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भ्रष्टाचार का फास्ट ट्रेक : 60 साल पुराना नामान्तरण दो महीने में ही कर दिया कलेक्टर ने खारिज


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भ्रष्टाचार का फास्ट ट्रेक : 60 साल पुराना नामान्तरण दो महीने में ही कर दिया कलेक्टर ने खारिज

ना नगर परिषद को पार्टी बनाया, ना ही पट्टाधारियों को सुना, प्रशासन की मेहरबानी ऐसी कि, अपील हुई 2 बीघा 12 बिस्वा जमीन की, नाम कर दी 3 बीघा 6 बिस्वा जमीन

झुंझुनूं : रोड नंबर तीन पर एक बेशकिमती जमीन को लेकर विवाद खड़ा हो गया। जिसके बाद जमीन पर सालों से काबिज और पट्टा लेकर रह रहे लोगों की भी नींद उड़ी हुई है। जिला कलेक्टर रामावतार मीणा ने भी मामले में एक विवादास्पद फैसला देते हुए 60 साला पुराना नामान्तरण महज दो महीने की सुनवाई में फैसला देते हुए एक ही आदेश में निरस्त कर दिया। अपील 2 बीघा 12 बिस्वा जमीन की हुई थी। आदेश भी 2 बीघा 12 बिस्वा जमीन का दिया गया। लेकिन तहसीलदार और पटवारी ने मिलीभगत कर 3 बीघा छह बिस्वा जमीन ही 60 साल पुराने जमीन के मालिक के नाम वापिस चढा दी। जिसके बाद इस पूरी जमीन पर दुकान, मकान, स्कूल आदि चलाने वाले 15 से अधिक परिवार व लोगों की नींद उड़ी हुई है। इस मामले में वार्ड नंबर 17 संघर्ष समिति के सहदेव तेतरवाल, प्रताप डांगी, ताराचंद बुडानिया, रवींद्र तेतरवाल, संदीप मांजू, जगदीश भीमसरिया व रवींद्र भीमसरिया व समिति के विधि सलाहकार एडवोकेट रवींद्र लांबा ने प्रेस वार्ता की और बताया कि 1965 से पहले रोड नंबर तीन पर तीन बीघा छह बिस्वा जमीन जुहरा पुत्र शिम्भू खां कायमखानी के नाम दर्ज थी। साथ ही मालिकाना हक और कब्जा भी जुहरा कायमखानी के पास था। लेकिन 1965 में जुहरा ने अपनी जमीन का 8 बिस्वा हिस्सा सत्यनारायण दुबे व दीपनारायण दुबे को बेच दी। इसके बाद 1968 में 2 बीघा 12 बिस्वा जमीन नंदलाल महाजन को बेच दी। दोनों ने जमीन को जरिए रजिस्ट्री खरीद ली और नामान्तरण भी दर्ज करवा लिया। इसके बाद जुहरा खां की मृत्यु हो गई और मृत्यु के बाद जब शेष 6 बिस्वा जमीन उसके इकलौते पुत्र इस्माइल खान ने नरेंद्र कुमार को बेच दी। इसके बाद नरेंद्र कुमार की जमीन पर स्कूल बन गई। वहीं सत्यनारायण दुबे, दीपनारायण दुबे और नंदलाल महाजन ने भी जमीन को अलग-अलग टुकड़ों में जरिए रजिस्ट्री बेच दी। अब करीब 60 साल बाद जुहरा खां के पोतों ने अपनी दादा की जमीन को फिर से बेचने की कोशिश की जा रही है। जो गलत है। उन्होंने बताया कि जिला कलेक्टर न्यायालय में भी जुहरा खां के पोतों ने जो वाद दायर किया। उसमें सिर्फ नंदलाल महाजन के कोलकाता में रहने वाले परिवार के सदस्यों और अपने ही भाइयों को पार्टी बनाकर फैसला एक तरफा करवा लिया। उन्होंने बताया कि इस मामले में अब राजनैतिक रसूख और कुछ भूमाफियाओं ने शामिल होकर प्रशासन और पुलिस को प्रभावित करने का काम किया है। जिसके चलते पूर्व में रजिस्टर्ड रजिस्ट्रियों और पट्टों को भी दरकिनार किया जा रहा है। इस पूरे मामले में प्रशासन की मिलीभगत का प्रमाण इसी बात से मिलता है कि जुहरा खां के पोतों ने न्यायालय जिला कलेक्टर में तीन बीघा छह बिस्वा की अपनी पूरी जमीन का नहीं, बल्कि सिर्फ नंदलाल महाजन को बेची गई 2 बीघा 12 बिस्वा जमीन का दावा किया था। लेकिन कलेक्टर के निर्णय के बाद तहसीलदार और पटवारी ने पूरी की पूरी 3 बीघा 6 बिस्वा जमीन का नामान्तरण ही जुहरा खां के नाम खोल दिया। प्रेस वार्ता में युवा नेता यशवर्धन सिंह शेखावत भी मौजूद थे।

वादी भी जुहरा के पोते, परिवादी भी जुहरा के पोते
न्यायालय जिला कलेक्टर झुंझुनूं में 2 बीघा 12 बिस्वा जमीन को लेकर जो वाद प्रस्तुत किया गया। उसमें वादी और परिवादी, दोनों ही जुहरा खां के पोते बना दिए गए। ताकि मामला पारिवारिक झगड़े का दिखाई दे। लेकिन असल में सारे पोते और पोती एक साथ ही है। क्योंकि जुलाई 2022 में जुहरा खां के पोते-पोतियों ने 733 वर्ग गज के एक प्लॉट की रजिस्ट्री करवाई थी। जिसमें वादी और परिवादी में जो शामिल है। उन सबने संयुक्त रूप से साइन करके रजिस्ट्री करवाई थी। अब ऐसे दो पोतों को पार्टी बनाने का कोई कारण नजर नहीं आता। पार्टी में नंदलाल महाजन के दो परिजनों, जुहरा खां के दो पोतों तथा तहसीलदार को पार्टी बनाया गया। जबकि 2002 में यह जमीन आबादी क्षेत्र में आने से 90 ए हो गया और नगर परिषद झुंझुनूं में दर्ज हो गई। नगर परिषद झुंझुनूं ने बीते 10-11 सालों में इस पर काबिज और मालिकाना हक रखने वाले लोगों को पट्टे जारी कर दिए।

जुहरा के बेटे ने भी 6 बिस्वा जमीन करवाई अपने नाम
इधर, इस पूरे प्रकरण में यह भी दिलचस्प पहलू है कि जुहरा खां के इस्माइल एकलौती संतान थी। जिसने 2001 में अपने पिता की शेष 6 बिस्वा जमीन, जो लगभग 900 वर्ग होती है। वह नरेंद्र कुमार को बेची थी। लेकिन जब रजिस्ट्री करवाने की बात आई तो जमीन जुहरा खां के नाम ही अंकित थी। इसलिए इस्माइल को इसे बेचने में दिक्कत आ रही थी। जिसके बाद इस्माइल ने पूरी 3 बीघा 6 बिस्वा की बजाय, सिर्फ शेष 6 बिस्वा जमीन अपने नाम चढवाई और फिर नरेंद्र कुमार को उसकी रजिस्ट्री करवाकर पूरी जमीन बेच दी। क्योंकि उस वक्त जुहरा खां के पास सिर्फ 6 बिस्वा जमीन ही शेष थी। अन्यथा इस्माइल खां पूरी जमीन को ही अपने नाम करवाता। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। अब करीब छह दशक बाद जुहरा खां के पोते-पोतियों ने पहले तो नंदलाल महाजन को बेची जमीन 2 बीघा 12 बिस्वा जमीन पर अपना हक जताया। बल्कि जब अघोषित एक तरफा निर्णय करवा लिया तो पूरी 3 बीघा 6 बिस्वा जमीन अपने नाम तक चढवा ली।

दो साल पहले भी रजिस्ट्री करवाई तो कैश ले लिए पैसे
दो साल पहले पहली बार जुहरा खां के पोते-पोती सामने आए। जिन्होंने इस जमीन में स्थित 733 वर्ग गज के जमीन की रजिस्ट्री दो व्यक्तियों को करवाई। यह रजिस्ट्री करीब 60 लाख रूपए की थी। जिसमें उन्होंने आयकर विभाग के नियमों को ठेंगा दिखाया। सारे के सारे पैसे कैश ले लिए। जो गलत थे। यही नहीं जुहरा खां के पोते-पोतियों की संख्या 12 थी। जो वारिसान थे। लेकिन सिर्फ 8 वारिसानों के हस्ताक्षरों और सहमति से ही जमीन की रजिस्ट्री करवा दी। जबकि शेष चार का हक त्याग या फिर अन्य कोई दस्तावेज भी प्रस्तुत नहीं किया। जबकि इस जमीन का प्लॉट मालिक के पास 2013 का पट्टा उपलब्ध था। उसने जिस व्यक्ति से जमीन खरीदी थी। उसकी रजिस्टर्ड रजिस्ट्री थी। फिर भी ना केवल उसकी जमीन की उप पंजीयक झुंझुनूं ने रजिस्ट्री कर दी। बल्कि बाद में राजनैतिक रसूख के चलते पट्टा तक निरस्त कर दिया।

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