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वो नेता जिनके लिए पार्टी बदलना नहीं मुश्किल:चार पार्टियों से लड़ने वाली नेता बनीं विधानसभा अध्यक्ष, एकमात्र मुस्लिम चेहरा जो बीजेपी-कांग्रेस दोनों से MLA बना


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वो नेता जिनके लिए पार्टी बदलना नहीं मुश्किल:चार पार्टियों से लड़ने वाली नेता बनीं विधानसभा अध्यक्ष, एकमात्र मुस्लिम चेहरा जो बीजेपी-कांग्रेस दोनों से MLA बना

वो नेता जिनके लिए पार्टी बदलना नहीं मुश्किल:चार पार्टियों से लड़ने वाली नेता बनीं विधानसभा अध्यक्ष, एकमात्र मुस्लिम चेहरा जो बीजेपी-कांग्रेस दोनों से MLA बना

Rajasthan Election 2023: विधानसभा चुनाव से पहले राजस्थान में नेताओं के पार्टियां बदलने और पुराने बागियों के पार्टियों में फिर से शामिल होने का दौर जारी है। देवीसिंह भाटी, सुभाष महरिया, राजेंद्र सिंह गुढ़ा, धनसिंह रावत जैसे कई नाम हैं जिन्होंने हाल ही में अपनी पार्टियां बदलीं।

चुनावों से पहले नेताओं का पाला बदलना आम बात है। मगर ऐसे कई नेता हैं ऐसे भी हैं जिन्होंने लगातार अपनी पार्टियां बदलीं। दो या उससे ज्यादा पार्टियों से चुनाव लड़े। कई नेता ऐसे भी हैं जो बीजेपी और कांग्रेस जैसी दोनों बड़ी पार्टियों से चुनाव लड़े और विधायक बने।

एक नेत्री तो ऐसी भी हैं जिन्होंने चार अलग-अलग पार्टियों से चुनाव लड़ा। किसी में मंत्री बनीं तो किसी में विधानसभा अध्यक्ष। इस स्टोरी में हम जानेंगे ऐसे नेताओं के बारे में जो अक्सर अपनी सहूलियत के अनुसार पार्टी बदलते नजर आए हैं…

सुभाष महरिया : तीन बार बीजेपी से सांसद रहे, बागी होकर निर्दलीय लड़े, फिर कांग्रेस से चुनाव लड़े

सुभाष महरिया बीजेपी के कद्दावर जाट नेताओं में गिने जाते हैं। महरिया ने पहला चुनाव 1998 लोकसभा का लड़ा और जीता। इसके बाद 1999 में वे दोबारा सांसद चुने गए। इस दौरान पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में महरिया केंद्र में ग्रामीण विकास के मंत्री बने। इसके बाद 2004 में भी महरिया ने तीसरा चुनाव जीता। साल 2010 में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य बने।

सुभाष महरिया को फिलहाल लक्ष्मणगढ़ विधानसभा सीट से भाजपा ने प्रत्याशी घोषित किया है। यहां उनका मुकाबला कांग्रेस के गोविंद सिंह डोटासरा से हो सकता है।
सुभाष महरिया को फिलहाल लक्ष्मणगढ़ विधानसभा सीट से भाजपा ने प्रत्याशी घोषित किया है। यहां उनका मुकाबला कांग्रेस के गोविंद सिंह डोटासरा से हो सकता है।

2014 में महरिया का टिकट बीजेपी ने काट दिया था। इसके बाद महरिया ने 2014 में सीकर लोकसभा से निर्दलीय सांसद का चुनाव लड़ा मगर हार गए। 2016 में महरिया ने कांग्रेस जॉइन कर ली।

महरिया को कांग्रेस ने टिकट देकर 2019 का लोकसभा चुनाव लड़वाया। यहां महरिया को दोबारा हार मिली। दोनों बार सुमेधानन्द सरस्वती ने उन्हें हराया था।

हाल ही में महरिया ने एक बार फिर बीजेपी जॉइन कर ली। उनके बीजेपी में शामिल होने के बाद पार्टी ने उन्हें पहली लिस्ट में ही लक्ष्मणगढ़ से टिकट दे दिया। यहां से कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष और लगातार तीन बार के विधायक गोविंद सिंह डोटासरा चुनाव लड़ते हैं।

राजेंद्र गुढ़ा : तीसरी बार बदली पार्टी

राजेंद्र गुढ़ा उन नेताओं में गिने जाते हैं जो लगातार पार्टियां बदलते रहे हैं। गुढ़ा ने 2008 में पहली बार चुनाव परिसीमन के बाद नई बनी सीट उदयपुरवाटी से बीएसपी के टिकट पर लड़ा था। साल 2008 में बीएसपी से चुनाव लड़कर जीते गुढ़ा जल्द ही कांग्रेस में शामिल हो गए। इसके बाद उन्हें राज्यमंत्री बनाया गया। अगला चुनाव 2013 में गुढ़ा ने कांग्रेस के टिकट पर लड़ा। मगर बीजेपी के शुभकरण चौधरी से हार गए।

हाल ही में राजेन्द्र गुढ़ा ने चौथी बार पार्टी बदलते हुए शिवसेना का दामन थामा है।
हाल ही में राजेन्द्र गुढ़ा ने चौथी बार पार्टी बदलते हुए शिवसेना का दामन थामा है।

2018 का चुनाव लड़ने से पहले गुढ़ा ने एक बार फिर पाला बदला और बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़कर जीत भी गए। 2018 के चुनाव परिणामों के बाद गुढ़ा सहित बीएसपी के 6 विधायकों ने कांग्रेस सरकार काे समर्थन दे दिया। गुढ़ा ने एक बार फिर कांग्रेस जॉइन कर ली। इसके बदले उन्हें सरकार में मंत्री बनाया गया।

4 साल तक मंत्री रहने के बाद राजेंद्र गुढ़ा सरकार के विरोध में मुखर हो गए। इसी दौरान विधानसभा में सरकार के खिलाफ सवाल उठाने पर गुढ़ा को मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया। इसके बाद गुढ़ा लाल डायरी लेकर आए। लाल डायरी के माध्यम से गुढ़ा ने सीएम अशोक गहलोत के करीबी धर्मेंद्र राठौड़ पर कई आरोप लगाए। हाल ही में गुढ़ा ने शिवसेना ज्वॉइन कर ली है। ये चौथी बार है जब गुढ़ा ने पार्टी बदली। अब वे शिवसेना के टिकट पर अब चुनाव लड़ सकते हैं।

घनश्याम तिवाड़ी : बीजेपी छोड़ खुद की पार्टी बनाई, फिर कांग्रेस में शामिल हुए, अब फिर मूल पार्टी में वापसी

यूं तो घनश्याम तिवाड़ी को उन नेताओं में गिना जाता है जिन्होंने राजस्थान में भाजपा को स्थापित करने का काम किया। मगर कई दशकों तक भाजपा से जुड़े रहने के बाद तिवाड़ी ने पार्टी छोड़ दी थी।

घनश्याम तिवाड़ी ने 1980 में पहली बार सीकर से विधानसभा चुनाव लड़ा। इसके बाद 6 बार विधायक रहे। सीकर विधानसभा सीट के बाद वे चौमूं और फिर सांगानेर सीट से भी चुनाव लड़े। तिवाड़ी इस दौरान भैरोंसिंह शेखावत और वसुंधरा राजे दोनों की सरकारों में मंत्री रहे। हालांकि 2009 में वे जयपुर सीट से सांसद का चुनाव हार गए।

घनश्याम तिवाड़ी को बीजेपी ने फिलहाल राज्यसभा सांसद बनाया है।
घनश्याम तिवाड़ी को बीजेपी ने फिलहाल राज्यसभा सांसद बनाया है।

भाजपा संगठन में भी कई अहम पदों पर रहे। मगर पूर्व सीएम वसुंधरा राजे से विवाद के चलते 2018 में चुनाव से ठीक पहले तिवाड़ी ने भाजपा छोड़ खुद की पार्टी भारत वाहिनी बनाई की घोषणा कर दी। 2018 में उन्होंने खुद की पार्टी से चुनाव लड़ा, कई सीटों पर भी टिकट दिए, मगर हार गए। बीजेपी छोड़ने के सालभर में ही तिवाड़ी ने कांग्रेस जॉइन कर ली। राहुल गांधी की मौजूदगी में तिवाड़ी कांग्रेस में शामिल हुए। मगर सालभर के भीतर ही तिवाड़ी वापस बीजेपी में आ गए। बीजेपी में दोबारा शामिल होने के बाद उन्हें राजस्थान से राज्यसभा सांसद बनाया गया।

विश्वेंद्र सिंह : जनता दल से शुरू की राजनीति पारी

विश्वेंद्र सिंह भी उन नेताओं में हैं जिन्होंने कई पार्टियां बदली। अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत जनता दल से की। 1989 में विश्वेंद्र सिंह पहली बार जनता दल से लोकसभा सासंद बने। इसके बाद जनता दल छोड़कर भारतीय जनता पार्टी जॉइन कर ली। विश्वेंद्र ने 1999 और 2004 में भरतपुर से बीजेपी के प्रत्याशी के तौर पर सांसद का चुनाव लड़ा और दोनों बार जीते।

विश्वेंद्र सिंह का भाजपा के अपने साथी नेता दिगम्बर सिंह से विवाद हो गया। इस विवाद के बाद विश्वेंद्र सिंह ने बीजेपी छोड़ कांग्रेस जॉइन कर ली। विधानसभा चुनाव 2008 में विश्वेंद्र ने डीग-कुम्हेर से कांग्रेस के टिकट पर दिगम्बर सिंह के खिलाफ चुनाव लड़े मगर हार गए। फिर 2013 और 2018 में लगातार विश्वेंद्र सिंह डीग-कुम्हेर से विधायक बने। 2018 में जीत के बाद कांग्रेस सरकार में विश्वेंद्र मंत्री बने।

विश्वेंद्र सिंह लगातार पार्टी बदलने वाले नेताओं में शुमार हैं और कई विवादों के कारण भी वे अक्सर सुर्खियों में रहते हैं।
विश्वेंद्र सिंह लगातार पार्टी बदलने वाले नेताओं में शुमार हैं और कई विवादों के कारण भी वे अक्सर सुर्खियों में रहते हैं।

2020 में मानेसर एपिसोड के दौरान सचिन पायलट के साथ बगावत करने वाले नेताओं में विश्वेंद्र सिंह भी थे। बगावत के चलते विश्वेंद्र को भी मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया था। मगर बाद में सचिन पायलट और अशोक गहलोत गुट में समझौते के बाद मंत्रिमंडल विस्तार में विश्वेंद्र सिंह को दोबारा से मंत्री बना दिया गया। कभी पायलट गुट के विश्वस्त नेताओं में गिने जाने वाले सिंह फिलहाल अशोक गहलोत के खेमे में दिखाई देते हैं।

हबीबुर्रहमान : एक मात्र मुस्लिम चेहरा जो दोनों पार्टियों से विधायक बना

हबीर्बुर रहमान उन चुनिंदा नेताओं में हैं जो बीजेपी और कांग्रेस दोनों प्रमुख पार्टियों से विधायक रहे हैं। रहमान तीन बार कांग्रेस तो दो बार बीजेपी से विधायक रहे हैं। रहमान ने 1990 में पहली बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा। पहला चुनाव मूंडवा सीट से लड़ा था। बाद 1993 और 1998 में भी इसी सीट से कांग्रेस से विधायक बने। मगर 2003 में वे हार गए। परिसीमन के बाद कांग्रेस से टिकट कटने पर रहमान बीजेपी में शामिल हो गए।

हबीबुर्रहमान कांग्रेस के बाद बीजेपी में गए और फिर कांग्रेस का दामन थामा।
हबीबुर्रहमान कांग्रेस के बाद बीजेपी में गए और फिर कांग्रेस का दामन थामा।

2008 के विधानसभा चुनाव में रहमान बीजेपी के टिकट पर नागौर सीट से लड़े और जीते। इसके बाद 2013 में भी बीजेपी सीट से चुनाव जीते और विधायक बने। मगर 2018 में बीजेपी ने रहमान का टिकट काट दिया गया। इसके बाद रहमान एक बार फिर कांग्रेस में शामिल हो गए और नागौर से चुनाव लड़ा। मगर वे चुनाव हार गए।

सुमित्रा सिंह : चार पार्टियों से 12 बार लड़ा विधायक का चुनाव, विधानसभा अध्यक्ष भी रहीं

सुमित्रा सिंह राजस्थान की सबसे ज्यादा बार विधायक रहने वाली नेताओं में से एक हैं। अपने जीवन में उन्होंने 12 विधानसभा चुनाव लड़े, जिनमें से 9 जीते। सुमित्रा सिंह कई पार्टियों से चुनाव लड़ी। अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत उन्होंने कांग्रेस से की। 1957 से लेकर 1980 तक सुमित्रा सिंह कांग्रेस के टिकट पर विधायक बनीं।

वहीं 1985 का चुनाव सुमित्रा ने लोकदल के टिकट पर लड़ा और जीता। इसके बाद 1990 में जनता दल में शामिल हुईं और चुनाव लड़ा। एकक बार फिर सुमित्रा सिंह कांग्रेस में शामिल हो गईं और 1993 का चुनाव लड़ा। 1998 में कांग्रेस से टिकट नहीं मिलने के बाद सुमित्रा सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़कर जीत हासिल की। इसके बाद सुमित्रा बीजेपी में शामिल हो गईं। 2003 में बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा। उन्हें विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया। सुमित्रा राजस्थान विधानसभा की पहली महिला विधानसभा अध्यक्ष रहीं हैं।

सुमित्रा सिंह राजस्थान में एक मात्र नेता हैं जो चार-चार पार्टियों के सिंबल से विधायक रह चुकी हैं।
सुमित्रा सिंह राजस्थान में एक मात्र नेता हैं जो चार-चार पार्टियों के सिंबल से विधायक रह चुकी हैं।

हालांकि इसके बाद सुमित्रा सिंह झुंझुनू सीट से अपना आखिरी चुनाव हार गईं। मगर सुमित्रा उन नेताओं में गिनी जाती हैं जिन्होंने कई पार्टियां बदली, झुंझूनूं के अलावा मंडावा और पिलानी की सीटों से चुनाव लड़ा और 9 बार जीत हासिल की।

प्रताप सिंह खाचरियावास : कभी थे बीजेपी के युवा मोर्चा अध्यक्ष, अब कांग्रेस में मंत्री

कांग्रेस में वर्तमान मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने अपना राजनीतिक करियर बीजेपी की स्टूडेंट इकाई और यूथ विंग से शुरू किया था। राजस्थान यूनिवर्सिटी से 1992 के छात्रसंघ अध्यक्ष के तौर पर अपना करियर शुरू करने वाले प्रताप सिंह बीजेपी के युवा मोर्चा के अध्यक्ष भी रहे। मगर बाद में वे कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस ने उन्हें सिविल लाइंस सीट से टिकट दिया और 2008 में पहली बार विधायक बने। 2013 में हार के बाद 2018 में फिर जीते और राजस्थान में मंत्री बने।

प्रताप सिंह खाचरियावास ने राजनीतिक करियर भाजपा की यूथ विंग से किया था।
प्रताप सिंह खाचरियावास ने राजनीतिक करियर भाजपा की यूथ विंग से किया था।

हनुमान बेनीवाल : इनेलो से राजनीति में आए, अब खुद की पार्टी से चुनाव

हनुमान बेनीवाल राजस्थान के प्रभावशाली नेताओं में गिने जाते हैं। साल 2003 में उन्होंने पहला चुनाव भाजपा के खिलाफ इनेला से लड़ा, लेकिन हार गए थे। इसके बाद उन्होंने भाजपा जॉइन कर ली। अपने ही क्षेत्र के पूर्व मंत्री युनूस खान और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के साथ विवाद के बाद बेनीवाल को बीजेपी से निष्कासित किया गया था। इसके बाद बेनीवाल ने अपनी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी बनाई। आरएलपी 2018 में पहली बार चुनावों में उतरी और 3 सीटें जीती।

विधानसभा चुनाव में जीत के बाद लोकसभा चुनाव में आरएलपी से भाजपा ने गठबंधन किया और हनुमान बेनीवाल ने नागौर से सांसद का चुनाव जीता। मगर 2020 में हुए किसान आंदोलन में किसानों का समर्थन करने के साथ ही बेनीवाल का भाजपा से गठबंधन टूट गया। हाल ही में बेनीवाल को राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत से नजदीकी बताया जा रहा है। हालांकि बेनीवाल की पार्टी विधानसभा चुनाव 2023 में किसी छोटी पार्टी से गठबंधन की बात कर रही है।

हनुमान बेनीवाल ने बीजेपी से गठबंधन किया था लेकिन किसान आंदोलन के बाद इसे तोड़ दिया।
हनुमान बेनीवाल ने बीजेपी से गठबंधन किया था लेकिन किसान आंदोलन के बाद इसे तोड़ दिया।

जगदीप धनखड़ : मौजूदा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भी लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनाव लड़े और जीते। धनखड़ ने जनता दल और कांग्रेस दो पार्टियों से चुनाव लड़ा। 1993 में एक बार ही विधायक बने थे। तब किशनगढ़ से वे कांग्रेस के विधायक रहे थे। धनखड़ ने कांग्रेस से अजमेर लोकसभा चुनाव भी लड़ा। बाद में उनकी नजदीकियां आरएसएस व बीजेपी से बढ़ीं। धनखड़ पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहते हुए उपराष्ट्रपति बने।

ये नेता भी बदल चुके पार्टियां

इसके अलावा भी कई ऐसे नेता हैं जो अलग अलग पार्टियों से चुनाव लड़े। वर्तमान में मंत्री रमेश मीणा ने निर्दलीय और फिर बसपा से चुनाव लड़ा है। अब वे कांग्रेस के साथ हैं और मंत्री हैं। मुरारीलाल मीणा भी बीएसपी और कांग्रेस से चुनाव लड़े।

  • देवली-उनियारा से कांग्रेस विधायक हरीश मीणा पहले बीजेपी में थे। उन्होंने दौसा से चुनाव लड़ा और अपने भाई नमोनारायण मीणा को हराया। 2018 में वे कांग्रेस में शामिल हो गए।
  • भाजपा के नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ भी पहले जनता दल में हुआ करते थे। अब वे बीजेपी के साथ हैं।
  • राजकुमार शर्मा, रामकेश मीणा, बंशीधर बाजिया, नवलकिशोर शर्मा, नंदकिशोर महरिया, रोहिताश्व शर्मा, जसवंत यादव सहित कई ऐसे नेता हैं जिन्होंने पार्टियां बदली और चुनाव लड़े भी।
  • देवी सिंह भाटी, किरोड़ीलाल मीणा जैसे ऐसे कई नेता भी रहे जिन्होंने पार्टियां छोड़ी और बाद में वापस शामिल भी हो गए।
देवी सिंह भाटी को हाल ही में बीजेपी में शामिल किया गया है।
देवी सिंह भाटी को हाल ही में बीजेपी में शामिल किया गया है।

पार्टियां बदलने के पीछे क्या हैं फैक्टर

वरिष्ठ पत्रकार और पत्रकारिता यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति सनी सेबेस्टियन बताते हैं कि राजनीति में कई चीजें बदल गई हैं। पहले बीजेपी या जनसंघ से कांग्रेस में आना मुश्किल था। वहीं कांग्रेस का कोई लीडर जनसंघ में आए यह सवाल नहीं उठता था। विचारधारा का अंतर साफ था। मगर अब विचारधारा की जो लाइन थी वो काफी पतली हो गई।

सनी बताते हैं कि पहले किसी पार्टी को मजॉरिटी नहीं मिली तो वो पार्टी छोड़ देते थे, मगर अब सरकारें गिराकर भी बनाने का चलन शुरू हो गया है। राजनेताओं का स्तर गिर गया है इसलिए दूसरी पार्टी में जाना आसान हो गया।

सन्नी सेबेस्टियन, राजनीतिक विशलेषक।
सन्नी सेबेस्टियन, राजनीतिक विशलेषक।

नेता पार्टी तो बदल लेते हैं मगर उन्हें एडजस्टमेंट में समस्या आती है। उन्हें एक तो लोकल स्तर पर चुनौती मिलती रहती है। साथ ही विचारधारा के साथ एडजस्टमेंट नहीं हो पाता है। जनता में छवि पर भी असर पड़ता है। लोग नेताओं को सीरियसली लेना भी बंद कर देते हैं।

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