पांच महीने पहले कोटा आई नीट स्टूडेंट ने किया सुसाइड:पिता एक महीने से नहीं कर रहे थे बात; हॉस्टल ने नहीं लगाया सिक्योरिटी डिवाइस
कोटा में पिछले 8 महीने में ये 25वां सुसाइड है। सुसाइड रोकने के लिए सरकार और प्रशासन भी अपने स्तर पर प्रयास कर रहा है। इधर, सुसाइड के मामले में शिक्षा मंत्री बीडी कल्ला ने कहा कि बच्चों का आईक्यू टेस्ट कर कोचिंग के लिए भेजना चाहिए।

कोटा : कोटा में स्टूडेंट्स के सुसाइड थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। यहां नीट तैयारी कर रही एक और छात्रा ने फंदा लगाकर अपनी जान दे दी। बताया जा रहा है कि छात्रा के पिता एक महीने से उससे बात नहीं कर रहे थे। घटना मंगलवार रात करीब 10 बजे विद्याधर नगर थाना क्षेत्र के इलेक्ट्रॉनिक कॉम्पलेक्स स्थित हॉस्टल की है। घटना के दौरान छात्रा के रूम का गेट खुला था। रूममेट ने उसे फंदे से झूलता देखा तो उसने शोर मचाया और दूसरे स्टूडेंट्स को जानकारी दी।

रांची की रहने वाली थी, पांच महीने पहले आई थी
एएसआई अमराराम ने बताया कि झारखंड के रांची की रहने वाली रिचा सिन्हा (16) पांच महीने पहले मई में कोटा आई थी। वार्डन अर्चना ने बताया कि एक महीने पहले बच्ची के पिता से बात हुई थी। तब कॉल कर उन्हें बेटी से आकर मिलने का कहा था। इस पर उन्होंने बताया था कि वे वे कुछ ही दिनों में आएंगे, लेकिन आए नहीं।
इधर, दो दिन से रिचा की तबीयत भी ठीक नहीं थी। उसे जुकाम और बुखार था। मंगलवार सुबह जब वह खाना खाने मैस में आई तो सुबह मेडिसिन दी थी, लेकिन शाम को उसने रूम में ही खाना मंगवाया।
रिचा की रूममेट आयशा ने बताया कि वह अपने पिता से बालकनी में बात कर रही थी, तभी रिचा ने बालकनी का गेट लगा दिया। रिचा ने जैसे ही फंदा लगाया तो वह शोर मचाने लगी। शोर मचाने पर स्टूडेंट और हॉस्टल के दूसरा स्टाफ रूम में पहुंचा और रिचा को निजी हॉस्पिटल ले गए, जहां उसे मृत घोषित कर दिया।

कोटा में पिछले 8 महीने में ये 25वां सुसाइड है। सुसाइड रोकने के लिए सरकार और प्रशासन भी अपने स्तर पर प्रयास कर रहा है। इधर, सुसाइड के मामले में शिक्षा मंत्री बीडी कल्ला ने कहा कि बच्चों का आईक्यू टेस्ट कर कोचिंग के लिए भेजना चाहिए।
बच्चे तनाव में नहीं कह पाते मन की बात
कोटा में सुसाइड रोकने के लिए कई बार गाइडलाइन बन चुकी है। लेकिन बच्चों को सुसाइड तक लाने वाले फैक्टर- अकेलापन, पढ़ाई का दबाव, बढ़ता कंपटीशन जैसे सब्जेक्ट पर कम ही बात होती है। पिछले दिनों राह नाम की एक संस्था ने कोटा में सर्वे किया। काउंसलिंग और हेल्पलाइन चलाई। इस दौरान दो बच्चियों अपने मन की बात बताई जो लगभग हर कोचिंग छात्र की परेशानी लगती है….
NGO – क्या हुआ आप परेशान लग रहे हो?
छात्रा- नहीं कुछ नहीं हुआ।
NGO – आपने बहुत मैसेज किए फिर डिलीट कर दिए?
छात्रा- वो सर, हमारा सिलेक्शन नहीं होगा।
NGO – क्यों नहीं होगा सिलेक्शन?
छात्रा- कुछ नहीं हो रहा हमसे। कंसंट्रेट नहीं हो पा रहे हैं जो पढ़ते हैं वह भूल जाते हैं।
NGO – आपको ऐसा क्यों लग रहा है, ऐसा तो होता है न कि जो पढ़ते हैं वह भूल जाते हैं कई बार?
छात्रा- कल भी हम पढ़ाई किए, आज भी किए लेकिन हमसे नहीं हो पा रहा है। आंसर नहीं बन पा रहे (इस दौरान छात्रा रोने लगती है)

NGO – कूल, प्लीज आप शांत हो जाइए।
छात्रा- कल हम दिनभर पढ़ाई किए, रिवाइज किए, लेकिन हमसे क्वेश्चन नहीं हुए, दिन में आज भी ढाई घंटे पढे, पता नहीं हमे क्या हो गया है, हम पढ़ भी नहीं पा रहे।
NGO – आप पहले शांत हो जाइए।
छात्रा- पता नहीं टाइम कहां वेस्ट हो रहा है, हमको पता नहीं लग रहा कि सोए कब उठे कब। जल्दी सो जाते हैं लेकिन नींद नहीं खुलता सुबह, सुबह उठ जाते हैं तो पढ़ा नहीं जाता। इतना जल्दी उठते हैं कि मांइड थका रहता है। कुछ समझ नहीं आ रहा है, कुछ नहीं हो पाएगा हमसे।
NGO – सबसे पहले तो दिमाग से निकाल दो, अभी नहीं हो रहा यह अलग बात है। नहीं कर पाओगे यह सोचना बंद कर दो।
छात्रा- मन में फालतू की बातें सोचते हैं।
एनजीओ ने इस छात्रा को बुलाकर काउंसलिंग की तो सामने आया कि बच्ची अपना शेड्यूल ढंग से फॉलो नहीं कर पा रही थी। बीच-बीच में मम्मी-पापा के बिना अकेलापन भी महसूस हो रहा था। घर पर जब बात करते वह रोने लगती तो उल्टा डांट पड़ती। इसलिए पढ़ाई डिस्टर्ब तो हो ही रही थी, साथ ही वह मन की बात किसी को बता नहीं पा रही थी।