शहीद को देख बेटी बोली- पापा क्यों चले गए:चाचा बोले- रिटायर होने के बाद गांव में घर बनवाने का सपना अधूरा रह गया
शहीद को देख बेटी बोली- पापा क्यों चले गए:चाचा बोले- रिटायर होने के बाद गांव में घर बनवाने का सपना अधूरा रह गया

बाड़मेर : शहीद पिता डालूराम (52) की पार्थिव देह को देखते ही बेटी सरोज (23) फफक पड़ी। बोली- अब हम किससे बात करेंगे, किससे सलाह लेंगे। पापा… आप हमें छोड़ कर क्यों चले गए। पत्नी कमला देवी (48) का तो रो-रोकर बुरा हाल है। वह बार-बार बेहोश हो रही थीं।
शहीद के चाचा खेमाराम कहते हैं- बाड़मेर शहर में तो मकान है। गांव में मकान बनाना चाहते थे। कहते थे कि रिटायर होने के बाद गांव में रहूंगा। उनका यह सपना अधूरा रह गया। इतना कहते-कहते खेमाराम भी भावुक हो जाते हैं।
फिरोजपुर (पंजाब) में सर्च ऑपरेशन के दौरान BSF के हेड कॉन्स्टेबल डालूराम (52) 7 जुलाई की रात शहीद हो गए थे। हेड कॉन्स्टेबल डालूराम बालोतरा जिले की सिणधरी पंचायत समिति के होडू गांव के रहने वाले थे। 9 जुलाई को सैन्य सम्मान के साथ डालूराम का अंतिम संस्कार उनके पैतृक गांव होडू में किया गया।
सिर में लगी थी गंभीर चोट
पंजाब की सीमा पर ड्रग्स तस्करी विरोधी अभियान चल रहा था। BSF को गुप्त सूचना मिली थी कि फिरोजपुर के ब्लॉक ममदोट स्थित गांव जल्लोके के खेत में पाकिस्तानी ड्रोन ने हेरोइन की खेप आई है। BSF जवानों ने 7 जुलाई की रात खेत में सर्च अभियान चलाया था।
इस दौरान हेड कॉन्स्टेबल डालूराम भी टीम के साथ थे। खेत में फसल खड़ी थी। ऐसे में उन्हें खेत में बना कुआं दिखाई नहीं दिया। वे 20 फीट गहरे कुएं में गिर गए। कुएं में बोरवेल लगी थी। इससे उनके सिर में गंभीर चोट लगी। 7 जुलाई की रात 9:30 बजे इलाज के दौरान हॉस्पिटल में उन्होंने दम तोड़ दिया था।

सपना था शहर से दूर गांव में मकान बने
चाचा खेमाराम कहते हैं- डालूराम मेरे बेटे की शादी में 15 मई को 7 दिन की छुट्टी पर घर आए थे। 17 मई को बेटे की शादी थी। सबसे मिलकर गए थे। जल्द वापस आने का वादा किया था। 21 मई को ड्यूटी पर लौट गए थे।
बाड़मेर शहर में उनका पहले से ही मकान है। गांव में पैतृक जमीन पर घर बनवाने की सोच रहे थे। कहते थे- रिटायर होने के बाद गांव में ही रहूंगा। डालूराम के 2 बेटे और एक बेटी है। 3 साल पहले एक बेटे की सड़क हादसे में मौत हो गई थी। जैसे-तैसे उस सदमे से उबरे ही थे कि उनके साथ ही ऐसा हो गया। उनका दूसरा बेटा खुद की कार टैक्सी में चलाता है।

बॉर्डर और देश की बात करते थे
चाचा बताते हैं- जब भी आते थे बॉर्डर की और देश की बात करते थे। यहां आए थे, तब मकान बनाने के लिए कच्चा मटेरियल भी डलवा लिया था। बस स्ट्रक्चर का काम शुरू होना था। कहते थे- नौकरी 10-12 साल बची है। नौकरी के दौरान ही धीरे-धीरे घर बनवा दूंगा। ताकि रिटायरमेंट के बाद परिवार के साथ यहां पर रहूं।

कारगिल युद्ध लड़ा, ऑपरेशन सिंदूर में भी शामिल रहे
चाचा ने बताया- 30 साल से BSF में थे। उन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान भी देश सेवा की थी। उससे पहले नागालैंड में ड्यूटी थी। ऑपरेशन सिंदूर के वक्त भी इनकी ड्यूटी पंजाब में थी। घर पर छुट्टी पर आते थे तब कहते थे कि देश हित में काम होना चाहिए। देश में किसी प्रकार का कोई आतंक नहीं फैलना चाहिए। देश सुरक्षित रहेगा तभी हम सुरक्षित रहेंगे।
अंतिम यात्रा में स्कूल के बच्चे भी शामिल हुए
डालूराम को बेटे दिलीप सिंह (25) ने मुखाग्नि दी। अंतिम यात्रा में होडू समेत आसपास के कई गांवों के सैकड़ों लोग शामिल हुए। इस दौरान शहीद डालूराम अमर रहे, भारत माता की जय के नारे गूंजते रहे।