झुंझुनूं में 42 अस्पतालों के पास नहीं खुद की बिल्डिंग:बजट के बाद भी अटके, स्कूल और आंगनबाड़ी में चल रहे स्वास्थ्य केंद्र
झुंझुनूं में 42 अस्पतालों के पास नहीं खुद की बिल्डिंग:बजट के बाद भी अटके, स्कूल और आंगनबाड़ी में चल रहे स्वास्थ्य केंद्र

झुंझुनूं : झुंझुनूं जिले में स्वास्थ्य सेवाओं का हाल बेहाल है। यहां 41 अस्पताल ऐसे है, जिनके पास खुद की बिल्डिंग तक नहीं है। इनमें 41 तो उप स्वास्थ्य केंद्र और 1 पीएचसी शामिल है। ये स्वास्थ्य केंद्र या तो स्कूलों में चल रहे हैं या आंगनबाड़ी केंद्रों में। यह हालात तब है, जब स्वास्थ्य केंद्रों के लिए सरकार ने बजट जारी कर दिया है। लेकिन सरकारी जमीन की कमी, पंचायतों की बेबसी और वन विभाग की अड़चनें, इन स्वास्थ्य केंद्रों के भवनों के निर्माण में सबसे बड़ी रुकावट बनी हुई हैं।
ग्रामीण इलाकों के लागों पर पड़ रहा असर
इसका सीधा असर ग्रामीण इलाकों के लोगों पर पड़ रहा है। अब स्थिति यह है कि अधिकारी अब दानदाताओं और भामाशाहों से जमीन जुटाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि ये स्वास्थ्य केंद्र अपनी खुद की बिल्डिंग में आ सकें और ग्रामीणों को बेहतर इलाज मिल सके।
41 उपस्वास्थ्य केंद्र और 1 पीएचसी के पास खुद की जमीन नहीं
जिले में स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा ज़मीन की कमी के कारण बेहद कमजोर है। जिले में 41 उपस्वास्थ्य केंद्रों को अभी तक ज़मीन नहीं मिल पाई है। इनमें सबसे अधिक 12 सब सेंटर बुहाना ब्लॉक में हैं, जबकि नवलगढ़ में 9, खेतड़ी और सिंघाना में 5-5, सूरजगढ़ में 6, झुंझुनूं में 2 उपस्वास्थ्य केंद्र और एक पीएचसी, और उदयपुरवाटी और मलसीसर में 1-1 उपस्वास्थ्य केंद्र शामिल हैं।
बुहाना, नवलगढ़ में स्थिति बेहद गंभीर
खासकर बुहाना और नवलगढ़ क्षेत्रों के बड़े गांव जैसे लोहार्गल, गोल्याणा, पुहानियां और बाकरा में स्थिति बेहद गंभीर है, जहां स्वीकृत केंद्रों के लिए जमीन नहीं मिल पाई है। बाकरा गांव में तो उपस्वास्थ्य केंद्र को पीएचसी में अपग्रेड कर दिया गया, लेकिन जमीन न मिलने से भवन निर्माण रुका हुआ है।
जमीन न मिलने के 3 प्रमुख कारण
स्वास्थ्य विभाग और राजस्व विभाग के अधिकारियों के अनुसार, ज़मीन की उपलब्धता न होने के पीछे तीन मुख्य कारण हैं।
- सरकारी भूमि का अभाव: राजस्व विभाग की रिपोर्टों से यह साफ हो गया है कि कई क्षेत्रों में स्वास्थ्य केंद्रों के लिए उपयुक्त सरकारी ज़मीन उपलब्ध ही नहीं है।
- ग्राम पंचायतों के पास विकल्प नहीं: कई ग्राम पंचायतों के पास खाली ज़मीन न होने के कारण वे आवंटन नहीं कर पा रही हैं।
- वन विभाग की भूमि पर प्रतिबंध: कई इलाकों में अधिकांश ज़मीन वन विभाग के अधीन है, जिसका उपयोग स्वास्थ्य भवनों के निर्माण के लिए नहीं किया जा सकता।
स्कूलों और आंगनबाड़ी केंद्रों में चल रहे स्वास्थ्य केंद्र
जमीन की कमी के चलते, स्वास्थ्य केंद्रों को अस्थायी समाधानों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। कई सबसेंटर गांवों के सरकारी स्कूलों या आंगनबाड़ी केंद्रों के साथ संचालित हो रहे हैं। यह स्थिति न केवल मरीजों को मिलने वाली सुविधाओं को प्रभावित करती है, बल्कि शिक्षा और पोषण कार्यक्रमों को भी बाधित करती है। उदाहरण के लिए, बाकरा का स्वीकृत पीएचसी फिलहाल स्कूल भवन से ही चलाया जा रहा है।
अधिकारियों के स्तर पर लंबित फाइलें
स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि कई प्रस्ताव उपखंड अधिकारियों (एसडीएम) के स्तर पर लंबित हैं। ग्राम पंचायतें समय पर जमीन चिन्हित कर प्रस्ताव नहीं भेज रही हैं, जिससे निर्माण कार्य में देरी हो रही है। इस समस्या से निपटने के लिए, सीएमएचओ डॉ. छोटेलाल गुर्जर के अनुसार, अब विभाग भामाशाहों और दानदाताओं से ज़मीन लेने पर जोर दे रहा है। इसके लिए, बीसीएमओ स्तर पर संभावित दानदाताओं की तलाश की जा रही है और एसडीएम की मदद से आगे की कार्रवाई की जाएगी।