32वीं बार चुनाव लड़ रहा नरेगा मजदूर:31 बार जमानत जब्त पर, अभी हिम्मत नहीं हारी, 3 पूर्व मंत्रियों को दे चुके चुनौती
Rajasthan Assembly Election 2023: सत्तर साल के दिहाड़ी मजदूर ने पंचायत से लेकर लोकसभा तक हर चुनाव लड़ा है। लेकिन हर बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा कि वह एक बार फिर उसी जुनून और उत्साह के साथ तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने इस महीने के अंत में ही विधानसभा चुनाव के लिए अपना नामांकन पत्र दाखिल किया है।
श्रीकरणपुर : पूर्व मंत्री गुरमीत सिंह कुन्नर हो या सुरेंद्र पाल सिंह टीटी, या फिर केंद्र में मंत्री रहे निहालचंद मेघवाल। किसी भी दिग्गज के सामने चुनाव लड़ने से नरेगा मजदूर तीतर सिंह जरा भी नहीं घबराते। अपने जीवन का एक खास मकसद पूरा करने के लिए 10 बार विधायक और 10 बार लोकसभा का चुनाव लड़ने का दावा करते हैं और 32वां चुनाव श्रीकरणपुर विधानसभा से लड़ रहे हैं। 31 हार के बावजूद उनका चुनाव लड़ने का जुनून आज भी बरकरार है। जेब में 2500 रुपए कैश रखने वाले तीतर सिंह हर रोज पैदल 2 गांवों में प्रचार करने जाते हैं और वोट मांगते हैं।
32वीं बार चुनाव लड़ रहा नरेगा मजदूर तीतर सिंह:31 बार जमानत जब्त पर, अभी हिम्मत नहीं हारी, 3 पूर्व मंत्रियों को दे चुके चुनौतीhttps://t.co/o6pr7PwIQA pic.twitter.com/F77A4F8UzM
— जनमानस शेखावाटी (@Jan_Shekhawati) November 13, 2023
राजस्थान के चर्चित निर्दलीय प्रत्याशी से बात करने हमारी मीडिया टीम श्रीगंगानगर जिले के श्रीकरणपुर विधानसभा क्षेत्र के गांव 25 एफ गुलाबेवाला पहुंची। जाना कि हर बार चुनाव क्यों लड़ते हैं? इतनी हार झेलने के बाद भी मैदान क्यों नहीं छोड़ा?
हम जब गुलाबेवाला गांव पहुंचे तो शाम हो चुकी थी। हाईवे से गांव की तरफ घूमने वाली रोड पर हमें एक बुजुर्ग और अधेड़ उम्र के व्यक्ति पैदल जाते हुए मिले। उन्हें रोकते हुए हमने पूछा- सरदार तीतर सिंह का मकान कहां है? बुजुर्ग बोले- मैं सरदार तीतर सिंह हूं?
हमने परिचय दिया और उनके घर की तरफ रुख किया। बीच रास्ते में उन्होंने बताया कि वे पास के ही एक गांव का दौरा करके घर लौट रहे थे। कुछ ही देर में हम आधे कच्चे और आधे पक्के दो कमरों के मकान में पहुंचे। यहां तीतर सिंह की पत्नी और बहू खुले में बने चूल्हे पर खाना बना रही थी। अंदर जाकर तीतर सिंह से बातचीत शुरू कर दी।
चार पीढ़ियां खत्म हो गई, लेकिन जमीन नहीं मिली; विरोध के लिए चुनाव लड़ना शुरू किया
सरदार तीतर सिंह ने बताया- मैं नरेगा मजदूर हूं। परिवार की चार-चार पीढ़ियां खत्म हो गई हैं लेकिन आज तक जमीन का हक नहीं मिला। जब हम छोटे थे, तब सरकार ने भूमिहीन काश्तकारों को नहरी क्षेत्र में जमीन आवंटित की थी, लेकिन तब उन्हें और उनके जैसे कई गरीब परिवारों को ये हक नहीं मिल पाया था। जबकि इस आवंटन के वो वास्तविक हकदारों में से थे। यहीं से अपने अधिकारों की लड़ाई शुरू की। अधिकारी-नेता कोई बात नहीं सुन रहा था, इसलिए चुनाव लड़ने का फैसला किया।
साल 1984 में श्रीकरणपुर विधानसभा क्षेत्र से पहली बार निर्दलीय नामांकन भरा और चुनाव लड़ा। पहले चुनाव में 2 हजार के करीब वोट मिले। अपनी और अपने जैसे गरीब काश्तकारों की मांग मनवाने के लिए कोई चुनाव नहीं छोड़ा। सरपंच, वार्डपंच, पंचायत समिति सदस्य, विधायक और सांसद के चुनाव आते गए और लड़ता चला गया। इस बार 32 वां चुनाव लड़ रहा हूं।
चुनाव लड़ने के लिए और प्रचार में धन-बल की जरूरत पड़ती है, ये कहां से आते हैं?
मुझे तो चुनाव लड़ने के लिए जनता ही रुपए देती है। चंदा मिलता है और चुनाव लड़ लेता हूं। कभी कुछ कमी हुई तो घर के सामान और बकरियां तक बेच दी और जो भी रुपए मिले, उसे चुनाव प्रचार में खर्च कर दिया। चुनावों में चंदे में करीब लाख रुपए तक लोग दे देते हैं।
लगातार चुनाव लड़ते ही जा रहे है और हारते जा रहे हैं, कितने चुनाव और लड़ेंगे ?
रुकना ही नहीं है। जिंदा हूं तब तक चुनाव लड़ता रहूंगा। आगामी लोकसभा चुनाव भी लड़ने वाला हूं। मेरा सरकारों से एक ही सवाल है कि हकदार किसानों को जमीन आपने क्यों नहीं दी? जब तक ये हक आप नहीं देंगे, मैं चुनाव लड़ता रहूंगा। मेरे मरने के बाद बच्चे अपने आप सोचें और देखें कि वो क्या करना चाहते हैं।
इस बार जीत को लेकर क्या लगता है?
पक्की जीत मिलेगी, पूरा विश्वास है इस बार। मेरे सामने गुरमीत कुन्नर और सुरेन्द्रपाल टीटी चुनाव मैदान में हैं। दोनों ही मुझे मिलते हैं, लेकिन कभी भी इन दोनों उम्मीदवारों से मेरी चुनाव लड़ने और नहीं लड़ने को लेकर कोई बात नहीं हुई। गांव के लोग तो हमेशा कहते हैं कि आप मेहनत करो, एक दिन जीत जाओगे।
आपके परिवार में कौन-कौन हैं, घर का खर्चा कैसे चलाते हैं?
मेरी तीन बच्चियां और 2 बच्चे हैं। आज तक मैंने दिहाड़ी मजदूरी करके ही घर चलाया है। बच्चे भी दिहाड़ी मजदूरी ही करते हैं। दो पोतियां हैं, जिन्होंने ग्रेजुएशन कर ली है और अब नौकरी की तलाश में हैं।
क्या कभी परिवार के लोग चुनाव लड़ने से मना नहीं करते?
नहीं, ये तो मेरा अपना फैसला है। बच्चे दिन में दिहाड़ी मजदूरी करते हैं और इसके बाद चुनाव प्रचार में मेरे साथ जाते हैं। अभी आपको जो मेरे साथ मिला था, वो मेरा भतीजा है और चुनाव प्रचार में मेरे साथ दिन भर गांवों में था। प्रचार पैदल ही करना होता है, ऐसे में रोज दो पिंड (गांव) में जाकर वोट मांगते हैं। ऐसे ही चुनाव आते-आते पूरी विधानसभा तक पहुंच जाएंगे। लोगों से प्रचार में हाथ जोड़ कर कहता हूं कि वोट दो।
क्या चुनाव जीतकर विधायक-सांसद बनना ही आपका मकसद है?
नहीं-नहीं, ऐसा नहीं है। जिस दिन भूमिहीन किसानों को उनके हक की जमीन मिल जाएगी और उनके नाम में खातेदारी दर्ज हो जाएगी, उसी दिन चुनाव लड़ना छोड़ दूंगा। अब तक जिन लोगों के सामने चुनाव लड़ा हूं, उनमें से तो कुछ अब इस दुनिया में भी नहीं हैं। जमीनों का हक दिलाने की तो छोड़िए, आज तक कोई नेता मुझसे वोट मांगने भी नहीं आया।
अब तक तो चुनाव लड़कर बर्बाद ही हुए, अब तो कुछ हक दिला दीजिए- पत्नी
सरदार तीतर सिंह की पत्नी ने हमें बताया कि आज तक तो चुनाव लड़कर हम बर्बाद ही हुए हैं। हालांकि हमने कभी भी उन्हें चुनाव लड़ने से मना नहीं किया। हर बार सभी घर वालों ने साथ दिया है। लेकिन अब तो सरकार को भी चाहिए कि मांगों को माने और हमें कुछ न कुछ हक दिलाए।
आज तक जितना अभी कमाया है, वो सब चुनावों में खर्च कर दिया है। यहां तक की घर की बकरियां तक बेच दीं। न सिर्फ बच्चों की कमाई बल्कि लोगों से उधार रुपए लेकर भी चुनाव में खर्च किए हैं।
जब तक सरकार से जीतेंगे नहीं, दादाजी मानेंगे नहीं- पोती
सरदार तीतर सिंह की बड़ी पोती गुरप्रीत कौर ने बताया कि दादाजी बड़े जिद्दी हैं। उनकी सोच है कि जब तक सरकार हमारी बात नहीं मानेगी, तब तक वो चुनाव लड़ना नहीं छोड़ेंगे। नहरी क्षेत्र की सरकारी जमीनों पर भूमिहीन किसानों का हक है, लेकिन उन्हें उनके हक से वंचित कर रखा है। इसे दूर करने के लिए ही वो चुनाव लड़ रहे हैं। यही उनका जुनून और मकसद है।
गुरप्रीत कहती हैं- लोग आज रुपयों वालों को वोट देते हैं, जबकि उन्हें गरीब और ईमानदार लोगों को जिताना चाहिए। हमारे गांव से दादाजी को हर बार 300 वोट मिलते हैं। चुनावों में लोग बातों से तो सपोर्ट करते हैं, लेकिन आखिरी दिन धनबल से सब बदल दिया जाता है। गुरप्रीत ने बताया कि वो REET की तैयारी कर रही हैं।
तीतर सिंह की दूसरी पोती ऋतु कौर कहती हैं, अब दादाजी के बाद उनकी इस राजनीतिक विरासत को कौन आगे ले जाएगा, ये तो अभी हमने कुछ सोचा नहीं है। देखते है आगे क्या होता है ?
दस बार लोकसभा और दस बार विधानसभा चुनाव लड़ने का दावा
तीतर सिंह दस बार लोकसभा चुनाव, दस बार विधानसभा चुनाव, 11 बार जिला परिषद अध्यक्ष और सरपंच और वार्ड सदस्यता चुनाव लड़ने का दावा करते हैं। कई बार तो दो-दो सीट से चुनाव लड़ चुके हैं। हालांकि रिकॉर्ड में देखने पर हमें 6 विधानसभा और 4 लोकसभा चुनावों की जानकारी पुख्ता हो पाई है। 1985 के चुनाव में उन्हें 946 वोट हासिल हुए थे, जबकि 2018 में 653 मत।
उनके हलफनामे के अनुसार, वर्तमान में वह 78 वर्ष के हैं, उनकी तीन बेटियां, दो बेटे और पोते-पोतियां हैं। उनके पास महज 2500 रुपए कैश है, जो किसी बैंक में जमा नहीं। कोई जमीन और गाड़ी उनके पास नहीं है। हर बार चुनाव हारने पर उनकी जमानत जब्त हुई है।