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भारत का कोचिंग उद्योग: युवा सपनों का सामर्थ्य और आर्थिक इंजन का द्वंद्व


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आर्टिकल

भारत का कोचिंग उद्योग: युवा सपनों का सामर्थ्य और आर्थिक इंजन का द्वंद्व

उपराष्ट्रपति के उद्बोधन के आलोक में एक सम्मानजनक विश्लेषण : कोटा से अखिल भारतीय परिदृश्य तक, शिक्षा, रोजगार और राजस्व का संतुलन

भारत का कोचिंग उद्योग : हाल ही में देश के माननीय उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ जी द्वारा कोचिंग संस्थानों को “पोचिंग सेंटर” कहे जाने संबंधी उद्बोधन ने भारतीय शिक्षा के परिदृश्य पर एक गहन एवं बहुआयामी विमर्श को जन्म दिया है। उपराष्ट्रपति जी का यह कथन, जिसमें उन्होंने इन संस्थानों को युवाओं के भविष्य के लिए संभावित रूप से खतरनाक बताया, निसंदेह उनके मन में व्याप्त गहन चिंता को दर्शाता है। एक संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति होने के नाते, उनके शब्द वर्तमान शिक्षा प्रणाली में व्याप्त कुछ वास्तविक समस्याओं और चुनौतियों की ओर ध्यान आकर्षित करने का एक विनम्र प्रयास हो सकते हैं, विशेषकर उन व्यावसायिक पहलुओं पर जहाँ शिक्षा मात्र धनोपार्जन का माध्यम बनकर रह गई है। यह उनके पद की गरिमा और देश के युवाओं के भविष्य के प्रति उनकी गहन चिंता एवं जवाबदेही को परिलक्षित करता है, जिसके लिए उनके विचारों का सम्मानपूर्वक विश्लेषण नितांत आवश्यक है।

यह समझना महत्वपूर्ण है कि उपराष्ट्रपति महोदय की चिंता संभवतः कोचिंग उद्योग के उस अंश से जुड़ी है जहाँ केवल आर्थिक लाभ पर केंद्रित होकर छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और नैतिक मूल्यों की अनदेखी की जाती है। तथापि, यह आकलन भारत में कोचिंग के विशाल और बहुआयामी परिदृश्य की केवल एक सीमित तस्वीर प्रस्तुत करता है। कोटा, राजस्थान जैसे शहर, जिन्हें स्वयं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “शिक्षा की लघु काशी” और “शिक्षा का गढ़” कहा है, इस कथन के विस्तृत संदर्भ को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। यहाँ प्रतिवर्ष लगभग 2 लाख से अधिक छात्र इंजीनियरिंग (JEE), मेडिकल (NEET), सिविल सेवा (UPSC) जैसी प्रतिष्ठित प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी हेतु आते हैं।

कोचिंग उद्योग: एक विशाल आर्थिक और शैक्षिक शक्ति

कोटा की कोचिंग इंडस्ट्री का अनुमानित वार्षिक टर्नओवर ₹6,000 करोड़ रुपये से अधिक है, और यह प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से 40,000 से अधिक व्यक्तियों को रोजगार प्रदान करती है। यह तो मात्र एक शहर का आंकड़ा है। पूरे भारत में कोचिंग व्यवसाय का कुल वार्षिक कारोबार विभिन्न अनुमानों के अनुसार ₹2 लाख करोड़ (2000 बिलियन रुपये) से अधिक का है और इसमें निरंतर वृद्धि परिलक्षित हो रही है। यह आंकड़ा इस उद्योग के विशाल दायरे और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में इसके महत्वपूर्ण योगदान को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।यह वृहद उद्योग प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से लाखों लोगों को रोजगार प्रदान करता है, जिनमें समर्पित शिक्षक, पेशेवर काउंसलर, कुशल प्रशासनिक कर्मचारी, हॉस्टल संचालक, मेस वर्कर, पुस्तक विक्रेता, परिवहन प्रदाता और विभिन्न सेवा क्षेत्रों से जुड़े अन्य लोग सम्मिलित हैं। इसके अतिरिक्त, यह उद्योग सरकार को पर्याप्त कर राजस्व भी प्रदान करता है। एक अनुमान के अनुसार, सरकार को वस्तु एवं सेवा कर (GST), आयकर और कॉर्पोरेट कर के रूप में प्रति वर्ष अनुमानित ₹10,000 करोड़ से ₹20,000 करोड़ तक का राजस्व प्राप्त होता है। यह एक महत्वपूर्ण राशि है जो देश के विकास कार्यों में योगदान देती है। ऐसे में, इस उद्योग को केवल नकारात्मक दृष्टिकोण से देखना इसकी आर्थिक और सामाजिक भूमिका को कम आंकना होगा।

कोचिंग की अनिवार्यता: एक ऐतिहासिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य

कोचिंग संस्थानों का अभ्युदय कोई आकस्मिक घटना नहीं है, अपितु यह भारतीय शिक्षा प्रणाली की अंतर्निहित सीमाओं और बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं का प्रत्यक्ष परिणाम है। उदारीकरण उपरांत, देश में आर्थिक विकास के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाओं में भी सीटों की संख्या की तुलना में आवेदकों की संख्या में विस्फोटक वृद्धि हुई। सरकारी नौकरियों, इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश की दौड़ इतनी तीव्र हो गई कि पारंपरिक स्कूली शिक्षा इसे पूर्णतः संतुष्ट करने में प्रायः अक्षम सिद्ध हुई।भारतीय समाज में शिक्षा को अनादि काल से उन्नति का सबसे महत्वपूर्ण माध्यम माना गया है। प्रत्येक अभिभावक अपने बच्चों को सर्वोच्च शिक्षा दिलाकर उनके भविष्य को सुरक्षित करना चाहते हैं। परंतु, सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में आधारभूत संरचना की कमी, शिक्षकों की गुणवत्ता में भिन्नता, अप्रचलित पाठ्यक्रम और रटंत प्रणाली पर अत्यधिक जोर जैसी अनेक कमियाँ विद्यमान हैं। ये संस्थान छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं में आवश्यक विश्लेषणात्मक कौशल, समय प्रबंधन, और त्वरित निर्णय लेने की क्षमता विकसित करने में अक्सर विफल रहते हैं। ऐसी स्थिति में, कोचिंग सेंटर एक अनिवार्य आवश्यकता के रूप में उभरे, जो इन अंतरालों को भरते हैं और छात्रों को एक संरचित, केंद्रित एवं प्रतिस्पर्धी वातावरण प्रदान करते हैं। वे मात्र अकादमिक ज्ञान प्रदान नहीं करते, अपितु परीक्षा के पैटर्न, प्रश्न हल करने की तकनीकों और प्रतिस्पर्धी मानसिकता को भी आकार देते हैं।

कोचिंग सेंटरों की सकारात्मक भूमिकाएं: उपलब्धियाँ और योगदान

कोचिंग संस्थानों की भूमिका को केवल नकारात्मक चश्मे से देखना न्यायोचित नहीं होगा। देशभर में ऐसे सैकड़ों संस्थान कार्यरत हैं जो समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला रहे हैं और युवाओं को सशक्त बना रहे हैं:

गुणवत्तापूर्ण शिक्षण और विशेषज्ञ मार्गदर्शन: कोचिंग सेंटर प्रायः विषय विशेषज्ञों को नियुक्त करते हैं, जिनमें सेवानिवृत्त प्रोफेसर, अनुभवी अभियंता, चिकित्सक, और यहाँ तक कि पूर्व IAS/IPS अधिकारी भी सम्मिलित होते हैं। ये शिक्षक छात्रों को गहन ज्ञान और वास्तविक दुनिया का अनुभव प्रदान करते हैं, जो उन्हें पारंपरिक शिक्षा में विरले ही उपलब्ध होता है।

संरचित पाठ्यक्रम और नियमित मूल्यांकन: कोचिंग एक अनुशासित वातावरण प्रदान करते हैं, जहाँ पाठ्यक्रम को व्यवस्थित रूप से कवर किया जाता है, और नियमित मॉक टेस्ट व मूल्यांकन के माध्यम से छात्रों की प्रगति पर सूक्ष्मता से नजर रखी जाती है। यह छात्रों को अपनी कमजोरियों को पहचानने और उन पर कार्य करने में सहायता करता है, जिससे वे अपनी त्रुटियों से सीख कर बेहतर प्रदर्शन कर सकें।

छात्रवृत्ति और सामाजिक गतिशीलता: अनेक बड़े और छोटे कोचिंग संस्थान ग्रामीण, निर्धन अथवा आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए छात्रवृत्ति योजनाएं, रियायती शुल्क या निःशुल्क कोचिंग प्रदान करते हैं। ये योजनाएं उन प्रतिभाशाली छात्रों को अवसर देती हैं जो अन्यथा उच्च शिक्षा प्राप्त करने में असमर्थ होते। यह सामाजिक गतिशीलता का एक महत्वपूर्ण माध्यम बन गया है, जहाँ सुदूर क्षेत्रों से आए छात्र भी अपनी प्रतिभा के बल पर सफल हो रहे हैं, जिससे देश के वंचित तबके को भी मुख्यधारा में आने का अवसर प्राप्त हो रहा है।

परीक्षा रणनीति और मानसिक तैयारी: कोचिंग केवल विषयों की पढ़ाई तक सीमित नहीं है। वे छात्रों को परीक्षा रणनीति, समय प्रबंधन, दबाव में प्रदर्शन और सकारात्मक मानसिकता विकसित करने में भी सहायता करते हैं। अनेक संस्थान अब मानसिक स्वास्थ्य परामर्श सत्र भी आयोजित करते हैं, जो छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं।

प्रतिस्पर्धी माहौल: समान लक्ष्यों वाले छात्रों के बीच का माहौल स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देता है, जिससे छात्र एक-दूसरे से सीखते हैं और बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रेरित होते हैं। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, जो स्वयं कोटा से सांसद हैं, ने भी इस बात पर जोर दिया है कि “कोटा कोचिंग का कोई सानी नहीं है और यहाँ शिक्षा का सुगम्य माहौल है।” यह बयान कोटा के अद्वितीय शैक्षिक पारिस्थितिकी तंत्र को रेखांकित करता है, जहाँ केवल पढ़ाई ही नहीं, अपितु एक समग्र शैक्षणिक वातावरण छात्रों के विकास में सहायक होता है।

माननीय उपराष्ट्रपति की चिंता का आधार: चुनौतियाँ और समाधान

यह स्वीकार करना अत्यंत आवश्यक है कि माननीय उपराष्ट्रपति महोदय का “पोचिंग सेंटर” संबंधी उद्बोधन कोचिंग उद्योग की उन गंभीर चिंताओं पर केंद्रित है, जिनसे पूरा समाज जूझ रहा है। उनका यह कथन निःसंदेह उन संस्थानों की ओर इशारा करता है जो केवल धन कमाने के उद्देश्य से संचालित होते हैं और छात्रों के कल्याण की अनदेखी करते हैं। इन्हीं चिंताओं के कारण कोचिंग उद्योग पर पुनर्विचार की आवश्यकता महसूस होती है:

मानसिक दबाव और आत्महत्याएँ: यह संभवतः सबसे दुखद पहलू है। उच्च प्रतिस्पर्धा, माता-पिता की अत्यधिक अपेक्षाएँ, और विफलता का भय छात्रों पर असहनीय मानसिक दबाव डालता है, जिसके कारण आत्महत्या के प्रकरण सामने आते हैं। कोटा जैसे शहरों में छात्रों द्वारा आत्महत्या एक गंभीर सामाजिक समस्या बन चुकी है, जिस पर तत्काल और गंभीर ध्यान देने की आवश्यकता है।

अत्यधिक व्यावसायीकरण: यह वह पहलू है जो संभवतः माननीय उपराष्ट्रपति की चिंता का मूल है। कुछ कोचिंग संस्थान शिक्षा को सेवा के बजाय पूर्णतः व्यवसाय के रूप में देखते हैं। उनकी प्राथमिकता गुणवत्ता से अधिक लाभ कमाना होता है। यह प्रायः अत्यधिक शुल्क, भ्रामक विज्ञापन और ‘स्टार फैकल्टी’ के नाम पर छात्रों को आकर्षित करने में परिलक्षित होता है, जिससे शिक्षा एक व्यापारिक वस्तु बन जाती है, जहाँ छात्रों को केवल ग्राहक के रूप में देखा जाता है।

शुल्क में पारदर्शिता की कमी: अनेक संस्थानों में शुल्क संरचना में पारदर्शिता का अभाव होता है, जिससे अभिभावकों के लिए सही विकल्प चुनना कठिन हो जाता है। अत्यधिक शुल्क गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों पर भारी वित्तीय बोझ डालता है, जो प्रायः ऋण लेकर अपने बच्चों को कोचिंग हेतु भेजते हैं।

अनियमित और गैर-मान्यता प्राप्त संस्थान: नियामक ढांचे के अभाव के कारण, अनेक अनियमित और बिना मान्यता प्राप्त संस्थान भी अस्तित्व में आ गए हैं जो गुणवत्ता और नैतिक मानकों का पालन नहीं करते। ये संस्थान छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करते हैं।

“रैट रेस” मानसिकता का पोषण: कुछ आलोचकों का तर्क है कि कोचिंग संस्थान छात्रों में केवल परीक्षा उत्तीर्ण करने की “रैट रेस” मानसिकता को बढ़ावा देते हैं, जिससे रचनात्मकता, गहन सोच और समग्र व्यक्तित्व विकास पीछे छूट जाता है। शिक्षा का मूल उद्देश्य ज्ञान और विवेक का विकास होना चाहिए, न कि केवल अंकों का संग्रह।

समाधान की दिशा: नियामक ढाँचा और समग्र दृष्टिकोण

इन चिंताओं को दूर करने के लिए कोचिंग संस्थानों को बंद करना या उन्हें मात्र बदनाम करना कोई स्थायी समाधान नहीं है। इसके बजाय, एक व्यापक, संतुलित और दूरदर्शी नीतिगत ढाँचे की आवश्यकता है, जो माननीय उपराष्ट्रपति द्वारा उठाई गई चिंताओं का भी प्रभावी ढंग से समाधान करे:

मजबूत नियामक ढाँचा: सरकार को राष्ट्रीय स्तर पर कोचिंग संस्थानों के लिए एक प्रभावी नियामक प्राधिकरण स्थापित करना चाहिए। इस प्राधिकरण के पास शुल्क संरचना, पाठ्यक्रम की गुणवत्ता, शिक्षकों की योग्यता, विज्ञापनों की सत्यता, और छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु सख्त नियम बनाने और उन्हें कड़ाई से लागू करने की शक्ति होनी चाहिए।

मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रणाली: सभी कोचिंग संस्थानों के लिए यह अनिवार्य किया जाना चाहिए कि वे पेशेवर काउंसलर उपलब्ध कराएं और छात्रों के लिए एक सुलभ हेल्पलाइन स्थापित करें। नियमित मानसिक स्वास्थ्य परामर्श सत्र और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए, तथा अभिभावकों को भी बच्चों पर अत्यधिक दबाव न डालने हेतु जागरूक किया जाना चाहिए।

शुल्क में पारदर्शिता: शुल्क संरचना को मानकीकृत किया जाना चाहिए और सभी शुल्कों को स्पष्ट रूप से घोषित किया जाना चाहिए, ताकि अभिभावक सूचित निर्णय ले सकें।

सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में सुधार: यह दीर्घकालिक और सर्वाधिक महत्वपूर्ण समाधान है। सरकारी शिक्षा प्रणाली को मजबूत करके, गुणवत्तापूर्ण शिक्षकों को आकर्षित करके, आधुनिक और प्रासंगिक पाठ्यक्रम को लागू करके, तथा आधारभूत संरचना में सुधार करके, प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर ही छात्रों को प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार किया जा सकता है।

कौशल विकास और वैकल्पिक करियर मार्ग: सरकार को केवल डिग्री आधारित नौकरियों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय कौशल विकास, व्यावसायिक प्रशिक्षण और उद्यमिता को बढ़ावा देना चाहिए। इससे प्रतियोगी परीक्षाओं पर से अनावश्यक दबाव कम होगा और युवाओं को करियर के विविध, सम्मानजनक विकल्प मिलेंगे, जिससे उनकी आकांक्षाएँ केवल कुछ चुनिंदा क्षेत्रों तक सीमित नहीं रहेंगी।

जागरूकता अभियान: छात्रों और अभिभावकों को यह समझने में मदद की जानी चाहिए कि सफलता केवल कुछ चुनिंदा परीक्षाओं में नहीं है, अपितु विभिन्न क्षेत्रों में अपार संभावनाएँ हैं और प्रत्येक व्यक्ति की क्षमताएं भिन्न-भिन्न होती हैं।

आर्थिक और सामाजिक प्रभाव: कोटा एक केस स्टडी

कोटा जैसे शहर इस बात का ज्वलंत उदाहरण हैं कि कैसे कोचिंग एक संपूर्ण सामाजिक-आर्थिक पारिस्थितिकी तंत्र को जन्म देता है। यहाँ का रियल एस्टेट बाजार, खाद्य उद्योग, परिवहन और अन्य सेवा क्षेत्र हजारों लोगों को आजीविका प्रदान करते हैं। यह एक आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था है जो देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले छात्रों की जरूरतों को पूरा करती है। यदि इस प्रणाली को बिना किसी वैकल्पिक मॉडल के ध्वस्त किया जाता है, तो इसके न केवल छात्रों के भविष्य पर, अपितु हजारों परिवारों की आर्थिक स्थिति पर भी गंभीर नकारात्मक परिणाम होंगे। यह बड़े पैमाने पर पलायन, बेरोजगारी और सामाजिक अस्थिरता का कारण बन सकता है।

निष्कर्ष: एक संतुलित भविष्य की ओर

माननीय उपराष्ट्रपति जी का उद्बोधन कोचिंग उद्योग के उस पहलू की ओर ध्यान आकर्षित करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है जहाँ अनियंत्रित व्यावसायिकता ने छात्रों के हित को गौण कर दिया है। उनके शब्दों का सम्मान करते हुए, हमें यह स्वीकार करना होगा कि समस्या कोचिंग की अवधारणा में नहीं, अपितु उसके अनियंत्रित व्यावसायीकरण और कुछ संस्थानों की अनैतिक कार्यप्रणाली में निहित है। कोचिंग संस्थान भारतीय शिक्षा प्रणाली की खामियों का एक परिणाम हैं और लाखों युवाओं की आकांक्षाओं का एक महत्वपूर्ण माध्यम भी हैं।

आवश्यकता इस बात की है कि हम कोचिंग संस्थानों को समूल नष्ट करने के बजाय, उन्हें एक सहयोगी के रूप में देखें और उन्हें अधिक जवाबदेह, पारदर्शी तथा छात्र-केंद्रित बनाने की दिशा में कार्य करें। सरकार, अभिभावकों, छात्रों और स्वयं कोचिंग संस्थानों को एक साथ मिलकर कार्य करना होगा ताकि इस प्रणाली को बेहतर बनाया जा सके। शिक्षा का अंतिम लक्ष्य केवल परीक्षा उत्तीर्ण करना नहीं, अपितु समग्र व्यक्तित्व का निर्माण और समाज के लिए एक योग्य नागरिक तैयार करना है। हमें एक ऐसे भविष्य की ओर बढ़ना होगा जहाँ कोचिंग संस्थान केवल व्यावसायिक इकाई न होकर, वास्तव में छात्रों के सपनों के सेतु और उनकी आकांक्षाओं के वाहक बनें, जो देश के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकें और माननीय उपराष्ट्रपति जी द्वारा उठाई गई चिंताओं का भी प्रभावी ढंग से समाधान कर सकें।

लेखक परिचय
डॉ.नयन प्रकाश गाँधी भारत के प्रख्यात युवा मैनेजमेंट विश्लेषक एवं डेवलेपमेंट प्रैक्टिशनर है एवं अंतराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान मुंबई विश्विद्यालय के एलुमनाई है ।

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