[pj-news-ticker post_cat="breaking-news"]

कहानी पार्टियों के चुनाव सिंबल की:जब प्रचार में बाघ लेकर पहुंचा प्रत्याशी, करना पड़ा था बैन, जानिए- कैसे बदला कांग्रेस-बीजेपी का चुनाव चिन्ह


निष्पक्ष निर्भीक निरंतर
  • Download App from
  • google-playstore
  • apple-playstore
  • jm-qr-code
X
एक्सक्लूसिव रिपोर्टचुनाव 2023जयपुरटॉप न्यूज़राजस्थानराज्य

कहानी पार्टियों के चुनाव सिंबल की:जब प्रचार में बाघ लेकर पहुंचा प्रत्याशी, करना पड़ा था बैन, जानिए- कैसे बदला कांग्रेस-बीजेपी का चुनाव चिन्ह

कहानी पार्टियों के चुनाव सिंबल की:जब प्रचार में बाघ लेकर पहुंचा प्रत्याशी, करना पड़ा था बैन, जानिए- कैसे बदला कांग्रेस-बीजेपी का चुनाव चिन्ह

Rajasthan Election 2023: राजस्थान विधानसभा चुनाव की बिसात बिछ चुकी है। प्रदेश की सभी 200 सीटों पर 1875 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। इनमें से करीब 700 प्रत्याशी निर्दलीय अपना भाग्य आजमा रहे हैं। नाम वापसी का आखिरी समय निकलते ही चुनाव आयोग ने सभी निर्दलीय प्रत्याशियों को चुनाव चिन्ह आवंटित कर दिए हैं।

कोई क्रिकेट बल्ला तो कोई गन्ने के साथ। कोई बांसुरी तो कोई चाय की केतली, माचिस की डिब्बी, गैस सिलेंडर और जूते जैसे सिंबल पाकर अपने लिए वोट मांग रहा है। पहली बार पॉपुलर गेम लूडो भी सिंबल के तौर पर शामिल किया गया है।

एक वक्त था जब शेर-तेंदुआ-ऊंट जैसे जानवरों और चील-कौआ जैसे पक्षियों के नाम पर भी सिंबल हुआ करते थे। लेकिन बंगाल में एक प्रत्याशी बाघ लेकर प्रचार करने पहुंचा, इसके बाद इस सिंबल को बैन कर दिया गया।

आज इस स्पेशल स्टोरी में जानेंगे ​निर्दलीयों को सिंबल देने की पूरी कहानी और उनके रोचक किस्से…।

रिटायर्ड आईएएस अधिकारी व विभिन्न जिलों में पदों पर रहने के दौरान कई चुनाव को बारीकी से देख चुके राकेश जायसवाल ने बताया कि चुनाव चिन्ह आरक्षण और आवंटन आदेश 1968 के मुताबिक चुनाव आयोग के पास ऐसे फ्री सिंबल रहते हैं, जो किसी भी दल के पास नहीं होते। निर्दलीय उम्मीदवारों या फिर नई पार्टी को इन्हीं सिंबल में से एक आवंटित किया जाता है।

ईवीएम मशीनों पर प्रत्याशियों के सिंबल भी लगाए जाते हैं।
ईवीएम मशीनों पर प्रत्याशियों के सिंबल भी लगाए जाते हैं।

रजिस्टर्ड पार्टियों के चुनाव चिन्ह रिजर्व श्रेणी में होते हैं, जिन्हें किसी दूसरी पार्टी या निर्दलीय को नहीं दिया जा सकता है। निर्दलीय प्रत्याशी को खुद सिंबल चुनने का अधिकार दिया जाता है। बशर्ते वो किसी दूसरी पार्टी या दूसरे प्रत्याशी के नाम पर पहले से अलॉट नहीं हो।

प्रत्याशी नामांकन भरता है तो उसे आयोग के पास उपलब्ध फ्री सिंबल में से तीन विकल्प दिए जाते हैं। उनमें से ही एक सिंबल चुनाव अधिकारी अलॉट करते हैं। अगर एक सिंबल पर दो प्रत्याशी दावेदारी जताएं तो फैसला लॉटरी से होता है।

जब प्रचार के लिए बीच-बाजार बाघ लेकर पहुंचा प्रत्याशी

चुनाव चिन्हों पर निर्वाचन आयोग केवल ऐसे सिंबल ही आवंटित करते हैं जिससे किसी भी जीव जंतु या व्यक्ति को नुकसान की स्थिति न हो। पहले पशु पक्षियों के चिन्ह भी आवंटित किए जाते थे। लेकिन बाद में उन्हें बंद कर दिया गया। चुनाव के दौरान किसी भी पशु पक्षी के उपयोग पर भी रोक लगा दी गई ताकि इन्हें कोई नुकसान न हो।

1952 के लोकसभा चुनाव के लिए छपा महाराजा हनवंत सिंह का पोस्टर। विधानसभा चुनाव में भी हनवंत सिंह का चुनाव चिन्ह ऊंट ही था।
1952 के लोकसभा चुनाव के लिए छपा महाराजा हनवंत सिंह का पोस्टर। विधानसभा चुनाव में भी हनवंत सिंह का चुनाव चिन्ह ऊंट ही था।

दरअसल, पहले प्रत्याशी लोगों को लुभाने के लिए या प्रचार-प्रसार के दौरान पशु पक्षियों का इस्तेमाल करते थे। जैसे किसी को सिंबल तोता मिला तो वह तोता लेकर प्रचार प्रसार में निकलता था। बंगाल में एक प्रत्याशी को आयोग ने बाघ का सिंबल दिया था। वह पिंजरे में बाघ लेकर प्रचार में निकल गया। ऐसे कई किस्से हैं जिनके चलते पशु पक्षियों को प्रचार प्रसार में उपयोग लिया जाता था।

देशभर में जब ऐसी कई घटनाएं हुई तो एनिमल राइट एक्टिविस्ट ने विरोध किया। वर्ष 2009 में चुनाव आयोग ने पशु पक्षियों के चुनाव में किसी भी तरह के उपयोग पर रोक लगा दी थी। हालांकि बसपा और कुछ क्षेत्रीय पार्टियों के पास पहले से सिंबल के तौर पर हाथी और शेर हैं, उन पार्टियों ने सिंबल विड्रॉ नहीं किए। लेकिन उन पर चुनाव के दौरान पशु-पक्षियों का किसी भी तरीके से उपयोग पर रोक है।

देश के पहले चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन। चुनाव आयोग का गठन 1950 में हुआ था।
देश के पहले चुनाव आयुक्त सुकुमार सेन। चुनाव आयोग का गठन 1950 में हुआ था।

कैसे शुरू हुआ चुनाव चिन्हों का उपयोग

चुनाव आयोग की वेबसाइट और राज्यसभा से मिली जानकारी के अनुसार आजादी के बाद वर्ष 1951 में देश की साक्षरता दर महज 18.39 प्रतिशत थी। पहले चुनाव के समय यह समस्या थी कि लोगों को चुनाव की प्रक्रिया और प्रत्याशियों की जानकारी सरल तरीके से कैसे दी जाए। तबतक चुनाव आयोग का गठन भी हो चुका था। इसके बाद सिलॉन (अब श्रीलंका) मॉडल को अपनाया गया।

वहां चुनाव प्रक्रिया में वोटर्स का रजिस्ट्रेशन होता था और उसके बाद वह बैलेट बॉक्स पर लगे स्टीकरों से प्रत्याशी की पहचान कर उन्हे वोटिंग करते थे। बैलेट पेपर का इस्तेमाल वोटिंग के लिए होता था। चुनाव आयोग ने यही मॉडल अपनाया और कर्मचारियों को इसकी ट्रेनिंग दी। बड़ी समस्या यह थी कि पढे़ लिखे वोटर्स की तादाद बहुत कम थी। तब देश में चुनाव चिन्हों को रचने का का काम आयोग के तत्कालीन अधिकारी ड्राफ्ट्समैन एमएस सेठी ने किया। उन्होंने पहली बार रोजमर्रा की वस्तुओं को चुनाव चिन्हों के रूप में उकेरा।

पहले चुनाव में 14 चुनाव चिन्ह पार्टियों को आवंटित किए गए थे। वोटिंग के दिन उन उसी चिन्हों को प्रत्याशियों के नाम के साथ बैलेट पेपर छपवाए गए। वोटर उस पर्चे पर सिंबल को देखकर अपने पसंद के प्रत्याशी पर मुहर लगाकर वोट मतपेटी में डालते थे। पहले चुनाव में इसके लिए बीस लाख बैलेट बॉक्स बनवाए गए थे। पहली चुनावी प्रक्रिया को देखने के लिए टर्की से भी प्रतिनिधिमंडल भारत आया था। पहले आम चुनाव में 17.6 करोड़ वोटर्स थे। इस चुनाव के बाद ही पार्टियों को चुनाव चिन्हों की ताकत का अंदाजा हुआ था।

देश के पहले मतदान की एक तस्वीर (सोर्स- गूगल)
देश के पहले मतदान की एक तस्वीर (सोर्स- गूगल)

किसान का हल- 14 पार्टियों ने जताई थी दावेदारी, आयोग ने कर दिया था फ्रीज

साल 1951 में चुनाव आयोग और पार्टियों की मीटिंग में चुनाव चिन्हों के आवंटन को लेकर चर्चा हुई। उस समय 14 दल मीटिंग में थे और सबने हल चुनाव चिन्ह पर दावेदारी जताई। जिसके बाद इस चुनाव चिन्ह को आयोग ने फ्रीज ही कर दिया। यानि किसी भी पार्टी को ये सिंबल नहीं दिया गया।पार्टीयों को अलग अलग सिंबल बांटे गए। इसमें अखिल भारतीय जनसंघ को दीपक, बॉलशेविक पार्टी को स्टार, भारतीय कम्यूनिष्ट पार्टी को मकई और दराती, फॉरवर्ड ब्लॉक को शेर, फॉरवर्ड ब्लॉक रूइकर ग्रुप को हाथ का पंजा, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को बैल व हल का जोड़ा दिया गया था। इसके अलावा अन्य चुनाव चिन्ह आवंटित किए गए थे।

पार्टियों के बदले चुनाव चिन्ह, इस बार लूडो नया सिंबल

पहले हाथी चुनाव चिन्ह अखिल भारतीय अनुसूचित जाति महासंघ के पास था। लेकिन बाद में बसपा के पास आ गया। आज भी यह बीएसपी का ही चुनाव चिन्ह है। वहीं हाथ का पंजा पहले रुईकर गुट के पास था। चुनावों में खराब प्रदर्शन के बाद प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में विलय कर लिया। जिसके बाद हाथ का पंजा फिर चुनाव आयोग के पास आ गया। समय के साथ कई नियम बनते गए।

1968 में चुनाव चिन्ह आरक्षण और आवंटन का आदेश जारी हुआ। इसके बाद से चुनाव आयोग ने सभी पार्टी को रजिस्ट्रेशन और चुनाव चिन्ह रिजर्व करवाने के निर्देश दिए। इसके बाद से ही चुनाव चिन्ह रिजर्व होना शुरू हुए। अगर प्रत्याशी ज्यादा हो और फ्री सिंबल चुनाव आयोग के पास कम हो तो नए सिंबल रोजमर्रा की वस्तुओं के आधार पर ड्राफ्ट कर लिए जाते हैं। जैसे इस बार चर्चित खेल लूडो भी सिंबल के तौर पर आया है।

एक समय कांग्रेस का संबल बैल की जोड़ी हुआ करता था।
एक समय कांग्रेस का संबल बैल की जोड़ी हुआ करता था।

कब-कब बदले पार्टियों के सिंबल

कांग्रेस पार्टी का गठन 1885 में हुआ था। इसका चुनाव चिन्ह दो बार बदला, पहले इसका चुनाव चिन्ह बैल की जोड़ी थी। पार्टी में विभाजन के बाद चुनाव चिन्ह आयोग ने जब्त कर लिया था। कामराज के नेतृत्व वाली पुरानी कांग्रेस को तिरंगे में चरखे का चुनाव चिन्ह मिला। नई कांग्रेस को गाय के बछड़े का चुनाव चिन्ह मिला था। 1977 में आपातकाल के बाद गाय बछड़े का चुनाव चिन्ह भी आयोग ने जब्त कर लिया था।

बाद में चुनाव आयोग ने पार्टी को तीन विकल्प हाथी, साइकिल और हाथ का पंजा दिया। पार्टी ने पंजे का विकल्प चुना। बाद में हाथी बसपा के पास और साइकिल सपा के पास चला गया।

बीजेपी का गठन 1980 में हुआ। पहले 1951 में जनसंघ का चुनाव चिन्ह दीपक था। वर्ष 1977 में जनता पार्टी के गठन के लिए कई पार्टियों ने जनसंघ में विलय कर लिया और चुनाव चिन्ह हलधर किसान मिला। बाद में भाजपा के संस्थापकों ने कमल को चुना क्योंकि वह पहले भी ब्रिटिश सरकार के खिलाफ इसका इस्तेमाल कर चुके थे। सबसे पुराना चुनाव चिन्ह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का बाली-हसिया है।

आमजन में प्रचलित चीजों को ही चुनाव आयोग ने हमेशा चिन्हों में शामिल किया है।

इस पार्टी का गठन 1925 में हुआ था। बीएसपी का गठन 1984 में हुआ था, इसका चिन्ह हाथी है, जो शारीरिक शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। देश में तीन तरह की पार्टियां है एक राष्ट्रीय, दूसरी राज्य और तीसरी पंजीकृत गैर मान्यता प्राप्त। इन्हें राष्ट्रीय और राज्य पार्टियों के स्थाई चिन्ह है लेकिन पंजीकृत गैर मान्यता प्राप्त में ज्यादातर को चुनाव आयोग ही सिंबल अलॉट करता है।

अभी 193 सिंबल फ्री

विधानसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशियों के लिए चुनाव आयोग के पास वर्तमान में 193 फ्री सिंबल्स हैं। ब्रेड टोस्टर, चपाती रोलर, मूसल व खरल, नूडल्स कटोरा अखरोट, मिर्च, फूलगोभी, हरी मिर्च, कटहल, अदरक, कान की बालियां, आदमी व पाल युक्त नौका, ईंटें, जंजीर, शतरंज बोर्ड, नारियल फार्म, क्रेन, डीजल पम्प, ड्रिल मशीन, डंबल्स, कूड़ेदान जैसे रोचक सिंबल भी चुनाव आयोग के पास हैं।

Related Articles