जूठे बर्तन धोने वाले के बेटे ने किया NEET क्लियर:जब रिजल्ट आया, उस समय पिता झोपड़ी की मरम्मत कर रहे थे, मजदूरी कर पढ़ाई की
जूठे बर्तन धोने वाले के बेटे ने किया NEET क्लियर:जब रिजल्ट आया, उस समय पिता झोपड़ी की मरम्मत कर रहे थे, मजदूरी कर पढ़ाई की

बाड़मेर : शादी समारोहों में लोगों के जूठे बर्तन धोने वाले के बेटे ने NEET UG 2025 क्लियर किया है। पढ़ाई के साथ-साथ छात्र ने परिवार की मदद के लिए दिहाड़ी मजदूरी तक की। इससे समय बचता तो पढ़ाई में जुट जाते थे। अब नतीजा सामने है। ओबीसी कैटेगरी में 4071 वीं रैंक बनी है।

शादी समारोहों में लोगों के जूठे बर्तन धोने वाले के बेटे ने NEET UG 2025 क्लियर किया है। पढ़ाई के साथ-साथ छात्र ने परिवार की मदद के लिए दिहाड़ी मजदूरी तक की। इससे समय बचता तो पढ़ाई में जुट जाते थे। अब नतीजा सामने है। ओबीसी कैटेगरी में 4071 वीं रैंक बनी है।
हम बात कर रहे हैं 19 साल के श्रवण कुमार की। श्रवण बालोतरा जिले के बायतु उपखंड के खट्टू (नरेवा) गांव के रहने वाले हैं। श्रवण, उनके पिता रेखाराम सियाग सहित पूरा परिवार झोपड़ी में रहता है। इनके पास पक्का मकान तक नहीं है। जब NEET का रिजल्ट आया, उस समय रेखाराम झोपड़ी की मरम्मत कर रहे थे।
आगे पढ़िए श्रवण के संघर्ष की कहानी…

तीसरे प्रयास में मिली सफलता
14 जून को NEET का रिजल्ट आया। यह दिन रेखाराम के लिए खास था। पिता को बेटे की सफलता का पता चला तो वे भावुक होकर बोले- अब बर्तन नहीं मांजने पड़ेंगे।
बालोतरा के बायतु उपखंड के सरकारी स्कूल (रोजिया नाडा, माधासर गांव) से 10वीं पास करने के बाद श्रवण मजदूरी करने लगा था। परिवार के आर्थिक हालात ठीक नहीं थे। फिर एक संस्था फिफ्टी विलेजर्स ने मदद का हाथ बढ़ाया और श्रवण की पढ़ाई में मदद की। 11वीं-12वीं के साथ श्रवण ने नीट की भी तैयारी की। उसने तीसरे प्रयास में सफलता अर्जित की।
श्रवण कुमार ने 700 में से 556 नंबर लाकर नीट ऑल इंडिया में 9754 रैंक हासिल की है। उसने दसवीं में 97 परसेंट और 12वीं में 87.80 परसेंट नंबर हासिल किए थे।

खेती-बाड़ी के साथ शादियों में जूठे बर्तन धोकर गुजारा
श्रवण कुमार के पिता रेखाराम सियाग शादी-ब्याह में जूठे बर्तन धोते हैं। सीजन में खेतीबाड़ी करते हैं।
NEET का रिजल्ट आते ही श्रवण कुमार के घर पर गांव और फिफ्टी विलेजर्स संस्था के सदस्य मिठाई लेकर पहुंच गए। परिवार का मुंह मीठा करवाया।
उस वक्त पिता रेखाराम झोपड़ी की मरम्मत कर रहे थे। खबर सुन पिता की खुशी का ठिकाना नहीं था। गरीबी का आलम यह है कि परिवार के सिर पर पक्की छत तक नहीं है। परिवार में श्रवण के अलावा पिता, मां, छोटी बहन और दादी हैं।
श्रवण बोले- पढ़ाई के लिए भी पैसे नहीं थे
श्रवण कुमार ने बताया- मैंने 10वीं क्लास सरकारी स्कूल रोजिया नाडा माधासर (बालोतरा) से की। आगे पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे। इस वजह से बालोतरा में ही दिहाड़ी मजदूरी करने लगा।
घर के हालात पता ही थे। मुझे मेरे टीचर चिमनाराम ने फिफ्टी विलेजर्स संस्था के बारे में बताया। यह संस्था गरीब स्टूडेंट्स की पढ़ाई में मदद करती है।
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तीसरे अटेम्ट में मिली सफलता
श्रवण कुमार ने बताया- फिफ्टी विलेजर्स संस्था का ऑफिस बाड़मेर में है। यह संस्था आर्थिक रूप से कमजोर मेधावी छात्रों का टेस्ट लेकर सिलेक्शन करती है। फिर पढ़ाई का खर्च उठाती है। टेस्ट क्लियर करने के बाद संस्था ने मेरी मदद की। मैंने 11वीं क्लास में साइंस (बायोलॉजी) लिया था। 11वीं-12वीं की पढ़ाई संस्था के सहयोग से हुई।
12वीं के साथ साथ मैंने नीट का एग्जाम दिया था, लेकिन 519 नंबर ही आए। सिलेक्शन नहीं हो सका। अगले साल फिर मेहनत कर तैयारी की। इस बार 620 नंबर आए, लेकिन कट ऑफ हाई जाने के कारण सिलेक्शन नहीं हुआ। इसके बाद सरकारी डॉक्टर भरत सारण और टीचर चिमनाराम ने कहा कि एक बार और एग्जाम दो। इस बार 556 नंबर आए और नीट क्लियर हो गया।
मां को सरकारी स्कीम में मिले स्मार्टफोन से करता था पढ़ाई
श्रवण कुमार के टीचर चिमनाराम ने बताया- श्रवण कुमार की मां को अक्टूबर 2023 में सरकारी स्कीम में स्मार्टफोन मिला था। वह फिफ्टी विलेजर्स संस्था की मदद से हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहा था। इस दौरान छुट्टियों में घर जाता तो उसी स्मार्टफोन से डाउट क्लियर करता था। सवालों को यूट्यूब पर देखकर हल करता। टेस्ट में पूछे गए जो आंसर उसे नहीं आते थे उन्हें भी वह स्मार्टफोन पर सर्च करता था।