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राजस्थान में सांप पकड़ने वाला भी लड़ रहा चुनाव:चाय वाले से लेकर साधु मैदान में; पिता के खिलाफ बेटी भी इलेक्शन लड़ रही


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राजस्थान में सांप पकड़ने वाला भी लड़ रहा चुनाव:चाय वाले से लेकर साधु मैदान में; पिता के खिलाफ बेटी भी इलेक्शन लड़ रही

राजस्थान में सांप पकड़ने वाला भी लड़ रहा चुनाव:चाय वाले से लेकर साधु मैदान में; पिता के खिलाफ बेटी भी इलेक्शन लड़ रही

विधानसभा आम चुनाव 2023 : राजस्थान विधानसभा चुनाव में इस बार अजब-गजब मुकाबले देखने के लिए मिल रहे हैं। सांप पकड़ने वाले से लेकर चाय वाले तक ने नामांकन किया है। वहीं, एक नरेगा मजदूर 32वीं बार चुनाव लड़ रहा है। पिता-बेटी, पति-पत्नी एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। एक दूसरे के खिलाफ प्रचार कर रहे हैं। वहीं, कुछ सीटों पर लोग गफलत में हैं कि उनका उम्मीदवार कौनसा है। दरअसल, कुछ सीटें ऐसी हैं। जहां एक ही नाम के कई उम्मीदवार मैदान में हैं।

भरतपुर जिले के बयाना से एक चाय वाला चुनाव लड़ रहा है।
भरतपुर जिले के बयाना से एक चाय वाला चुनाव लड़ रहा है।

1. चाय वाला लड़ रहा चुनाव
सबसे पहले पढ़िए बयाना के रहने वाले मुन्नीराम जाटव (59) के बारे में। भरतपुर जिले के बयाना से भारतीय युवा जनता पार्टी के प्रत्याशी हैं। मुन्नीराम ने बीएड कर रखी है, लेकिन नौकरी नहीं लगी। घर परिवार चलाने के लिए बयाना के लाल दरवाजा स्थित रेलवे फाटक पर चाय, नमकीन, बिस्किट की थड़ी लगाते हैं। उसी से गुजारा करते हैं। परिवार में उनकी पत्नी, दो बेटे और एक बहू है।

नामांकन भरने के बाद से ही मुन्नीराम ने अपनी थड़ी पर चाय बनाना छोड़ दिया है। वे दिनभर थड़ी पर ही बैठते हैं। उनका कहना है कि चाय बनाने के कारण लोगों से बातचीत का समय नहीं मिल पाता। अभी थड़ी पर बैठकर ही प्रचार करते हैं।

मुन्नीराम ने बताया- जब एक चाय वाला मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बन सकता है तो मैं क्यों नहीं? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से प्रेरित होकर ही मैंने नामांकन जमा करवाया है। हमारी पार्टी के और भी प्रत्याशी मैदान में हैं और उनमें से दस भी जीत गए तो हम गठबंधन करेंगे। इसके बाद मैं ढाई साल के लिए सीएम बनूंगा।

भरतपुर जिले के बयाना से पुरुषोत्तम लाल ने नामांकन भरा। जो 22 की उम्र में वैराग्य ले चुके हैं।
भरतपुर जिले के बयाना से पुरुषोत्तम लाल ने नामांकन भरा। जो 22 की उम्र में वैराग्य ले चुके हैं।

2. वैराग्य लेने वाले साधु मैदान में उतरे
भरतपुर जिले के बयाना से पुरुषोत्तम लाल ने भी नामांकन भरा है।। बयाना शहर के बाहर एक कुटिया में रहने वाले पुरुषोत्तम (42) ने 22 साल पहले घर छोड़ा था। सिरसौदा (मध्यप्रदेश) के रहने वाले पुरुषोत्तम लाल मानते हैं कि राजनीति में अच्छे लोगों का आना जरूरी है। इसलिए उन्होंने फॉर्म भरा है।

चुनाव लड़ने के लिए पैसा चाहिए, वह कहां से लाएंगे? इस सवाल पर पुरुषोत्तम लाल कहते हैं कि मैं बिना पैसों की प्रचार प्रसार करूंगा। पैसों का लालच कभी नहीं रहा, इसलिए आज एक रुपया भी मेरे पास नहीं है।

वे बताते हैं कि गांव के स्कूल में गणित के टीचर नहीं थे। मैंने वहां फ्री पढ़ाया। इससे बच्चों की समस्या दूर हो गई। समाज में हर व्यक्ति यदि इसी भावना से काम करे तो बहुत सी समस्याएं दूर हो सकती हैं।

कुंभलगढ़ से सांप पकड़ने वाले तेजू टांक चुनावी मैदान में हैं।
कुंभलगढ़ से सांप पकड़ने वाले तेजू टांक चुनावी मैदान में हैं।

3. सांप पकड़ने वाला भी लड़ रहा चुनाव
राजसमंद जिले की कुंभलगढ़ विधानसभा सीट से एक सांप पकड़ने वाले तेजू टांक ने नामांकन भरा है। इसके पास संपत्ति के नाम पर कुछ नहीं है। इसके बावजूद ये चुनाव लड़ रहे हैं। अपना नामांकन भरने भी ऊंट पर बैठकर पहुंचे। ओलादर गांव के रहने वाले तेजू निर्विरोध वार्ड पंच रह चुके हैं। तेजू टांक वन्य जीव प्रेमी हैं। आसपास कहीं पर भी किसी के घर में सांप घुस जाए तो तुरंत पकड़ने पहुंच जाते हैं। फिर जंगल में छोड़ देते हैं।

वे बताते हैं कि राजनेता समस्याओं को केवल अटकाते हैं। इसीलिए तेजू ने कुंभलगढ़ से जयपुर में विधानसभा तक साइकिल पर यात्रा भी की थी। ताकि सरकार का ध्यान लोगों की समस्याओं की ओर खींच सकें। जब किसी ने नहीं सुना तो अब उन्होंने चुनाव लड़ने का फैसला किया है। चुनाव लड़ने के लिए तेजू के पास पैसे नहीं हैं, लेकिन वे मानते हैं कि परिणाम कुछ भी आए। कम से कम मैं यह तो कह सकता हूं कि बड़े-बड़े नेताओं के सामने मैंने लड़ाई लड़ी।

4. अलवर में बेटी, पिता के सामने मैदान में उतरी

अलवर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक और बीजेपी प्रत्याशी जयराम जाटव के घर में बड़ी उठापटक हो रही है। पूर्व विधायक जाटव की सबसे बड़ी बेटी मीना कुमारी ने पिता के खिलाफ चुनाव मैदान में उतर गई हैं। मीना कुमारी का कहना है कि उसके पिता ने 20 साल से भेदभाव किया। कभी घर नहीं बुलाया। उसे अशुभ बताते रहे। अब वही बेटी पिता के खिलाफ चुनाव लड़कर इस भेदभाव का बदला लेना चाहती है। इसलिए निर्दलीय लड़ रही हैं।

पिता पर लगाए थे भ्रष्टाचार के आरोप

पिता जयराम जाटव अलवर ग्रामीण के पूर्व विधायक हैं। 2018 में टिकट कट गया था। अब 2023 में वापस मिल गया, लेकिन उनकी सबसे बड़ी बेटी मीना कुमारी व पिता के बीच यानी परिवार में दो-तीन साल से झगड़ा है। बेटी कई बार अपने पिता पर आरोप लगा चुकी है कि वे भ्रष्टाचारी हैं। उनकी जमीन भी हड़प गए।

वहीं, जयराम जाटव ने अब तक इतना ही कहा कि कई बार गलत हाथों में पहुंचने पर बेटा-बेटी गलत हो जाते हैं। खुद पर लगाए गए आरोप सिरे से खारिज करते हैं। उनके अनुसार दूसरे नेताओं के बहकावे में आकर बेटी ने चुनाव लड़ने का कदम उठाया है। वहीं, मीना कुमारी के पति का कहना है कि उनके ससुर विधायक जयराम जाटव ने बेटी के साथ अत्याचार किया है। इस कारण चुनाव लड़ने का फैसला करना पड़ा है। मीना कुमारी के पति रेलवे में अधिकारी हैं।

आप भी जानिए विधायक व बेटी के बीच का विवाद

विधायक जयराम जाटव के दो बेटे व चार बेटियां है। मीना कुमारी सबसे बड़ी बेटी है। मीना कुमारी का कहना है कि वह अलवर शहर में ही रहती है, लेकिन उसके पिता ने उसे 20 सालों से घर नहीं बुलाया। कुछ साल पहले हमने एक जमीन खरीदी थी। उस जमीन खरीद फरोख्त में पिता की ओर से बेईमानी की गई।

5. आमने-सामने चुनाव लड़ रहे पति-पत्नी
सीकर जिले के दांतारामगढ़ विधानसभा सीट पर कांग्रेस के दिग्गज नेता व पूर्व पीसीसी चीफ नारायण सिंह के बेटे व वर्तमान विधायक वीरेंद्र सिंह और उनकी बहू पूर्व जिला प्रमुख डॉ. रीटा सिंह चुनावी मैदान में आमने-सामने हैं। डॉ. रीटा सिंह ने जननायक जनता पार्टी (JJP) से नामांकन भरा है, जबकि विधायक वीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस से। इस पर वीरेंद्र सिंह का कहना है कि मैंने, मेरे परिवार और मेरे पिता ने बहुत लंबे समय तक लोगों की सेवा की है और विकास कार्य करवाए हैं। निश्चित रूप से लोगों का रुझान मेरी तरफ ही है और लोग मुझे बड़े बहुमत से जिताएंगे।

वहीं, रीटा सिंह का कहना है कि जब मैं पहली बार जिला प्रमुख बनी थी, उसके बाद से ही जनता के बीच में लगातार रही हूं। पिछली बार भी मुझे टिकट मिलने की संभावना थी, लेकिन नहीं मिल पाई। इसके बाद से ही मैंने लोगों के संपर्क में रहकर जेजेपी से दावेदारी जताई है और निश्चित ही मुझे लोगों का समर्थन मिलेगा।

पति-पत्नी की दांतारामगढ़ से ही सियासी पारी की शुरुआत
रीटा सिंह ने पहली बार 1995 में पंचायत समिति का दांतारामगढ़ से ही चुनाव लड़ा और बड़ी जीत दर्ज की थी। तब उन्होंने प्रधान की दावेदारी भी जताई थी, लेकिन दो वोटों से हार गई थीं। इसके बाद वीरेंद्र सिंह इसी सीट से अगले तीन चुनाव लड़े। तीनों ही बार जीते और प्रधान बने।

2004 में रीटा सिंह ने फिर से दांतारामगढ़ से पंचायत समिति का चुनाव लड़ा। उन्होंने फिर से प्रधान के लिए दावेदारी की। इस बार भी वे प्रधान नहीं बन सकीं। दो वोटों से रह गईं और इस बार भी प्रेमलता प्रधान बनीं।

2010 में उन्होंने जिला परिषद का चुनाव लड़ा और इस बार वे जिला प्रमुख बनने में कामयाब हुईं। वे वर्ष 2015 तक सीकर की जिला प्रमुख रहीं। वर्ष 2014 में सचिन पायलट के कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष रहने के दौरान प्रदेश सचिव का पद संभाला। वर्ष 2018 में उनके पति वीरेंद्र सिंह दांतारामगढ़ से चुनाव जीत कर विधायक बने।

मजदूर तीतर सिंह ने इस बार भी श्रीकरणपुर विधानसभी सीट से नामांकन भरा है।
मजदूर तीतर सिंह ने इस बार भी श्रीकरणपुर विधानसभी सीट से नामांकन भरा है।

6. नरेगा मजदूर ने चुनाव के लिए किया नामांकन

पेशे से नरेगा मजदूर तीतर सिंह ने इस बार भी श्रीकरणपुर विधानसभा सीट से नामांकन भरा है। 78 साल के तीतर सिंह एमपी, एमएलए व पंचायती राज के 31 चुनाव लड़ चुके हैं, हालांकि एक भी चुनाव नहीं जीत पाए। हर बार उनकी जमानत जब्त होती है। प्रचार के लिए साइकिल और रोडवेज बस का सहारा लेते हैं। उनका कहना है कि वो गरीबों के लिए चुनाव लड़ते हैं।

तीतरसिंह श्रीगंगानगर की श्रीकरणपुर विधानसभा के गांव 25 एफ गुलाबेवाला के रहने वाले हैं। इस बार भी उन्होंने निर्दलीय कैंडिडेट के रूप में नॉमिनेशन किया है। इस बार वे पूर्व मंत्री गुरमीतसिंह कुन्नर और सुरेंद्रपालसिंह टीटी के सामने हैं।

तीतरसिंह पेशे से मनरेगा मजदूर हैं। वे बीपीएल श्रेणी से हैं और बेहद मुश्किल से अपनी जमानत राशि का ही जुगाड़ कर पाते हैं ।
तीतरसिंह पेशे से मनरेगा मजदूर हैं। वे बीपीएल श्रेणी से हैं और बेहद मुश्किल से अपनी जमानत राशि का ही जुगाड़ कर पाते हैं ।

सन् 1985 में तीतर सिंह पहली बार चुनावी में मैदान में उतरे थे। जब उन्होंने पहली बार चुनाव लड़ा तो उम्र 38 साल रही थी। तीतर सिंह बीपीएल श्रेणी से हैं। बेहद मुश्किल से अपनी जमानत राशि का ही जुगाड़ कर पाते हैं। उन्होंने अब तक वार्ड पंच से लेकर सरपंच, पंचायत समिति सदस्य, विधायक, सांसद तक भाजपा और कांग्रेस के दिग्गजों के खिलाफ चुनाव लड़े हैं। तीतर सिंह हर बार निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर पर्चा भरते हैं। वे मजदूरी करते हैं। ऐसे में नामांकन फीस भरने के लिए हर बार उन्हें जुगाड़ करना पड़ता है।

उदयपुरवाटी से शिवसेना के टिकट पर राजेंद्र सिंह गुढ़ा चुनावी मैदान में हैं।
उदयपुरवाटी से शिवसेना के टिकट पर राजेंद्र सिंह गुढ़ा चुनावी मैदान में हैं।

7. उदयपुरवाटी से राजेंद्र सिंह गुढा नाम के दो प्रत्याशी
उदयपुरवाटी विधायक राजेंद्र सिंह गुढ़ा के लिए चुनावी मैदान में एक नई परेशानी खड़ी हो गई है। मैदान में उनके ही नाम का एक और प्रत्याशी है। खास बात ये है कि उसके नाम के पीछे भी गुढ़ा ही लगा है। यानी अब मैदान में राजेंद्र सिंह गुढ़ा नाम के दो प्रत्याशी होंगे।

क्या है पूरा मामला
उदयपुरवाटी से शिवसेना के टिकट पर राजेंद्र सिंह गुढ़ा और निर्दलीय टोडी निवासी राजेंद्र सिंह ने नामांकन भरा। दोनों के नामांकन मंजूर भी हो गए। अंतिम रूप से प्रकाशित होने वाली प्रत्याशी सूची में दोनों अपने नाम के पीछे गुढ़ा लिखवाना चाहते थे। इस पर विधायक राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने ऐतराज जताया और कहा कि इससे उन्हें नुकसान होगा। इसके बाद निर्वाचन अधिकारी ने सहायक निर्वाचन अधिकारी से जांच करवाई तो सहायक निर्वाचन अधिकारी ने टोडी निवासी राजेंद्र सिंह को गुढ़ा के नाम से नहीं जानने की रिपोर्ट दी।

आखिर में निर्वाचन अधिकारी कल्पित शिवरान ने फैसला सुनाया कि मतपत्र में दोनों के नाम से आगे गुढ़ा लगाया जाएगा। अलग पहचान के लिए दोनों के पिता का नाम साथ में लिखा जाएगा।

गुढ़ा की पत्नी भी मैदान में
इधर, पिछले चुनाव की तरह ही इस बार भी विधायक राजेंद्र सिंह गुढ़ा की पत्नी चुनाव मैदान में हैं। उनकी पत्नी का नाम निशा कंवर हैं। 2018 में भी वे मैदान में थी, जिसमें उन्हें करीब 114 वोट मिले थे। खास बात ये है कि दोनों पति-पत्नी एक साथ वोट मांगने और प्रचार प्रसार में जाते हैं।

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