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झुंझुनूं : इलाज के पैसे नहीं, बेटे को जंजीर से बांधा:परिजन बोले-दिल पर पत्थर रखकर ऐसा किया; प्रशासन से मदद की अपील की


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झुंझुनूं : इलाज के पैसे नहीं, बेटे को जंजीर से बांधा:परिजन बोले-दिल पर पत्थर रखकर ऐसा किया; प्रशासन से मदद की अपील की

इलाज के पैसे नहीं, बेटे को जंजीर से बांधा:परिजन बोले-दिल पर पत्थर रखकर ऐसा किया; प्रशासन से मदद की अपील की

झुंझुनूं : गंभीर बीमारी से जूझ रहे झुंझुनूं के एक परिवार को आर्थिक मदद की दरकार है। शहर के वार्ड नंबर 44 में रहने वाला सद्दाम (26) पिछले कई साल से मानसिक बीमारी से जूझ रहा है। उसे कभी भी मिर्गी के दौरे पड़ जाते है। इस दौरान वह हमलावर हो जाता है।

सद्दाम को कई साल से परिजन जंजीर में बांधकर रखते हैं। माता-पिता का कहना है कि दिल पर पत्थर रखकर ऐसा करने को मजबूर हैं। पैसे के अभाव में सद्दाम का इलाज नहीं करा पा रहे हैं। बेटे को खुला छोड़ें तो यह डर कि वह किसी पर हमला न कर दे।

ऐसे में सद्दाम के मां-बाप ने प्रशासन से मदद की गुहार लगाई है। सद्दाम के पिता का कहना है कि वे बेटे के इलाज पर काफी पैसे खर्च हो चुके हैं। घर में उनके अलावा कमाने वाला कोई और नहीं है। मजदूरी कर घर का पालन पोषण कर रहे हैं। पैसे नहीं होने से बच्चे का इलाज नहीं हो रहा है।

सद्दाम का बड़ा भाई भी बीमार रहता है। सद्दाम के पिता ने रिश्तेदारों से उधार पैसा भी लिया। वह इलाज में खर्च हो चुका है। मां ने बताया कि कोई भी मां अपने बेटे को जंजीरों से नहीं बांधती परंतु वह दिल पर पत्थर रखकर ऐसा करने को मजबूर है।

सद्दाम के पिता ने बताया कि बचपन में वह ठीक था। स्कूल भी जाता था। धीरे धीरे बीमार होता चला गया। अब हालात यह है कि सदाम को बेडियों में बांधकर रखना पड़ता है। कुछ भी समझ नहीं आ रहा है। अचानक किसी पर भी हमला कर देता है। गरीबी के कारण ही मानिसक रूप से विक्षिप्त बेटे का इलाज नहींं करा पा रहे हैं।

अगर पैसा होता तो उसे किसी बढ़िया अस्पताल में दिखाते। सरकार से कुछ मदद मिल जाती तो बेटे का उद्धार हो जाता। पीड़ित के दो भाई और हैं। बड़ा भाई भी बीमार रहता है। उसे भी मिर्गी के दौरे पड़ते है। उसका भी इलाज चल रहा है। एक छोटा है। घर की जिम्मेदारी बाप पर ही है।

सरकार नहीं मिल रही मदद

एक तरफ सरकार दिव्यांगों और गरीबों को हर संभव सहायता उपलब्ध कराने की बात कह रही है। वहीं दूसरी और सद्दाम सभी प्रकार की सुविधाओं से महरूम है। इसके लिए उसके घरवाले कई बार अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के पास चक्कर लगा चुके लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। ना ही अब तक दिव्यांग प्रमाण पत्र बना है।

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