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आमजन की बेटियों के प्रति बदल रही धारणा : इस्लामपुर में बेटी जन्म पर मनाई शादी जैसी खुशी


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आमजन की बेटियों के प्रति बदल रही धारणा : इस्लामपुर में बेटी जन्म पर मनाई शादी जैसी खुशी

परिजनों ने उतारी आरती, प्रसूता ने फीता काटकर किया गृह प्रवेश

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : मोहम्मद आरिफ चंदेल

इस्लामपुर : घर का शानदार डेकोरेशन, फर्श पर फूलों की बेहतरीन सजावट, डीजे की सुरीली धुन, आसमान को छुती हुई पटाखों की धड़ाधड़ आवाज, गाड़ी की फूलों और गुब्बारों से सजावट, मुख्य द्वार पर प्रवेश करने से पहले फीता काटने की रस्म, महिलाओं की ओर से मंगल गीत। यह सब प्रोग्राम किसी शादी समारोह के नहीं बल्कि घर पर बेटी जन्म पर मनाई गई खुशियों के हैं।

आज हमारे समाज में कुछ लोग ऐसे हैं जिनके घर पर बेटी का जन्म होने पर उनके चेहरे की ज्योग्राफी बदल जाती है, कुछ लोग बेटी का जन्म होने पर उसे अस्पताल के पालना गृह में छोड़ जाते हैं, कुछ लोग बेटियों को झाड़ियों के नीचे फेंक कर चले जाते हैं, कुछ घरों में बेटी होना अशुभ माना जाता है लेकिन हमारे समाज में आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जो बेटियों को बेटों से भी ज्यादा प्यार ओर सम्मान देते हैं और घर में बेटी होना शुभ माना जाता है।

हम बात कर रहे हैं इस्लामपुर कस्बे की जहां पर आरिफ तंवर के घर पर रविवार को पोती का जन्म हुआ हालांकि पोती का जन्म झुंझुनूं के बीडीके अस्पताल में हुआ। जच्चा-बच्चा को मंगलवार को जैसे ही अस्पताल से छुट्टी मिली। दुल्हन की तरह फूलों से सजी हुई गाड़ी में प्रसूता और बेटी को घर ले जाया गया। घर का बेहतरीन डेकोरेशन किया गया। फर्श को फूलों से सजाया गया। डीजे बजाकर और पटाखे फोड़कर खुशियां मनाई गई। महिलाओं ने मंगल गीत गाकर खुशियां मनाई। उनकी आरती उतारी गई। मुख्य द्वार पर फीता काटकर प्रसूता और बेटी को गृह प्रवेश करवाया गया। प्रसूता के कमरे को दुल्हन की तरह सजाया गया। मोहल्ले में मिठाई बांटकर खुशी मनाई गई। धीरे-धीरे आमजन की बेटियों के प्रति धारणा बदल रही है जो सभ्य समाज के लिए शुभ संकेत है।

बच्ची के दादा आरिफ तंवर ने बताया कि बेटी का जन्म होने पर हमने लड़के से भी ज्यादा लाड़-चाव किए। हमारी नजर में बेटा-बेटी में कोई फर्क नहीं है। बेटी के पिता अल्ताफ ने बताया कि बेटी जहमत नहीं रहमत होती है। बेटी पैदा होने पर हम परिजनों को जो खुशी महसूस हुई है उसका हम कोई अंदाजा नहीं लगा सकते। जो लोग बेटी पैदा होने पर बेटी को बोझ समझते हैं उन लोगों को ऐसे लोगों से प्रेरणा लेनी चाहिए ताकि समाज से ऐसी घृणित सोच को मिटाया जा सके।

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