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वेब सीरीज और फिल्मों की अनियंत्रित दुनिया और युवा


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वेब सीरीज और फिल्मों की अनियंत्रित दुनिया और युवा

वेब सीरीज और फिल्मों की अनियंत्रित दुनिया और युवा

तेज़ी से बढ़ती OTT संस्कृति आज अभिव्यक्ति, विकल्प और रचनात्मक स्वतंत्रता का सबसे व्यापक मंच बन चुकी है, परंतु इसी स्वतंत्रता के बीच एक अनदेखा संकट भी आकार ले रहा है- वह है अनियंत्रित कंटेंट, जिसमें हिंसा, अश्लीलता, नशीली जीवनशैली, साइबर-आक्रामक व्यवहार, और संवेदनहीनता को सामान्य बनाते हुए युवा मानस पर गहरा प्रभाव डाला जा रहा है। कई वेब-सीरीज़ क्राइम, अंधेरी दुनिया और अव्यवस्थित संबंधों को इस तरह प्रस्तुत करती हैं कि वास्तविकता और कल्पना की रेखा धुंधली होने लगती है। इसके साथ ही ड्रग, मानव और मानव अंगों के साथ बच्चों की तस्करी जैसे संवेदनशील अपराधों को सनसनीख़ेज़ दृश्य प्रभावों के साथ दिखाने से अपराध को रोमांचक बनाने का जोखिम पैदा होता है, जबकि इन अपराधों की सामाजिक त्रासदी और मानवीय पीड़ा पर भरपूर संवेदनशीलता की आवश्यकता होती है।तस्करी आधारित थ्रिलर्स यदि सामाजिक यथार्थ को उचित नैतिक संदर्भ से अलग कर दिखाएँ, तो वे पीड़ा को मनोरंजन में रूपांतरित कर देते हैं जोकि हमारे समय की सबसे बड़ी नैतिक चुनौती है।

युवा दर्शक, विशेषकर 13-18 और 18-25 की उम्र-श्रेणियां (Age Groups), भावनात्मक और सामाजिक रूप से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले वर्ग हैं। हिंसा और विषाक्त व्यवहार का बार-बार प्रदर्शन आक्रामकता को “सामान्य” बना देता है, वहीं भोगवादी संस्कृति और अवास्तविक जीवनशैली अवसाद और आत्मसम्मान-ह्रास जैसी समस्याएँ उत्पन्न करती हैं। साइबर-आदत और डोपामिन आधारित मनोरंजन ने एक पूरी पीढ़ी का attention-span अर्थात् ध्यान केन्द्रण समय सीमा को खतरनाक रूप से कम कर दिया है। दूसरी ओर बिंज वॉचिंग ने उत्पादकता को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया हैं, महिलाओं के वस्तुकरण ने युवाओं में लैंगिक संवेदनशीलता को कम किया है।

फिर भी OTT जगत केवल अंधेरा नहीं दिखाता विश्व स्तर पर कई उल्लेखनीय सीरीज़ और फिल्में दर्शकों की समझ, संवेदना और दृष्टिकोण को समृद्ध भी कर रही हैं। The Crown नेतृत्व और व्यक्तिगत दायित्व का संतुलन सिखाती है; Sherlock विश्लेषण क्षमता का सर्वोत्तम उदाहरण है; Cosmos और Our Planet वैज्ञानिक तर्कशीलता व पर्यावरण नैतिकता को सुदृढ़ करते हैं; Chernobyl प्रशासनिक निर्णयों की जवाबदेही का कठोर पाठ है; Band of Brothers अनुशासन और टीमवर्क का नायाब उदाहरण है: Reply 1988 परिवार और समुदायिक भावनाओं की बारीकियाँ समझाती है; Your Name समय, स्मृति और मानवीय जुड़ाव पर अद्भुत चिंतन प्रस्तुत करती है। इसी क्रम में The Boy Who Harnessed the Wind नवाचार और दृढ़ता को और Zero Dark Thirty जैसे उदाहरण युद्धोत्तर सत्यापन, खुफिया तंत्र व नैतिक संघर्षों पर महत्वपूर्ण दृष्टिकोण देते हैं।

फिल्मों की दुनिया भी गहरे मानवीय और सामाजिक प्रश्नों को संबोधित करती है-The Pursuit of Happyness का संघर्ष, The Shawshank Redemption की उम्मीद, A Beautiful Mind एवं The Theory of Everything की मानसिक साहसिक यात्रा; Schindler’s List मानवता के उद्धार का सबसे करुण अध्याय है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में 3 Idiots और Taare Zameen Par शिक्षा को मानविकी संवेदना से जोड़ते हैं, जबकि Parasite सामाजिक असमानताओं को निर्वस्त्र कर देता है।

अब प्रश्न है कि इस विशाल और प्रभावकारी मीडिया-पर्यावरण को कैसे विनियमित किया जाए। विश्व में UK का BBFC मॉडल सर्वाधिक संतुलित माना जाता है।स्पष्ट आयु-श्रेणियाँ, कंटेंट डिस्क्लेमर, हानिकारक दृश्यों के लिए अग्रिम चेतावनी और सबसे महत्वपूर्ण, सामाजिक नैतिकता को केंद्र में रखने वाला दृष्टिकोण। South Korea भी कड़ी रेटिंग प्रणाली, राष्ट्रीय प्रसारण मानकों और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्मों पर दंडात्मक जवाबदेही के लिए जाना जाता है।

भारत भी इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा चुका है-2021 के IT Rules के तहत डिजिटल पब्लिशर्स को Age Rating (U, U/A 7+, U/A 13+, U/A 16+, A), विस्तृत कंटेंट विवरण, पैरेंटल लॉक, शिकायत निवारण तंत्र और ग्रिवांस ऑफिसर नियुक्त करना अनिवार्य किया गया है। इसके अलावा NCW, NCPCR और साइबर-सेल द्वारा अश्लीलता, बाल-सुरक्षा, और मादक पदार्थों को ग्लोरिफाई करने वाले कंटेंट पर नियमित निगरानी की जाती है। प्रस्तावित Broadcasting Services Regulation Bill एक समेकित कानून लाने की दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास है, जिससे OTT,टीवी और सोशल मीडिया सभी के लिए एकसमान नैतिक मानक सुनिश्चित हो सकें।

अंततः, OTT हमारे समय का सबसे शक्तिशाली सांस्कृतिक माध्यम है जो समाज को दिशा भी दे सकता है और भ्रमित भी कर सकता है। आवश्यकता इस बात की है कि रचनात्मक स्वतंत्रता और सामाजिक उत्तरदायित्व के बीच वह संतुलन कायम रहे, जो मनोरंजन को विचार, संवेदना और नागरिकता के विस्तार का माध्यम बनाए न कि अव्यवस्था, हिंसा और संवेदना-क्षय का। भारत की युवा पीढ़ी केवल कंटेंट की उपभोक्ता नहीं, बल्कि भविष्य की नीति-निर्माता भी है; इसलिए यह अनिवार्य है कि डिजिटल कथाएँ न केवल आकर्षक हों, बल्कि नैतिक रूप से उत्तरदायी भी हों और फिल्म निर्माता केवल अपनी फिल्मों को 500 या 1000 करोड़ के क्लब में शामिल करने तक केंद्रित न होकर समाज को उचित दिशा देने वाली फिल्मों का निर्माण करें।

उमा व्यास (आरएएस)
लेखिका विभिन्न समसामयिक मुद्दों की जानकार एवं श्री कल्पतरू संस्थान की सक्रिय कार्यकर्त्ता है!

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