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कम्पयूटर के युग में आज भी बही-खाते का क्रेज:जोधपुर में 9 पीढ़ियों से बही करोबार; इस साल 2 करोड़ का बिजनेस अनुमान


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कम्पयूटर के युग में आज भी बही-खाते का क्रेज:जोधपुर में 9 पीढ़ियों से बही करोबार; इस साल 2 करोड़ का बिजनेस अनुमान

कम्पयूटर के युग में आज भी बही-खाते का क्रेज:जोधपुर में 9 पीढ़ियों से बही करोबार; इस साल 2 करोड़ का बिजनेस अनुमान

जोधपुर : मारवाड़ में एक कहावत है सौ बार बोलना और एक बार लिखना। इसी को चरिथार्त कर रही है लाल रंग के कपड़े में लिपटी बही खातों की दुकानें। आज के कंप्यूटर के युग में भी जोधपुर शहर में पुराने व्यापारी बही खातों की पराम्परा को निभा रहे हैं।

पुष्य नक्षत्र में खरीदारी करने के साथ ही दीपावली की रात को लक्ष्मी पूजा के साथ बही खातों का पूजन किया गया। रविवार को भी व्यापारियों ने बही का पूजन कर सुख समृद्धि की कामना की। देश की आजादी से पहले के समय में इन बही का उपयोग राजाओं के लिए किया जाता था, बाद में व्यापार में भी इनका चलन बढ़ गया।

इस साल जोधपुर में दो करोड़ से अधिक का बही खातों का व्यापार हुआ।

कंप्यूटर के बढ़ते दखल के बाद भी आज भी छोटे और मध्यम स्तरीय व्यापारी सहित पुरानी पीढ़ी के दुकानदार बही खातों का प्रयोग कर रहे हैं। वर्षों पुरानी इस परम्परा के चलते आज भी कई परिवार इन्हें बनाने का काम कर रहे हैं।

जोधपुर शहर की तीन दुकानों से पूरे राजस्थान में बही की सप्लाई की जाती है। हर दुकान में अलग अलग कारीगर इन्हें बनाते हैं। इसमें काॅटन के कपड़े का प्रयोग करने के साथ ही पीले पेपर को काम में लिया जाता है। गत्ते पर कपड़ा चढ़ाते हुए पेपर के साथ इसे पक्के धागे से मशीन और हाथों से सिलाई कर तैयार किया जाता है।

बही में के कपड़े का प्रयोग करने के साथ ही पीले पेपर को काम में लिया जाता है।
बही में के कपड़े का प्रयोग करने के साथ ही पीले पेपर को काम में लिया जाता है।

9 पीढ़ियों से बना रहे बही
शहर के दुकानदार ललित गोलिया ने बताया- परिवार पिछले नौ पीढ़ियों बहियां बनाने के काम में लगा हुआ है। आजादी से पहले इन परिवार के लोग राजा महाराजा के लिए बहियां बनाते थे। उस समय राजकाज में इन बहियों का उपयोग होता था।

धीरे धीरे व्यापारियों ने भी इनका प्रयोग शुरू किया। व्यापारियों के रोकड़ खाते, जमा, नकल आदि के इनका काम होने लगा। बाजार में तीन बड़े व्यापारी हैं जो बही बनाने का काम करते हैं।

जोधपुर के गोलिया परिवार की नवीं पीढ़ी बही के कारोबार में लगी है।
जोधपुर के गोलिया परिवार की नवीं पीढ़ी बही के कारोबार में लगी है।

हर साल होता है बदलाव
त्योहार के समय भारतीय परम्परा के अनुसार बहियों की पूजा की जाती है। इस बार भी दीपावली की रात नई बहियों का पूजन किया गया। व्यापार में हर साल इन्हें बदला जाता है। ऐसी मान्यता है कि दीपावली के दिन से व्यापारियों का नया साल शुरू होता है।

इसलिए पूजन के बाद बही खाते को काम में लिया जाता है। इस दिन पुरानी बही को बदलकर नयी बही को काम में लिया जाता है। शुभ मुहूर्त में केसर चंदन का तिलक लगाने के साथ ही लाल स्वास्तिक का निशान भी बनाया जाता है। रविवार को भी व्यापारियों ने शुभ मुहूर्त में बही का पूजन किया।

शेरगढ़ तहसील के चाबा गांव से आए व्यापारी शंकरलाल ने बताया कि कंप्यूटर कितना भी उपयोगी हो, लेकिन बही का अपना अलग ही महत्व है। इसका चलन कभी बंद नहीं हो सकता।

जोधपुर शहर में बही बनाने का काम परंपरागत तरीके से होता है। बहियों को हाथ से बनाया जाता है।
जोधपुर शहर में बही बनाने का काम परंपरागत तरीके से होता है। बहियों को हाथ से बनाया जाता है।

बही कारोबारी लाभचंद जैन ने बताया- मेरे पिता देवराज मेड़तिया ने इस काम की स्थापना की थी। 55 साल पुरानी इस दुकान में बही खातों के साथ समय के अनुसार बदलते हुए फाइलों और अन्य काम को भी शुरू कर दिया। कम्प्यूटर का काम आने के बाद इस समय में भी बदलाव हुआ है।

कम्पयूटर आने के बाद खाते और नकल बनाने वाली बहियां कम हो गई, हालांकि बाकी बहियों का काम चल रहा है।

कम्पयूटर आने के बाद खाते और नकल बनाने वाली बहियां कम हो गई, हालांकि बाकी बहियों का काम चल रहा है।
कम्पयूटर आने के बाद खाते और नकल बनाने वाली बहियां कम हो गई, हालांकि बाकी बहियों का काम चल रहा है।

लाल कपड़े में होती सिलाई
इसे बनाने के लिए सबसे पहले लाल कपड़े की दस्तरी पर सिलाई की जाती है। इसके बाद अंदर के पीले पन्नों पर भी सिलाई की जाती है। बही के अंदर एक पेज को आठ काॅलम में बांटा जाता है। जिसमें राइट साइड में इनकम और लेफ्ट साइड में खर्च लिखा जाता है। बही बनाने वाले व्यापारियों ने बताया कि समय के साथ इनका महत्व भले ही कम हुआ हो, लेकिन आज भी बही खातों की अपना अलग स्थान है।

बिक्री के लिए तैयार बही खाते।
बिक्री के लिए तैयार बही खाते।

रजिस्टर वाली बही की डिमांड
मार्केट में सबसे ज्यादा रजिस्टर वाली बही की डिमांड है। इसमें रोकड़ खाता वाली अधिक प्रचलन में हैं। यह आठ इंच से लेकर 11 इंच तक की बनाई जा रही है। बाजार में 50 रुपए से लेकर 1200 तक की बहिया बनती हैं।

बाजार में पाॅकेट जैसी बही से लेकर 10 इंच तक की बही भी मौजूद है। इसमें 50 पेपर से लेकर 200 पेपर तक की बही होती है। इसके लिए कागज गुजरात से मंगवाया जाता है। इस साल बही खातों का कारोबार दो करोड़ तक का होने का अनुमान है।

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