मेडिकल कॉलेज के साथ कोचिंग, स्कूल सभी को अब सचेत होने की जरूरत
आत्महत्या के समाधान हेतु एक नए दृष्टिकोण के साथ मिलकर आगे बढ़ना होगा -डॉ एन पी गांधी

आत्महत्या क्षेत्रीय नहीं राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय समस्या है
युवा जनसंख्या वाले देश में आत्महत्या एक दयनीय स्थिति
हाल ही में चर्चित आत्महत्या की खबरों ने राजस्थान के कोटा शहर में गुरुवार सुबह एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे एक 28 वर्षीय छात्र ने हॉस्टल में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. मृतक छात्र सुनील बैरवा, कोटा मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा था।वस्तुत क्या हालत होगी उन माता पिता परिजनों रिश्तेदार और उसके शुभचिंतकों की जिसने सुना आज हर कोई शख्स स्तब्ध रह गया।अचानक कमरे बंद होकर आत्महत्या का रास्ता सुनील बैरवा जैसे होनहार छात्र जो कितनी मेहनत से एमबीबीएस सीट नीट एक्जाम पास करके राजस्थान के प्रतिष्ठित कोटा मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लेकर आया होगा। जाहिर है एक सामान्य छात्र समझ सकता है कि वह होनहार होगा तभी मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिला .अब बात आती है आखिर समस्या क्या हुई कि इतने प्रतिष्ठित करियर होने के बावजूद आत्महत्या का सहारा लेना पड़ा. एनएलपी प्रैक्टिशनर लाइफ कोच करियर प्रैक्टिशनर, देश के सुप्रतिष्ठि आईआईपीएस मुंबई विश्वविद्यालय के जनसंख्या स्ट्डीज के एलुमनाई युवा मैनेजमेंट विश्लेषक डेवलेपमेंट प्रैक्टिशनर नयन प्रकाश गांधी का मानना है हमारे मनोवैज्ञानिक विश्लेषण के अनुसार आत्महत्या शब्द गहन में हमेशा तभी आता है जब व्यक्ति स्वयं के स्तर, अगर छात्र है तो उसके कॉलेज कोचिंग स्तर ,स्कूल स्तर के विभिन्न प्रकार के ऑफिशियल आसपास के मित्र या परिवार में अपनी तनावग्रस्त स्थिति को बताए जाने के बाद भी उसकी आंतरिक मन की मनःस्थिति के नकारात्मक तनावपूर्ण स्थिति को कोई समझ न पाए और धीरे धीरे व्यक्ति खुद ब खुद अंदर ही अंदर तनाव में रहकर स्वयं को नियमित रूप से नकारात्मक सिग्नल देता रहता है यह शत प्रतिशत सही है अधिकतर केसेज में कॉलेज हो कोचिंग हो स्कूल हो बेच वाइस अगर स्टूडेंट अनुपात में एक प्रॉपर उच्च गुणवत्ता पूर्ण अनुभवी मनोवैज्ञानिक विश्लेषक मेंटल काउंसलर आदि अगर स्टडी के तुरंत बाद क्लासरूम में उपस्थित बच्चों से रूबरू हो और व्यक्तिगत रूप से सप्ताहिक मॉनिटरिंग भी हो तो शत प्रतिशत आत्महत्या की फ्रिक्वेंसी को तनावग्रस्त बच्चों को भाप कर उनके मनोभाव व्यक्तिगत समस्या, संस्थान की किसी अन्य समस्या, पारिवारिक समस्या, व्यक्तिगत मित्रता, ऑनलाइन वित्तीय फ्राड मानसिक तनाव समस्या, एकेडमिक मार्क्स से तनाव की समस्या, सब्जेक्ट न समझ पाने के तनाव की समस्या आदि कई पहलुओं को तुरंत स्टडी किया जा सकता है और समस्याग्रस्त छात्र से व्यक्तिगत शैडयूल्ड काउंसलिंग द्वारा उसे पॉजिटिव माइंड थेरेपी द्वारा तनावरहित किया जा सकता है, यह संभव है जब किसी संस्थान कोचिंग हो, कॉलेज हो या विश्विद्यालय में नियमित रूप से साप्ताहिक मासिक और त्रैमासिक रूप से छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य का परीक्षण हो, जो अनुपस्थित हो उसे तुरंत व्यक्तिगत कस्टडी में लेकर मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग द्वारा मानसिक रूप से हर वस्तु स्थिति को समझकर उसके नेगेटिव सिग्नल को रूपांतरित किया जा सकता है ।
अभी इस वर्ष के जनवरी से अभी तक के कोचिंग स्टूडेंट के आत्महत्या के आंकड़े पर गौर करे तो आठ से ज्यादा आत्महत्याएं हो चुकी है वहीं कई स्तर पर लगातार जिला प्रशासन द्वारा विशेषत वर्तमान जिला कलेक्टर महोदय आईएएस डॉ रविन्द्र के कोटा केयर अभियान के तहत मोटिवेशनल कार्यक्रम से तनावग्रस्त बच्चों को तुरंत राहत भी मिली है जो कई बच्चों ने अपने व्यक्तिगत इंटरव्यू में विभिन्न सोशल मीडिया के माध्यम से जाहिर किया है, वास्तव में ग्रुप एवं इंडिविजुअल मोटिवेशन सेशन छात्रों के लिए हर स्तर पर आवश्यक होते है और कई हद तक बच्चों में एक पॉजिटिव हॉप पैदा करते है।
आज आवश्यकता है हर एक स्कूल हो कॉलेज हो या कोचिंग यह सब राष्ट्र के आधार स्तंभ है कोटा शिक्षा नगरी का तो आधार ही शिक्षा है और शैक्षणिक नगरी में अगर आत्महत्या पर रोक लगाना है तो समेकित रूप से इस पर हर माता पिता, स्वयं छात्र उसके मित्र, आपसी रिश्तेदार, अध्ययरत संबंधित संस्थान, स्थानीय प्रशासन और छात्रों से संबंधित सभी स्टेकहोल्डर्स जैसे मेस संचालक, हॉस्टल संचालक एवं उसमें कार्यरत सिक्यूरिटी ऑफिसर एवं अन्य सामाजिक संस्थाएं सभी को जिम्मेदारी के साथ आगे आना होगा और इस सामाजिक अपराध पर रोकथाम हेतु व्यक्तिगत रूप से मजबूती से प्रयास करने होंगे।