जयपुर की सड़कों पर स्कूटर से घूमे थे जाकिर हुसैन:ग्रैमी अवॉर्ड विनर बोले-खुद उठाते थे तबला; कार्यक्रम अनाउंसर से शेर लिखवाकर लेकर गए थे
जयपुर की सड़कों पर स्कूटर से घूमे थे जाकिर हुसैन:ग्रैमी अवॉर्ड विनर बोले-खुद उठाते थे तबला; कार्यक्रम अनाउंसर से शेर लिखवाकर लेकर गए थे

जयपुर : विश्वविख्यात तबला वादक और पद्म विभूषण उस्ताद जाकिर हुसैन (73) का निधन हो गया। सैन फ्रांसिस्को के अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। जाकिर हुसैन का जयपुर से नाता रहा है। उन्होंने जयपुर में कई प्रोग्राम किए थे। जयपुर की श्रुति मंडल संस्था के बैनर तले उन्होंने कई प्रस्तुतियां अलग-अलग सभागारों में दी।
जब जयपुर में उनके कार्यक्रम अनाउंस होते थे तो कई दिन पहले ही लोग उस कार्यक्रम के पास या टिकट पाने की जद्दोजहद में लग जाते थे। जनवरी 2019 में उन्होंने लास्ट परफॉर्मेंस बिड़ला सभागार में दी थी। कार्यक्रम में जाकिर हुसैन ने श्रोताओं से कहा था- मैं खुद को शिष्य कहलाना पसंद करता हूं। मैं चाहता हूं कि मैं अच्छा शिष्य बना रहूं। मुझे उस्ताद नहीं कहें, क्योंकि मैंने कुछ साल से चाय बेचना बंद कर दिया है। इसके बाद वे हंसने लगे।
जयपुर के पद्मभूषण और ग्रैमी अवॉर्ड विनर मोहन वीणा वादक पं. विश्वमोहन भट्ट से उस्ताद जाकिर हुसैन का गहरा लगाव था। यही वजह है कि एक बार वे जयपुर आए तो विश्वमोहन भट्ट के साथ स्कूटर पर बैठकर उनके घर गए थे। विश्वमोहन भट्ट ने जाकिर हुसैन के साथ जुड़ी यादों और अनुभवों को मीडिया के साथ शेयर किया।

रामबाग पैलेस होटल से मेरे साथ घर तक स्कूटर पर आए
विश्वमोहन भट्ट ने बताया- मैं जब अपने गुरु पंडित रवि शंकर जी के संपर्क में आया था, तब ही पहली बार उस्ताद जाकिर हुसैन साहब से मिला था। उनकी सादगी का मैं आज तक मुरीद हूं।
वे एक कार्यक्रम के लिए कई साल पहले जयपुर आए थे। वे जयपुर के रामबाग पैलेस होटल में रुके थे। मैं अपने स्कूटर से ही उनसे मिलने पहुंचा था। जब हम बात कर रहे थे तो उन्होंने होटल से मेरे घर की दूरी पूछी।
मैंने कहा- होटल से एक किलोमीटर दूर ही मेरा घर है। उन्होंने कहा- यह तो पास ही है, चलो घर चलते हैं। मैंने कहा- उस्ताद, आज मैं कार नहीं लाया हूं, स्कूटर से ही आया हूं। उन्होंने कहा- चलो, उसी से घर चलते हैं।
जाकिर हुसैन मेरे घर पर उसी स्कूटर पर आए। हमने घर पर साथ खाना भी खाया। वे मेरे परिवार से मिलकर बेहद खुश थे। सादगी का इससे बड़ा उदाहरण नहीं हो सकता।
उस्ताद से कई दशक पुराना है जुड़ाव
जाकिर साहब और उनके पिताजी के सामने मुझे प्रस्तुति देने का मौका मिला। यह बहुत गर्व की बात थी।

तबले को उस्ताद ने आम आदमी तक पहुंचाया
पंडित विश्वमोहन भट्ट ने बताया- तबले को आम आदमी तक पहुंचाने का श्रेय सिर्फ उस्ताद जाकिर हुसैन को है। उन्होंने इस वाद्य को इतना सरल बनाया कि घोड़े की टाप, शंकर भगवान का डमरू और मंदिर की घंटी उनके तबलों की थाप से सुनाई देती थी। वे असली एंटरटेनर थे।
शास्त्रीय संगीत के शास्त्र को पब्लिक को आसानी से समझाना उनकी खूबी थी। पंडित बिरजू महाराज ने भी ऐसे ही कथक के साथ किया था।
अपने तबले हाथों में लेकर आते थे, किसी और को उठाते नहीं देखा
पंडित विश्वमोहन भट्ट ने बताया- हमने कई बार साथ में भी परफॉर्म किया। एक बार चेन्नई (तमिलनाडु) में कार्यक्रम था। मेरे साथ पंडित विक्कू विनायक राम भी थे। उस्ताद जाकिर हुसैन भी आए थे। यह अब तक का सबसे यादगार कार्यक्रम रहा। इसे चेन्नई की म्यूजिक एकेडमी ने आयोजित किया था।
उस्ताद जाकिर हुसैन अपने दोनों हाथों से तबले लेकर आए। हमने कभी किसी और को उनके तबले उठाते नहीं देखा। यह एक बड़े कलाकार की निशानी होती है।
मेरी बड़ी बहन मंजू मेहता अहमदाबाद में हर साल शास्त्रीय संगीत समारोह करती हैं। हम हर साल इसमें जाते हैं। देश के बड़े और गुणी कलाकार आते रहे हैं। जाकिर भाई ने आगे से कहा था मैं इसमें जरूर आऊंगा। वे आते थे और आत्मीयता के साथ दिन बिताते थे।

कार्यक्रम के बाद हाथ से शेर लिखवाकर लेकर गए
जयपुर के प्रसिद्ध उद्घोषक अनंत व्यास ने बताया- जयपुर के श्रुति मंडल के कार्यक्रम में जाकिर हुसैन आया करते थे। पिछले 30-40 साल से वे जयपुर में होने वाले आयोजनों में हिस्सा ले रहे थे। मैंने कई बार उनके कार्यक्रम का संचालन किया है।
वे जिंदादिल और डाउन टू अर्थ इंसान थे। उनके जाने से तबला वादन के क्षेत्र में शून्यता आ गई है।
एक बार श्रुति मंडल की ओर से बिड़ला सभागार में कार्यक्रम रखा गया था। इसमें संतूर वादक पं. शिवकुमार शर्मा और बांसुरी वादक पं. हरिप्रसाद चौरसिया की जुगलबंदी थी। इसमें तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन भी मंच पर थे।
जब मैं उस्ताद जाकिर हुसैन को मंच पर आमंत्रित कर रहा था, तब मैंने उनके लिए मंच से एक शेर पढ़ा- ‘खुद से चलकर नहीं, ये तर्जे सुखन आया है, पांव दाबे हैं बुजुर्गों के तो फन आया है।’
शेर सुनने के बाद उन्होंने मेरी तरफ देखा और बहुत देर तक ताली बजाई। फिर जब प्रोग्राम खत्म हुआ और तो मेरे पास आए और कहा कि यह शेर मुझे लिखकर दे सकते हैं? तब मैंने उनको यह शेर लिखकर दिया।
मैंने जयपुर में उनके 10 से ज्यादा कार्यक्रम अनाउंस किए हैं। उनको काफी नजदीक से देखा है। उन्हें कभी कोई शिकायत नहीं होती थी। किसी भी तरह की नाराजगी का भाव नहीं रहता था। वे शांत और सौम्य थे।

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में खोले थे जीवन के पन्ने
2018 में जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल (JLF) में फेस्टिवल के प्रोड्यूसर संजॉय रॉय के साथ उस्ताद जाकिर हुसैन ने अपने जीवन के पन्नों को खोला था। लेखिका नसरीन मुन्नी कबीर ने जाकिर हुसैन पर पुस्तक ‘जाकिर हुसैन: ए लाइफ इन म्यूजिक’ लिखी थी।
सेशन ‘ए लाइफ इन म्यूजिक’ में उस्ताद जाकिर हुसैन ने कहा था- जब मैं पैदा हुआ तो मां ने मुझे पिता उस्ताद अल्लारक्खा की गोद में रखा। दस्तूर के मुताबिक उन्हें मेरे कान में एक प्रार्थना सुनानी थी। पिता बीमार थे, लेकिन फिर भी वो अपने होंठों को मेरे कानों के बिल्कुल करीब ले आए और तबले के कुछ बोल सुनाए। मां नाराज हुईं और कहा कि यह तो अपशकुन है। पिता ने जवाब दिया कि संगीत मेरी साधना है और सुरों से मैं सरस्वती और गणेश की पूजा करता हूं। इसलिए यही सुर-ताल मेरी दुआ है।