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अजमेर के पुष्कर कैमल-मैन की 38 सालों की जर्नी:जयपुर के हाथी गांव की तरह बसाना चाहते हैं ऊंट गांव; अब तक 13 अवॉर्ड जीते


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अजमेर के पुष्कर कैमल-मैन की 38 सालों की जर्नी:जयपुर के हाथी गांव की तरह बसाना चाहते हैं ऊंट गांव; अब तक 13 अवॉर्ड जीते

अजमेर के पुष्कर कैमल-मैन की 38 सालों की जर्नी:जयपुर के हाथी गांव की तरह बसाना चाहते हैं ऊंट गांव; अब तक 13 अवॉर्ड जीते

पुष्कर : दुनियाभर में पॉपुलर पुष्कर मेले के लिए टूरिस्टों का ब्रह्मा की नगरी में पहुंचना शुरू हो गया है। इस फेस्टिवल की पहचान रंग-रंगीले ऊंट भी हैं। जिनका श्रेय केवल एक आदमी को जाता है और वो हैं 1966 से ऊंटों को सजा रहे अशोक टांक। वे ऊंटों को सजाने की कला के लिए अब तक 13 अवार्ड जीत चुके हैं। 14 नवंबर से शुरू होने वाले पुष्कर के मेले में इस बार भी वे खास तरीके से ऊंटों को सजाएंगे।

हमारी मीडिया टीम के साथ अपनी 38 सालों की जर्नी शेयर करते हुए उन्होंने कहा- वे जयपुर के हाथी गांव की तरह अजमेर में ऊंट गांव बसाना चाहते हैं।

उनका कहना है कि विदेशी सैलानी यहां आते हैं और सजे-धजे ऊंटों को देख कर राजस्थान की परंपरा को महसूस करते हैं। ऐसे में एक ऊंट गांव की जरूरत पुष्कर को भी है। ताकि सिर्फ खास मौकों पर नहीं बल्कि हर रोज उन्हें ऊंटों का श्रृंगार देखने को मिले। उन्होंने इसके साथ ही 100 साल पुराने ब्रिटिश सरकार के समय के डॉक्युमेंट का भी जिक्र किया जिसमें, पशु मेले के आयोजन की जरूरत महसूस की गई है।

पुष्कर के कैमल-मैन अशोक टांक पिछले 38 सालों से ऊंटों को सजाने का काम कर रहे हैं। वे पुष्कर मेले में कई बार पुरस्कार भी जीत चुके हैं।
पुष्कर के कैमल-मैन अशोक टांक पिछले 38 सालों से ऊंटों को सजाने का काम कर रहे हैं। वे पुष्कर मेले में कई बार पुरस्कार भी जीत चुके हैं।

‘मैं और म्हारो छैल छबीलो नखरालो ऊंट, राजा पुष्कर वालो’

अशोक टांक कहते हैं कि जब वो 25 साल के थे तब से उन्हें ऊंटों को सजाने का शौक लगा। उन्होंने बी.कॉम किया और कुछ नया करने की इच्छा थी तो आईडिया आया कि राजस्थान की पहचान रेगिस्तान के जहाज से है। ऐसे में कुछ नया करना चाहिए और इसके लिए ऊंट सबसे सटीक हो सकते हैं। उन्होंने कहा- इसके लिए कई जगहों पर गया और जानकारी ली। ऊंटों को सजाने के लिए उपयोग आने वाली चीजें इकट्ठी की।

जब उन्होंने शुरुआत की तो उन्हें ऊंटों को सजाने के सामान को लेकर कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। ऐसे में उन्होंने बीकानेर, नागौर और गुजरात जाकर इस कला को सीखा।
जब उन्होंने शुरुआत की तो उन्हें ऊंटों को सजाने के सामान को लेकर कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। ऐसे में उन्होंने बीकानेर, नागौर और गुजरात जाकर इस कला को सीखा।

इसके लिए बीकानेर, गुजरात के कच्छ, नागौर के गांवों में जाकर सजावट के गुर सीखे। इसके बाद ये कई म्यूजियम और एग्जीबिशन में गए। पिछले कई सालों के प्रयासों के बाद बाद टांक के दिमाग में ऊंट के सजावट को लेकर आइडिया आए। उन्होंने कहा- वे हर साल की परिस्थिति के अनुसार ऊंट की सजावट में बदलाव करते हैं। जैसे पिछले साल उन्होंने कोरोना के चलते ऊंट को मास्क पहनाया था। अशोक टांक ने बताया कि इस बार के खास आकर्षण में गुरुद्वारा से मेला मैदान तक स्पिरिचुअल वॉक रहेगी। केमल एग्जीबिशन में विदेशी मेहमानों को राजस्थानी पोशाक से सजाया जाएगा।

बता दें कि उन्होंने अपने ऊंट का नाम ‘मैं और म्हारो छैल छबीलो नखरालो ऊंट, राजा पुष्कर वालो’ नाम रखा है। टांक अपने परिचित से ऊंट किराए पर लेकर इसकी सजावट करते हैं।

टांक अपने ऊंट को किसी परिचित से लेते हैं और उसका 16 श्रृंगार करते हैं। वे कहते हैं कि वो अपने ऊंट को किसी दुल्हन की तरह सजाते हैं।
टांक अपने ऊंट को किसी परिचित से लेते हैं और उसका 16 श्रृंगार करते हैं। वे कहते हैं कि वो अपने ऊंट को किसी दुल्हन की तरह सजाते हैं।

दुल्हन की तरह सजता है रेगिस्तान का जहाज

टांक ने बताया कि वे ऊंट का सोलह श्रृंगार करते है। जिसमें ऊंट को गोरबंध, घुंघरू, मोर्रा, बाली, नकेल, गानी, लुंबा-झुंबा, टंग, पावरा, राली, परसी, नवरी, पलान, झुमका, बाली जैसे गहनों से सजाते हैं। वे कहते हैं- जब ऊंट सोलह श्रृंगार कर इठलाता हुआ चलता है, तो देखने वालों की नजरें थम जाती है। विदेशों से आए सैलानी तो ऊंट के दीवाने हो जाते हैं। वे ढेरों सेल्फी लेते हैं और बारीकी से ऊंट के श्रृंगार को लेकर पूछताछ भी करते हैं।

उन्होंने कहा- एक ऊंट को सजाने में 10 हजार से 1 लाख रुपए तक खर्च आता है। ऊंटों को सजाने में सबसे बड़ी दिक्कत इनके आभूषण हैं, जो आसानी से नहीं मिलते। इसके लिए राजस्थान और गुजरात के कई शहरों में जाना पड़ता है। वहां लोक कला से जुड़े लोगों और व्यापारियों की तलाश कर आभूषण व पोशाक जुटाते हैं।

टांक का मानना है कि ऊंटों को सजाने की परंपरा ब्रिटिशर्स के टाइम से चली आ रही है। ऐसे में इस विरासत को बचाना बेहद जरूरी है। जहां 20 साल पहले पुष्कर फेयर में 40 हजार तक ऊंट आते थे। अब सिर्फ 3 हजार ऊंट ही आते हैं। (तस्वीर, जिसमें अपने सजे-धजे ऊंट के साथ गाड़ी पर बैठे टांक)
टांक का मानना है कि ऊंटों को सजाने की परंपरा ब्रिटिशर्स के टाइम से चली आ रही है। ऐसे में इस विरासत को बचाना बेहद जरूरी है। जहां 20 साल पहले पुष्कर फेयर में 40 हजार तक ऊंट आते थे। अब सिर्फ 3 हजार ऊंट ही आते हैं। (तस्वीर, जिसमें अपने सजे-धजे ऊंट के साथ गाड़ी पर बैठे टांक)

हाथी गांव की तरह हो ऊंट गांव

अशोक टांक कहते हैं- जयपुर विकास प्राधिकरण (JDA) ने जैसे हाथी गांव बसाया है, वैसे ही वह पुष्कर में ऊंट गांव बसाया जाना चाहिए। इसके लिए 2004 में प्रशासन को प्रस्ताव भी बनाकर दिया था। लेकिन, 19 साल हो गए अब तक कुछ नहीं हो पाया। हालांकि, वे अभी भी लगातार प्रयास कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि पुष्कर मेले में ऊंटों की प्रतियोगिताएं भी बढ़ानी चाहिए। सजावट के साथ जैसलमेर की तरह ऊंट बाल कतरन प्रतियोगिता भी हो। उनका कहना है कि ऊंट से राजस्थान की पहचान है ऐसे में यहां अगर कॉम्पिटिशन बढ़ेगा तो सैलानियों को इसके बारे में जानकारी भी ज्यादा मिल सकेगी।

खाली वक्त में अशोक टांक कपड़े से बने ऊंट को सजाते हुए। वे चाहते हैं कि जयपुर के हाथी गांव की तरह, पुष्कर में भी ऊंट गांव हो।
खाली वक्त में अशोक टांक कपड़े से बने ऊंट को सजाते हुए। वे चाहते हैं कि जयपुर के हाथी गांव की तरह, पुष्कर में भी ऊंट गांव हो।

ऊंट श्रृंगार के जरिए पर्यटकों को लुभाने वाले टांक ने कई पुरस्कार जीते। पुष्कर मेले के दौरान 13 बार वे पहले पायदान पर आ चुके हैं। इसके लिए उन्हें लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड भी दिया गया था। 2006 में गुजरात के रण उत्सव में ऊंट सजाया और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें पहला पुरस्कार दिया था।

उन्होंने कहा- अब मैं कॉम्पिटिशन के लिए ऊंट नहीं सजाता बल्कि इस लुप्त होती कला को बचाने और अन्य लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए शामिल होते हैं।

टांक ने नागौर पशु मेला, बीकानेर ऊंट उत्सव, जैसलमेर मरु उत्सव, जोधपुर मारवाड़ उत्सव, जयपुर हाथी समारोह, उदयपुर शिल्पग्राम सहित गुजरात के कई शहरों व हैदराबाद में अपनी कला का प्रदर्शन किया।

अशोक टांक ने 1930 के पुष्कर कैटल फेयर की एक दुर्लभ फोटो शेयर की। इस दौरान उन्होंने 100 साल से भी ज्यादा पुराने एक डॉक्युमेंट का जिक्र किया। जिसमें एक अधिकारी पीटरसन पशु मेले के पक्ष में थे।
अशोक टांक ने 1930 के पुष्कर कैटल फेयर की एक दुर्लभ फोटो शेयर की। इस दौरान उन्होंने 100 साल से भी ज्यादा पुराने एक डॉक्युमेंट का जिक्र किया। जिसमें एक अधिकारी पीटरसन पशु मेले के पक्ष में थे।

100 साल पुराना दस्तावेज

टांक ने बताया कि ब्रिटिशर्स भी चाहते हैं कि मवेशियों और पारंपरिक पशुओं को लेकर एक अनोखे मेले का आयोजन किया जाए। उन्होंने कहा- मेरे पास ऐसा ही एक 100 साल पुराना डॉक्युमेंट है। जिसमें ब्रिटिश एरा के दौरान एक अधिकारी पेटरसन ने फरमान जारी किया और लोगों को कहा था कि वे अपने जानवर जैसे गाय, भैंस, ऊंट, घोड़े लेकर मेले में आए। ब्रिटिश अधिकारी भी ऐसे मेले के पक्ष में थे। केमल मेन टांक ने बताया कि पुष्कर फेयर में जहां 20 साल पहले 30 से 50 हजार ऊंट आते थे, अब इनकी संख्या 2 से 3 हजार रह गई है।

ये है वो सामान जिससे टांक अपने ऊंटों को सजाते हैं। अपनी 38 सालों की जर्नी में उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों से लाए ऊंट सजाने के सामान को इकट्ठा किया है। हर साल वे इसमें कुछ नया जोड़ते रहते हैं।
ये है वो सामान जिससे टांक अपने ऊंटों को सजाते हैं। अपनी 38 सालों की जर्नी में उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों से लाए ऊंट सजाने के सामान को इकट्ठा किया है। हर साल वे इसमें कुछ नया जोड़ते रहते हैं।

टांक बताते है कि पुराने समय से ही दूल्हा ऊंट पर जाता था और जब दूल्हा सजता था तो उसके ऊंट को भी सजाया जाता था। लेकिन अब समय के साथ इसका शादी में चलन कम हो गया है। गिने चुने लोग ही अब इसका उपयोग करते हैं।

टांक ने बताया कि वे ऊंट सजाने के साथ यहां आने वाले देशी विदेशी पर्यटकों को ट्रेनिंग देते हैं। उन्होंने बताया कि उन्होंने 10 हजार से ज्यादा विदेशी टूरिस्ट को ट्रेनिंग दे चुके हैं। इसमें फ्रांस, इजराइल, अमेरिका, स्विट्जरलैंड, जर्मनी और इटली के टूरिस्ट हैं।

जानिए पुष्कर मेले का शेड्यूल

पुष्कर मेला 14 से 27 नवंबर तक होगा। 14 नवंबर को कार्तिक शुक्ल एकम को झंडा चौकी का आयोजन होगा। 16 नवंबर को चौकियों की स्थापना होगी। 18 नवंबर को ध्वजारोहण व सफेद चिट्टी, 19 नवंबर को पशुओं का रवन्ना व गीर गाय प्रदर्शनी का आयोजन होगा। जबकि कार्तिक शुक्ल ग्यारस से चतुर्दशी तक 23 से 26 नवंबर के बीच प्रतिदिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। कार्यक्रम के तहत ऊंट-घोड़े की सजावट कॉम्पिटिशन, मूंछ व पगड़ी प्रतियोगिता, देशी-विदेशियों के बीच रस्साकसी, फुटबॉल व क्रिकेट मैच सहित गीत, संगीत व नृत्य के अन्य आयोजन होंगे।

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