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‘बारावफात’, ‘ईद ए मीलाद’ या ‘मीलादुन्नबी’


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धर्म/ज्योतिष

‘बारावफात’, ‘ईद ए मीलाद’ या ‘मीलादुन्नबी’

बारावफात या फिर जिसे मीलाद उन नबी के नाम से भी जाना जाता है, यह दिन इस्लाम मजहब का एक महत्वपूर्ण दिन है क्योंकि इसी दिन इस्लाम धर्म के संस्थापक मोहम्मद साहब का जन्म हुआ था और इसके साथ ही इसी तारीख को उनका इंतकाल भी हुआ था।

इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार 12 रबी अल अव्वल की तारीख को पड़ने वाले इस दिन को पूरे विश्व भर के विभिन्न मुस्लिम समुदायों द्वारा काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन लोग मस्जिदों में जाकर नमाज अदा करते हुए, मोहम्मद साहब के दिखाये हुए रास्ते को अपनाने का संकल्प लेते है।

‘बारावफात’, ‘ईद ए मीलाद’ या ‘मीलादुन्नबी’ क्या है 

12 वफात एक इस्लामिक त्यौहार है। इस दिन इस्लाम धर्म के संस्थापक प्रोफेट मोहम्मद के जन्म और इंतकाल का दिन माना जाता है। मान्यता है कि रबी-अल-अव्वल के 12वें दिन पैगंबर मुहम्मद दुनिया से रुखसत हो गए थे। इस लिए इसे 12 वफात का दिन मनाया जाता है। इसी दिन पैगंबर मुहम्मद का जन्मदिन और रूख्सत का दिन दोनो मनाया जाता है।

बारावफात दो शब्दो से मिलकर बना है जहां बारा का मतलब 12 से है और वफात का मतलब है इंतकाल यानी मौत से है। इस दिन मुस्लिम भाई मस्जिदों में जाकर नमाज़ पढ़ते हैं, उपदेश सुनते है और धार्मिक कार्य भी करते है।

‘बारावफात’, ‘ईद ए मीलाद’ या ‘मीलादुन्नबी’ का महत्व

इस्लाम धर्म को मानने वाले लोगो के लिए 12 वफात का दिन बहुत ही खास और महत्वपूर्ण होता है। 12 वफात के नाम से जाने जाने वाला इस्लाम धर्म के आखरी पैगंबर हज़रत मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जन्म और और मृत्यु के संदर्भ में मनाया जाता है। इनका जन्म जन्म 570 ई. को मक्का में हुआ था और मृत्यु 632 ई. को मदीना में हुआ था। यह त्यौहार पैगंबर हज़रत मुह़म्मद के जीवन, उनकी शिक्षाओं और ज्ञान को याद करने के रूप में मनाया जाता है।

12 वफात का महत्व इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि इस दिन पैगंबर के बताए रास्ते को याद करते हुए इस्लाम के पवित्र ग्रंथ कुरान को भी पढ़ा जाता है। मान्यता है कि 12 वफात के दिन जो भी पैगंबर के नियम या बताए रास्ते पर चलता है और पूरे नियम निभाता है। वो व्यक्ति अल्लाह के बेहद करीब चला जाता है। इसलिए बारावफात मुसलमानों के लिए प्रमुख त्यौहारों में से एक है।

‘बारावफात’, ‘ईद ए मीलाद’ या ‘मीलादुन्नबी’ के नाम

12 वफात मुसलमानो का बहुत ही खास और महत्वपूर्ण त्यौहार होता है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार पैगंबर मोहम्मद का जन्म रबी अल-अव्वल महीने के 12वें दिन पड़ता है। इसी दिन 12 वफात मनाया जाता है। 12 Wafat के अलावा इसके अन्य और भी नाम है जैसे कि ईद-मिलादुन्नबी (मिलाद-उन-नबी), बारावफात, ईद-ए-मिलाद इत्यादि के नाम से भी इसे जाना जाता है।

‘बारावफात’, ‘ईद ए मीलाद’ या ‘मीलादुन्नबी’ कब मनाया जाता है

12 Wafat यानी Barawafat इस्लामिक कैलेंडर हिजरी के अनुसार तीसरे महीने रबी अल अव्वल के बारहवें दिन को मनाया जाता है। क्योंकि इसी दिन पैगंबर मोहम्मद का जन्म हुआ था और इनके जन्म को एक पर्व को तरह मनाया जाता है जिसे ईद मिलाद उन-नबी के नाम से भी जाना जाता है। बारावफात के दिन एक दिन के लिए भारत में राजपत्रित अवकाश होता है।

इस इस्लाम धर्म के त्योहार बारावफात या ईद मिलाद उन-नबी को मनाए जाने को लेकर सुन्नी और शिया में काफी विवाद भी बना रहता है की इस त्योहार को सुन्नी मुसलमान के अनुसार रबी अल अव्वल महीने के 12 वे दिन मानना चाहिए तो तो वही शिया मुसलमानों के अनुसार इस त्योहार को महीने के 17 वे दिन मनाना चाहिए।

‘बारावफात’, ‘ईद ए मीलाद’ या ‘मीलादुन्नबी’ कैसे मनाते है

बारावफात मनाने का सीधा मकसद हजरत मुहम्मद के जन्मदिन को पर्व की तरह मनाने से है। इस दिन सभी मुस्लिम भाई लोग रात भर मस्जिदों में इबादत करते है और खास तौर पर घर घर इस्लाम के पवित्र ग्रंथ कुरान पढ़ते है और गरीबों को कपड़े, पैसे या जरूरत की समानों को दान देते है। ईद मिलाद उन-नबी के दिन शहद बांटने का खास महत्व है क्योंकि हजरत मुहम्मद को शहद बहुत ही पसंद था।

बारावफात के दिन मुस्लिम भाई पैगंबर मुहम्मद के खास प्रतीक को एक ताबूत में रखकर जुलूस निकालते है और हज़रत मुहम्मद कितने महान थे इसको बताते हुए शांति का संदेश भी देते है। इस दिन कई तरह के आयोजन किए जाते है जिसमे हज़रत मुहम्मद के शान में कई नज़्म पढ़े एवम गाने गाए जाते है। बारावफात में घरों को अच्छे से सजाते है, अच्छे अच्छे पकवान बनाना तथा एक दूसरे से मिलकर भाईचारगी का संदेश देते है।

‘बारावफात’, ‘ईद ए मीलाद’ या ‘मीलादुन्नबी’ क्यों मनाया जाता है? 

बारावफात या फिर जिसे ‘ईद ए मीलाद’ या ‘मीलादुन्नबी’ के नाम से भी जाना जाता है, ईस्लाम धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। पूरे विश्व भर में मुसममानों के विभिन्न समुदायों द्वारा इस दिन को काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है क्योंकि मानवता को सच्चाई और धर्म का संदेश देने वाले पैंगबर हजरत मोहम्मद साहब का जन्म इसी दिन हुआ था और इसी तारीख को उनका देहांत भी हुआ था। ऐसा माना जाता है कि अपने इंतकाल से पहले मोहम्मद साहब बारह दिनों तक बीमार रहे थे।

बारा का मतलब होता है बारह और वफात का मतलब होता है इंतकाल और क्योंकि बारह दिनों तक बीमार रहने के पश्चात इस दिन उनका इंतकाल हो गया था इसलिए इस दिन को बारावफात के रुप में मनाया जाता है। यहीं कारण है कि इस्लाम में बारावफात को इतने उत्साह के साथ मनाया जाता है।

इसके साथ ही इस दिन को ‘ईद ए मीलाद’ या ‘मीलादुन्नबी’ के नाम से भी जाना जाता है। जिसका मतलब होता है मुहम्मद के जन्म का दिन क्योंकि मोहम्मद साहब का जन्म भी इसी दिन हुआ था। यही कारण है शिया जैसे मुस्लिम समुदाय द्वारा इस दिन को जश्न और उत्सव के रुप में भी मनाया जाता है।

‘बारावफात’, ‘ईद ए मीलाद’ या ‘मीलादुन्नबी’ कैसे मनाया जाता है – रिवाज एवं परंपरा 

बारावफात के इस पर्व को मनाने को लेकर शिया तथा सुन्नी समुदाय के अपने अलग-अलग मत है। जिसके कारण इसे विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है। सामान्यतः इस दिन मुस्लिमों के विभिन्न समुदायों द्वारा पैगंबर मोहम्मद के द्वारा बताये गये मार्गों और विचारों को याद किया जाता है तथा कुरान का पाठ किया जाता है।

इसके साथ ही बहुत सारे लोग इस दिन मक्का मदीना या फिर दरगाहों जैसे प्रसिद्ध इस्लामिक दर्शन स्थलों पर जाते है। ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इस दिन को नियम से निभाता है। वह अल्लाह के और भी करीब हो जाता है और उसे अल्लाह की विशेष रहमत प्राप्त होती है।

इस दिन रात भर प्रार्थनाएं की जाती है, सभाओं का आयोजन किया जाता है। तमाम प्रकार के जुलूस निकाले जाते है। इस हजरत मोहम्मद साहब के जन्म की खुशी में जो गीत गाया जाता है, उसे मौलूद कहा जाता है। इस संगीत को लेकर ऐसा माना जाता है कि इस संगीत को सुनने वाले को स्वर्ग नसीब होता है। इसके साथ ही इस दिन लोगो द्वारा उनके जयंती की खुशी में मिठाईयां भी बांटी जाती है।

सुन्नी मुसलमानों द्वारा ‘बारावफात’, ‘ईद ए मीलाद’ या ‘मीलादुन्नबी’ मनाने का तरीका

बारावफात के दिन को सुन्नी समुदाय के मुसलमानों द्वारा मोहम्मद साहब के इंतकाल के कारण शोक के रुप में मनाया जाता है। इस दिन सुन्नीयों द्वारा मोहम्मद साहब के विचारों और मार्गों को याद किया जाता है। बारावफात के दिन सुन्नी समुदाय के लोग मस्जिदों में जाते है और पैगंबर मोहम्मद साहब के सीखो को अपने जीवन में अपनाने का प्रण लेते है। ताकि मोहम्मद साहब द्वारा मानवता को दिये गये तोहफे को और भी अच्छा बनाया जा सके।

शिया मुसलमानों द्वारा ‘बारावफात’, ‘ईद ए मीलाद’ या ‘मीलादुन्नबी’ मनाने का तरीका

शिया समुदाय के लोगो द्वारा इस दिन को काफी उत्साह तथा धूमधाम के साथ मनाया जाता है क्योंकि उन लोगो का मानना है कि इस दिन पैगंबर मुहम्मद द्वारा हजरत अली को अपना उत्तराधिकारी बनाया गया था। उनके लिए यह अवसर एक नये नेता के चुनाव के जश्न के रुप में मनाया जाता है। इसके साथ ही शिया समुदाय के लोग इस दिन को पैगंबर हजरत मुहम्मद के जन्मदिन के रुप में भी मनाते हैं।

‘बारावफात’, ‘ईद ए मीलाद’ या ‘मीलादुन्नबी’ मनाने की आधुनिक परंपरा 

हर पर्व के तरह बारावफात के त्योहार में भी कई सारे परिवर्तन हुए हैं। पहले के समय में इस त्योहार को काफी सादगी के साथ मनाया जाता था लेकिन वर्तमान में इस पर्व का आयोजन काफी वृहद स्तर पर किया जाता है। जिसमें काफी बड़े-बड़े जूलूसों का आयोजन किया जाता है। इसके साथ आज के समय कई स्थानों पर इन जुलूसों के दौरान बाइकसवारों द्वारा खतरनाक स्टंट और हुड़दंग भी किया जाता है। जो इस पर्व के सांख पर बट्टा लगाने का कार्य करते है।

हमें इस बात का अधिक से अधिक प्रयास करना चाहिए कि हम बारावफात के पारंपरिक महत्व को बनाये रखने का प्रयास करें ताकि लोगो के बीच मोहम्मद साहब के जीवन का सादगी और नेकी का संदेश जा सके। हमें इस बात पर गौर करना चाहिए कि बारावफात के त्योहार के दौरान किसी तरह का हुड़दंह या झड़प ना होने पाये क्योंकि इससे ना सिर्फ इस पर्व की छबि खराब होती है बल्कि सामाजिक सौहार्द को भी चोट पहुंचता है।

‘बारावफात’, ‘ईद ए मीलाद’ या ‘मीलादुन्नबी’ का महत्व

बारावफात के इस दिन को ‘ईद ए मिलाद’ (मीलाद उन-नबी) के नाम से भी जाना है जाता है। जिसका अर्थ है पैगंबर के जन्म का दिन। इस दिन रात भर तक सभाएं की जाती है और उनकी शिक्षा को समझा जाता है। इस दिन को लेकर ऐसी मान्यता है कि यदि इस दिन पैगंबर मोहम्मद साहब की शिक्षा को सुना जाये, मौत के बाद स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

इस दिन सभी मुस्लिम नमाज पड़ने के लिए मस्जिदों में जाते है। यह दिन हमें इस बात का एहसास दिलाता है कि भले ही पैगंबर मोहम्मद हमारे बीच में ना हो लेकिन उनकी शिक्षाए समाज को आज भी अच्छा बनाने का प्रयास कर रही हैं।

हमें इस बात पर अधिक से अधिक जोर देना चाहिये की उनकी यह अच्छी और महत्वपूर्ण शिक्षाएं हर मनुष्य तक पहुंचे क्योंकि आज के समय में उनके द्वारा बतायी गयी चीजों का लोग गलत अर्थ निकाल रहे हैं। जिसके कारण विश्व में इस्लाम के प्रति लोगो में गलत भावना देखने को मिल रही है।

इसलिए यह काफी आवश्यक है कि हम उनके दिखाये गये मार्ग को अपनाये और विश्व में शांति तथा भाईचारे के संदेश को कायम करें क्योंकि सिर्फ इसी के द्वारा मानव सभ्यता का कल्याण संभव है। यहीं कारण है कि हमें बारावफात के महत्व को समझना चाहिए और इसके वास्तविक अर्थ को अपने जीवन में आत्मसात करने का प्रयास करना चाहिए।

‘बारावफात’, ‘ईद ए मीलाद’ या ‘मीलादुन्नबी’ का इतिहास 

बारावफात के इस त्योहार का इतिहास काफी पुराना है। विभिन्न मुस्लिम समुदायों का इस पर्व को लेकर अपना अलग-अलग तर्क है। सुन्नी समुदाय द्वारा इस दिन को शोक के रुप में मनाया जाता है, वही शिया समुदाय द्वारा इस दिन को जश्न के रुप में मनाया जाता है। इसी तारीख को इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद साहब का जन्म हुआ था और इसी तारीख को उनका इंतकाल भी हुआ था।

इस्लाम के रुप में उनके द्वारा विश्व को एक शानदार तोहफा दिया गया था क्योंकि उनके द्वारा इस्लाम का संदेश देने से पहले अरब समाज में तमाम तरह की बुराईयां व्याप्त थी। लोगो द्वारा अपनी बेटियों को जिंदा जला दिया जाता था। जरा जरा सी बातों पर झगड़ा और तलवारों का इस्तेमाल करना आम बात थी। लेकिन रसूल के नबी मोहम्मद साहब ने इस्लाम के द्वारा लोगो को जीने का नया तरीका सीखाया।

उनके जीवन में उनकी उपलब्धियां अनगिनत हैं क्योंकि अपने शिक्षाओं द्वारा उन्होंने अरबों के कबिलाई समूहों को एक सभ्य समाज में बदल दिया। इस्लाम के पूर्व समाज में इन बुराईयों के कारण लोग छोटी-छोटी बातों पर एक दूसरे का कत्ल कर दिया करते थे। इस्लाम के आने के बाद अरब के बर्बर कबीलों में ना सिर्फ सभ्यता का उदय हुआ बल्कि की भाई-चारे का भी विकास हुआ और यह सब संभव सिर्फ इस्लाम और कुरान के संदेश के कारण हो पाया।

वैसे तो इस त्योहार को लेकर ऐसी मान्यता है कि यह पर्व पैगंबर मोहम्मद साहब के इंतकाल के बाद से ही मनाया जा रहा है। हालांकि सन् 1588 में उस्मानिया साम्राज्य के दौरान इस त्योहार को काफी लोकप्रियता मिली और तब से हरवर्ष की इस तरीख को काफी भव्य रुप से मनाया जाना लगा। यहीं कारण हर वर्ष इस्लामिक कैलेंडर की 12 रबी अल अव्वल को यह त्योहार इतने धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।

‘बारावफात’, ‘ईद ए मीलाद’ या ‘मीलादुन्नबी’ क्या है निष्कर्ष:

दोस्तों, आज हमने इस आर्टिकल में 12 Wafat Kya Hai, 12 Wafat का महत्व, 12 Wafat कब मनाया जाता है, कैसे मनाते है इत्यादि के बारे में समस्त जानकारी आपके समक्ष रखी। हम आशा करते है कि आपको यह आर्टिकल बहुत पसंद आई होगी। अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगी तो कृपया इसे जरूर शेयर करे और अगर आपके मन में इस आर्टिकल से संबंधित कोई सवाल या विचार है तो हमे नीचे comment करके आसानी से बता सकते है।

FAQ:

प्रश्न: ‘बारावफात’, ‘ईद ए मीलाद’ या ‘मीलादुन्नबी’ क्या है?

उत्तर: ‘बारावफात’, ‘ईद ए मीलाद’ या ‘मीलादुन्नबी’ एक इस्लामिक त्यौहार है। इस दिन इस्लाम धर्म के संस्थापक प्रोफेट मोहम्मद के जन्म और निधन का दिन माना जाता है। मान्यता है कि रबी-अल-अव्वल के 12वें दिन पैगंबर मुहम्मद दुनिया से रुखसत हो गए थे। इस लिए इसे 12 वफात का दिन मनाया जाता है।

प्रश्न: ईद-ए-मिलाद-उन-नबी का मतलब क्या है?

उत्तर: ईद-ए-मिलाद-उन-नबी का मतलब यह है इसी दिन पैगंबर मुहम्मद का जन्म हुआ था।

प्रश्न: ‘बारावफात’, ‘ईद ए मीलाद’ या ‘मीलादुन्नबी’ कब मनाया जाता है?

उत्तर: ‘बारावफात’, ‘ईद ए मीलाद’ या ‘मीलादुन्नबी’ इस्लामिक कैलेंडर हिजरी के अनुसार तीसरे महीने रबी अल अव्वल के बारहवें दिन को मनाया जाता है।

प्रश्न: पैगंबर मुहम्मद का जन्म और मृत्यु कब हुआ था?

उत्तर: पैगंबर मुहम्मद जन्म 570 ई. को मक्का में हुआ था और मृत्यु 632 ई. को मदीना में हुआ था।

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