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माह मोहर्रम हिजरी सन् का पहला महीना है


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माह मोहर्रम हिजरी सन् का पहला महीना है

हिजरी सन् खुशी की शुरुआत और मुबारकबाद से नहीं बल्कि जुल्म का मुकाबला करने के सबक के साथ शुरू होती है - एम ए पठान

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : मोहम्मद अली पठान
चूरू : जिला मुख्यालय से ‌ सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद अली पठान ने बताया कि मुहर्रम सुन्नी और शिया दोनों मुस्लिम समुदायों के लिए आध्यात्मिक महत्व रखता है। दुनिया भर के मुसलमान इस महत्वपूर्ण महीने को भक्ति और स्मरण के साथ मनाते हैं। मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर का पहला पवित्र महीना होता है। इसे इस्लाम धर्म के चार सबसे पवित्र महीनों में शामिल किया गया है। यह महीना नए साल की शुरुआत का प्रतीक है। कुरान में जिन चार सबसे पवित्र महीनों का जिक्र है मुहर्रम महीना उनमें से एक है। इस दौरान युद्ध करना सख्त वर्जित है। इस्लाम को मानने वाले मुसलमान इस महीने सिर्फ अल्लाह की इबादत करते हैं और ‌ 10 दिन तक रोजा रखते हैं इस्लामी कैलेंडर को चंद्र कैलेंडर भी कहा जाता है। इसका अर्थ है कि एक नया महीना अर्धचंद्र ‌ (चांद)के दिखने के साथ शुरू होता है। इस्लाम धर्म में मान्यता है कि इस महीने में किए गए अच्छे कामों का फल कई गुना अधिक मिलता है। इस्लामी कैलेंडर को हिजरी कैलेंडर भी कहते हैं, जो चांद के हिसाब से चलता है। इस वजह से इसकी तारीखें हर साल बदलती रहती हैं। यह महीना हजरत इमाम हुसैन और उनके परिवार की शहादत की याद में मनाया जाता है, जो 680 ईस्वी में कर्बला की लड़ाई में शहीद हुए थे। मुहर्रम के महीने में ‌शिया मुसलमान विभिन्न तरीकों से शोक मनाते हैं और हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं। इस महीने के दौरान, मुसलमान अक्सर ताजिए निकालते हैं, जो हजरत इमाम हुसैन के मकबरे की प्रतिकृति होते हैं। वे मातम भी करते हैं और हजरत इमाम हुसैन की शहादत की कहानी सुनते हैं। मुहर्रम का महीना मुसलमानों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक अवसर है, जो उन्हें अपने विश्वास और मूल्यों को मजबूत करने का अवसर प्रदान करता है। यह महीना शांति, सहानुभूति और मानवता के मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए भी एक महत्वपूर्ण है। हिजरी सन् नई साल से शुरू होती । हिजरी सन् आखरी नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हिजरत की याद में शुरू की गई थी, यानी नबी को अपना वतन छोड़ने की याद में और मुहर्रम हिजरी सन् का पहला महीना है, इस महीने में नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पूरे खानदान पर बेइंतिहा जुल्म हुआ था और उनके लाडले नवासे इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को पूरे खानदान और साथियों के साथ करबला के तपते मैदान में बड़ी बेदर्दी से भूखा प्यासा शहीद कर दिया था। इसलिए हिजरी सन् खुशी की शुरूआत और मुबारकबाद से नहीं, बल्कि जुल्म का मुकाबला करने के सबक के साथ नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और उनके खानदान पर हुए जुल्म को याद करते हुए शुरू करनी चाहिए।

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