अभिव्यक्त का परिणाम इतना बेहतर नहीं कि अव्यक्त के लिए खेद प्रकट करें…
अभिव्यक्त का परिणाम इतना बेहतर नहीं कि अव्यक्त के लिए खेद प्रकट करें...

अभिव्यक्त का परिणाम इतना बेहतर नहीं कि अव्यक्त के लिए खेद प्रकट करें…
चुरू जिला मुख्यालय से साहित्यकार पत्रकार कुमार अजय अपनी डायरी में लिखते हैं ।कि इलाहाबाद के महाकुंभ की खबरों पर अखबारों में सीरीज छप रही। आज खबर है कि सन् 1398 में समरकंद से आए विदेशी आक्रांता तैमूर लंग ने हरिद्वार अर्द्धकुंभ मेले पर हमला कर लूटपाट की और नरसंहार किया। रोचक बात यह है कि तैमूर ने अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-तैमूरी में खुद इसका जिक्र किया है। कितने अच्छे लोग थे कि खुद ही लिख गए अपना किया-धरा। तोड़- मरोड़कर पेश करने का कोई स्कोप ही नहीं। महात्मा गांधी की आत्मकथा ‘सत्य के मेरे प्रयोग’ सामने टेबल पर धरी है। गांधी ने भी कितना कनफेस किया है। अपना भला-बुरा सब लिख डाला है। हालांकि गांधी और तैमूर की तुलना ही कितनी हास्यास्पद है। मानवता के इतिहास में दोनों दो ध्रुव हैं। सोशल मीडिया में हजार बुराइयां हों, पर एक अलग तरह का संसार तो इसने रचा ही है। कुछ चीजें जो कभी संभव न हो सकती थीं, सोशल मीडिया ने उन्हें कर दिखाया है। जहीर खान के बॉलिंग एक्शन से मशहूर हुई प्रतापगढ़ की सुशीला मीणा को आरसीए ने गोद ले लिया है। संसाधनों का अभाव तो नहीं ही रहेगा। बाकी लड़की की प्रतिभा और किस्मत की बात है। लड़की ने अपनी प्रतिभा से कन्विंस किया है। संभावनाएं जब कन्विंस करती हैं तो सारे संसाधन जुट जाते हैं। आप में कुछ कर गुजरने का माद्दा है तो बस यह विश्वास दिलाएं। कोई न कोई आ ही जाएगा सामने। कोई न कोई ही क्या, सारी कायनात ही आपके सपनों के लिए जुट ही जानी है। है कि उनके स्टार्टएप न्यूरोएक्सेस ने अपने चीन के वैज्ञानिकों का दावा ब्रेन कम्प्यूटर डिवाइस के सफल परीक्षण किए हैं और इंसान के मन की आवाज पढ़ पाने में सफलता हासिल की है। पहले परीक्षण में डिवाइस ने पता लगाया कि मरीज क्या सोच रहा है और दूसरे परीक्षण में उसके विचारों को रियल टाइम में चीनी भाषा में डिकोड किया है। वास्तव में यदि ऐसा है यह जोरदार ही है। मन के भीतर न जाने कितना कुछ घटित होता है, जिसे कभी स्वर नहीं मिलते और दूसरा कोई ठीक से पकड़ नहीं पाता। पकड़ भी ले तो साबित करना मुश्किल होता है। कितने ही अपराध भीतर ही भीतर घटित हो जाते हैं लेकिन बाहर घटित होने से चूक जाते हैं और आदमी सजा से बच जाता है। मन की सारी आवाजें बाहर प्रकट होने लगें तो कितने घमासान हो जाएं। घृणा, कुंठा, द्वेष तो अलग रहे, मन के भीतर का सारा प्रेम भी व्यक्त या घटित होने लगा तो कितनी आफतें आ जाएं। बहरहाल, ये परीक्षण न ही सफल हों तो अच्छा। सामने वाले के मन की आवाज सुननी है कि नहीं, ये मन पर ही छोड़ दें। सुनना चाहें तो किसी डिवाइस की जरूरत नहीं। नहीं सुनना चाहें तो डिवाइस भी बस डेटा ही दे पाएगा। कितना कुछ कहा हुआ हमारा अनसुना ही पड़ा है। हमने भी कितनी आवाजें अनसुनी छोड़ दी हैं। अव्यक्त का खजाना अभिव्यक्त से तो बहुत ही बड़ा है लेकिन अभिव्यक्त का परिणाम इतना बेहतर नहीं कि अव्यक्त के लिए खेद प्रकट किया जाए। बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी हम हार गए। हार-जीत कोई बड़ी बात नहीं। जो टीम अच्छा खेलती है, जीत जाती है। लेकिन खेल भावना हो तो हारकर भी दिल जीत लेते हैं लोग। आस्ट्रेलिया जीतकर भी हार गया, जब वहां मैच के बाद सौ मीटर मीटर दूर खड़े सुनील गावस्कर ट्रॉफी देने के लिए नहीं बुलाए गए। रोचक बात है कि इन्हीं पूर्व भारतीय कप्तान सुनील गावस्कर और पूर्व ऑस्ट्रेलियाई कप्तान एलन बॉर्डर के संयुक्त नाम से यह सीरीज चलती है। यह और कि भारत के जय शाह इन दिनों आईसीसी के अध्यक्ष हैं। कारण तो यह अनदेखी करने वाले ही जानते होंगे लेकिन यदि लीजेंड्स का यही अपमान होना है तो फिर उनके सम्मान में शुरू की गई यह सीरिज बंद ही कर दी जाए तो बेहतर होगा।