​​​​​​​ में रहने वाली लड़कियों ने तुर्की में जीता मेडल:एक के पिता जयपुर में ई-रिक्शा चलाते हैं, दूसरी के मैकेनिक; पढ़ाने के पैसे भी नहीं थे


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झुग्गी-झोपड़ी​​​​​​​ में रहने वाली लड़कियों ने तुर्की में जीता मेडल:एक के पिता जयपुर में ई-रिक्शा चलाते हैं, दूसरी के मैकेनिक; पढ़ाने के पैसे भी नहीं थे

झुग्गी-झोपड़ी​​​​​​​ में रहने वाली लड़कियों ने तुर्की में जीता मेडल:एक के पिता जयपुर में ई-रिक्शा चलाते हैं, दूसरी के मैकेनिक; पढ़ाने के पैसे भी नहीं थे

जयपुर : जयपुर की मनीषा और मुस्कान ने तुर्की में आईएफएमए वर्ल्ड यूथ मुए थाई चैंपियनशिप में गोल्ड और ब्रॉन्ज मेडल जीता है। मनीषा पैमा के पिता मैकेनिक हैं। वहीं, मुस्कान वर्मा के पिता ई-रिक्शा चलाते हैं। दोनों ही जवाहर नगर की झुग्गी झोपड़ी में बड़ी हुईं। जिंदगी की हर चुनौती का सामना करते हुए इंटरनेशनल स्टेज पर देश का नाम रोशन किया। जीत के बाद जयपुर आईं मनीषा और मुस्कान ने हमारी मीडिया टीम  से बातचीत की।

मनीषा और मुस्कान ने बताया- एक समय था ट्रेन तक का सफर भी आसान नहीं था। झुग्गियों से बाहर नहीं निकलीं। आज देश-विदेश में फ्लाइट से सफर कर रही हैं। तुर्की में मनीषा ने गोल्ड अपने नाम किया। वहीं, मुस्कान ने ब्रॉन्ज मेडल जीता। मुए थाई बॉक्सिंग, थाई बॉक्सिंग, ताइक्वांडो, किक बॉक्सिंग और मार्शल आर्ट का मिला जुला रूप है।

मुस्कान वर्मा (बाएं से पहली) ने ब्रॉन्ज मेडल जीता। वहीं, मनीषा ने (दाएं से पहली) ने गोल्ड जीता।
मुस्कान वर्मा (बाएं से पहली) ने ब्रॉन्ज मेडल जीता। वहीं, मनीषा ने (दाएं से पहली) ने गोल्ड जीता।

मनीषा पैमा ने जीता गोल्ड मेडल
17 साल की मनीषा ने मुए थाई खेल में गोल्ड मेडल जीता है। इस खेल में उनका मुकाबला कजाकिस्तान और फिलपींस की खिलाड़ी से हुआ था। मनीषा के पिता जय सिंह एक मैकेनिक हैं। सेकंड हैंड कार भी बेचते हैं। मां फूलवती देवी गृहिणी हैं।

मनीषा ने बताया- दो भाइयों को स्पोर्ट्स का शौक रहा है। उन्हें देख कर स्पोर्ट्स खेलने का शौक लगा। फिर इसमें करियर बनाने का ख्याल आया, लेकिन सुविधाओं के अभाव ने कभी खेल के पैशन को आगे नहीं बढ़ने दिया। विमुक्ति स्कूल की 11वीं क्लास में पढ़ने वाली मनीषा को करीब साल भर पहले उड़ान प्रोजेक्ट के तरह बॉक्सिंग, मार्शल आर्ट, किक बॉक्सिंग जैसे खेल के बारे में पता चला। इसके बाद मुए थाई खेल की शुरुआत की।

मनीषा ने बताया- इस प्रोजेक्ट के तहत जब मुझे मुए थाई खेलने का मौका मिला तो मेरी रुचि बढ़ती चली गई। मुझे एहसास हुआ कि मैं इस खेल में बेहतर प्रदर्शन कर सकती हूं। अपना भविष्य तय कर सकती हूं। कुछ दिनों की एकेडमिक ट्रेनिंग के बाद ही दो बार डिस्ट्रिक्ट लेवल पर ओपन बॉक्सिंग में भाग लिया। स्टेट लेवल पर मुए थाई गेम में अग्रसर रही। मुए थाई की अलग-अलग कैटेगरी में गोल्ड और ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया।​

परिवार ने ताने सुने, लेकिन पढ़ाना नहीं छोड़ा
मनीषा ने बताया- मेरी मां ने 8वीं तक की पढ़ाई की है। आज मेरे प्रोत्साहन से मां ने भी अपनी 10वीं तक की पढ़ाई पूरी कर ली है। मनीषा ने बताया- जब मेरे माता पिता ने मुझे पढ़ाने का और आगे बढ़ाने का निर्णय लिया। तब रिश्तेदारों को ये बात कुछ खास पसंद नहीं आई। लोगों ने उनसे कहा- क्यों पढ़ा रही है? क्या ही कर लेगी? मेरी मां का सपना था कि मैं भी आम लड़कियों की तरह इंग्लिश मीडियम में पढ़ाई करूं, लेकिन ये उनके लिए संभव नहीं था।

मां रिश्तेदार और समाज के ताने सुनती रहीं। इस दौरान मेरी मां को विमुक्ति संस्था के बारे में पता चला। मां ने भाग दौड़ कर मेरा दाखिला कराया। शुरू में मेरा विमुक्ति स्कूल तक जाना ही बड़ी बात थी। मां बस के धक्के खाकर स्कूल तक पहुंचाया करती थी। लोग मां पर हंसते थे। कहते थे तू इसे लेकर भागती रहती है। आज भी जब शॉर्ट्स पहनकर खेलती हूं, लोग परिवार को ताने मारते हैं। इन सब के बावजूद परिवार मेरे लिए खड़ा रहा।

मुस्कान और मनीषा दोनों ने ही विमुक्ति संस्था की मदद से ट्रेनिंग की।
मुस्कान और मनीषा दोनों ने ही विमुक्ति संस्था की मदद से ट्रेनिंग की।

18 साल की मुस्कान ने 6 साल की उम्र में स्कूल देखा
18 साल की मुस्कान ने बताया-​ मैं पहली बार 6 साल की उम्र में स्कूल गई थी। आज 18 साल की उम्र में 9वीं क्लास में हूं। परिवार ने मुझे स्कूल में दाखिला तो दिलाया था, लेकिन आर्थिक तंगी के चलते फीस नहीं भर पाने के कारण स्कूल छूट गई।

मुस्कान ने बताया- ​​मेरे पिता कैलाश वर्मा एक ई-रिक्शा ड्राइवर हैं। मां लक्ष्मी वर्मा गृहिणी है। ऐसे में अच्छे स्कूल में पढ़ाई करना मेरे लिए सिर्फ एक सपना ही था।​​ विमुक्ति संस्था ने मेरे घर और आर्थिक हालात को देखकर मदद की। 6 साल की उम्र में केजी क्लास की स्टूडेंट बनी। ​​यहां से स्पोर्ट्स एक्टिविट के बारे में जानकारी मिली। नई पहचान बनाने का मौका मिला।​​

मुस्कान वर्मा और मनीषा दोनों साथ ही तुर्की चैंपियनशिप के लिए गई थीं।
मुस्कान वर्मा और मनीषा दोनों साथ ही तुर्की चैंपियनशिप के लिए गई थीं।

पिता भी 11वीं तक ही पढ़े
मुस्कान ने बताया- पिता ई-रिक्शा चला कर हम सब का पालन पोषण कर रहे हैं।​​ वे भी सिर्फ 11वीं तक पढ़ें हैं। मां एक गृहिणी है। ऐसे में पिता ने मेरे शिक्षित होने के प्रयास को पूरी तरह से सराहा। आज मुझसे ज्यादा उन्हें मेरी शिक्षा की चिंता रहती है।​​ आज मैं स्कूल की तरफ से देश-विदेश में भारत को रिप्रजेंट कर रही हूं।​​ तुर्की में आयोजित मुए थाई में मैंने ब्रॉन्ज मेडल जीता। इससे पहले इंटर स्कूल कॉम्पिटिशन गोल्ड भी जीत चुकी हूं।

विमुक्ति संस्था की मदद से हासिल किया मुकाम
मुस्कान और मनीषा ने विमुक्ति संस्था की मदद से ये मुकाम हासिल किया है। विमुक्ति संस्था एक एनजीओ है, जो गर्ल्स चाइल्ड की एजुकेशन के लिए काम करती है। अंडर प्रिविलेज गर्ल्स को एजुकेशन प्रोवाइड कराती है।

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