भूकाना शिविर में ‘अफसरशाही की बेरुखी:ग्रामीण हुए आक्रोशित, 11 विभागों के अधिकारी नदारद, पूर्व सरपंच पति ने उठाए गंभीर सवाल; ज़रूरतमंद परेशान, दीनदयाल उपाध्याय संबल पखवाड़ा
भूकाना शिविर में 'अफसरशाही की बेरुखी:ग्रामीण हुए आक्रोशित, 11 विभागों के अधिकारी नदारद, पूर्व सरपंच पति ने उठाए गंभीर सवाल; ज़रूरतमंद परेशान, दीनदयाल उपाध्याय संबल पखवाड़ा

झुंझुनूं : सरकार की ओर से ज़रूरतमंदों को योजनाओं का लाभ दिलाने के उद्देश्य से चलाए जा रहे पंडित दीनदयाल उपाध्याय अंत्योदय संबल पखवाड़ा के तहत ग्राम पंचायत भूकाना में आयोजित शिविर में सरकारी उदासीनता की चौंकाने वाली तस्वीर सामने आई है। ग्रामीणों को इस शिविर में अफसरों की बेरुखी का सामना करना पड़ा, जिससे उनमें गहरा आक्रोश व्याप्त है।
ग्राम पंचायत स्तर पर आयोजित इस महत्वपूर्ण शिविर में 11 विभागों के अधिकारियों व कर्मचारियों को मौजूद रहना था, लेकिन ज़मीनी हकीकत यह रही कि पंचायत स्तर के कुछ कर्मचारियों को छोड़कर एक भी ज़िम्मेदार अधिकारी मौके पर नहीं पहुंचा। अधिकारियों की गैर-मौजूदगी से ग्रामीणों में भारी नाराज़गी देखी गई।
पूर्व सरपंच पति ने जताई नाराज़गी
पूर्व सरपंच पति रणवीर डूडी ने इस मामले को लेकर गहरा आक्रोश व्यक्त किया और अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार की यह योजना गरीबी मुक्त गांव की दिशा में एक सकारात्मक कदम है, लेकिन जब ऐसे शिविरों में अधिकारी ही नहीं आएंगे तो आम जनता को योजनाओं का लाभ कैसे मिलेगा?
रणवीर डूडी ने बताया कि इस शिविर में राजस्व विभाग को लंबित सीमाज्ञान, पत्थरगढ़ी, और नामांतरण जैसे प्रकरणों का निस्तारण करना था। कृषि विभाग को किसानों के तारबंदी के आवेदन लेने और मृदा परीक्षण के लिए नमूने जमा करने थे।
इसके अलावा, खाद्य सुरक्षा योजनाओं में नए पात्र परिवारों की आधार सीडिंग की प्रक्रिया भी प्रस्तावित थी। लेकिन, इन सभी महत्वपूर्ण कार्यों के लिए संबंधित विभागों के अधिकारी शिविर में नहीं पहुंचे।
नोडल अधिकारी भी रहे नदारद
शिविर के लिए तहसीलदार को नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया था, लेकिन वे किसी अन्य कार्य से कलेक्टर के पास चले गए। हैरानी की बात यह है कि उनकी जगह कोई सह-प्रभारी तक नहीं पहुंचा, जिससे ग्रामीणों में सवाल उठने लगे कि जब सरकारी स्तर पर योजनाओं को लेकर गंभीरता नहीं दिखाई जाएगी, तो ज़रूरतमंद कैसे लाभान्वित होंगे?
ग्रामीणों का कहना था कि दूर-दराज से लोग अपने कागज़-पत्र लेकर पहुंचे थे ताकि अपने मामलों का निस्तारण करवा सकें, लेकिन अधिकारियों की गैरहाज़िरी ने उनके भरोसे को तोड़ दिया। ग्रामीणों को अब दोबारा तहसील या अन्य दफ्तरों के चक्कर लगाने होंगे, जिससे उनके समय और धन दोनों की बर्बादी होगी। यह घटना सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में जवाबदेही की कमी को उजागर करती है।