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झुंझुनूं में फर्जी पोस्टमार्टम के बाद अब फर्जी एफआईआर, नाबालिग को रखा मां से दूर, जानें पूरा मामला


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झुंझुनूं में फर्जी पोस्टमार्टम के बाद अब फर्जी एफआईआर, नाबालिग को रखा मां से दूर, जानें पूरा मामला

एक पत्रकार समेत छह लोगों को झूठे मुकदमे में फंसाने के लिए बाल कल्याण समिति ने करवाई थी फर्जी एफआईआर दर्ज, नाबालिग ने किया खुलासा

जनमानस शेखावाटी सवंददाता : चंद्रकांत बंका

झुंझुनूं  : जिले में फर्जी पोस्टमार्टम का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि अब एक फर्जी एफआईआर का मामला सामने आया है। जिससे पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े हो गए है। यही नहीं जिन बाल कल्याण समितियों को देखरेख और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों के पुनर्वास का जिम्मा सौंपते हुए पॉवर दिए गए थे। उनके द्वारा अपने पॉवर का दुरूपयोग करने का मामला भी सामने आया है। दरअसल पिछले महीने 12 अक्टूबर को चूरू के महिला थाने में बाल कल्याण समिति झुंझुनूं ने एक नाबालिग बच्ची की ओर से झुंझुनूं के एक पत्रकार समेत छह लोगों के खिलाफ पोक्सो की धाराओं में मामला दर्ज करवाया था। मामला दर्ज करवाने के बाद बच्ची को जब उसकी मां बाल कल्याण समिति झुंझुनूं के पास लेने के लिए पहुंची तो करीब डेढ महीने तक उसे बच्ची नहीं सौंपी गई। अब मां की अपील पर राजस्थान हाईकोर्ट जयपुर की डबल बैंच ने मामले की सुनवाई करते हुए मां को उसकी बच्ची तुरंत सौंपने के आदेश दिए है। जिसके बाद बच्ची ने चौंकाने वाले खुलासे किए है। बच्ची ने बताया कि उससे खाली कागजों पर साइन करवाकर बाल कल्याण समिति की सदस्य शर्मिला पूनियां ने झूठी एफआईआर दर्ज करवाई है। साथ ही बाल कल्याण समिति झुंझुनूं और चूरू से जुड़े कुछ ऐसे लोगों के नाम भी बताए है। जिनके द्वारा लगातार झूठी एफआईआर दर्ज करवाने का दबाव इस बच्ची पर था। खास बात यह है कि बच्ची के साथ छेड़छाड़ की घटना की सूचना परिजनों को देने की बजाय बाल कल्याण समिति ने पुलिस को दी और सीधा एफआईआर दर्ज करवा दी। बच्ची के साथ जो कथित घटना बताई गई है वो भी ढाई से तीन साल पुरानी है। लेकिन बाल कल्याण समिति ने एफआईआर दर्ज करवाने में इतनी दिलचस्पी दिखाई कि छुट्टी के दिन चूरू से बीकानेर, बीकानेर से झुंझुनूं और झुंझुनूं से चूरू दौड़कर एफआईआर दर्ज करवाई और एफआईआर दर्ज करवाने के बाद बच्ची को डेढ महीने तक मां को भी सुपुर्द नहीं किया। बच्ची की मां ने बाल कल्याण समिति के अलावा आयुक्त बाल अधिकारिता विभाग, कलेक्टर झुंझुनूं, एसपी झुंझुनूं, सहायक निदेशक बाल अधिकारिता विभाग समेत सभी जगहों पर चक्कर लगाए। लेकिन बाल कल्याण समिति के सामने सभी असहाय नजर आए। आखिरकार मां ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने मामले में आदेश देते हुए तुरंत बच्ची की सुपुर्दगी मां को दी। बच्ची ने मां के साथ बाहर आकर सारी आप बीती बयां की। जिससे पूरे सिस्टम और खासकर बाल कल्याण समिति पर सवाल खड़े हो गए है।

केस करवाने में सिर्फ दो दिन लगाए, छोड़ने के लिए निर्णय तक नहीं ले सके

बाल कल्याण समिति की मंशा पर इसलिए भी सवाल खड़े हो रहे है। क्योंकि जिस नाबालिग की काउंसलिंग रिपोर्ट पर बाल कल्याण समिति झुंझुनूं ने चूरू के महिला थाने में मुकदमा दर्ज करवाने में सिर्फ दो दिन लगाए। उसी नाबालिग को उसकी मां को सुपुर्दगी देने के लिए डेढ महीने के समय भी बाल कल्याण समिति कोई निर्णय नहीं ले पाई। उन्होंने बीकानेर से काउंससिंग रिपोर्ट मंगवाई और विभागीय अधिकारियों से सामाजिक अन्वेक्षण रिपोर्ट तक तैयार करवाई। लेकिन सभी को दरकिनार करते हुए मां की एप्लीकेशनों को खारिज कर दिया और बच्ची ना देने का निर्णय लिया।

मां-बेटी दोनों को कटवाए चक्कर, डेढ महीने में इधर-उधर का घुमाते रहे
इस मामले में जब एफआईआर दर्ज करवाई उस वक्त नाबालिग बालिका गृह बीकानेर में आवासित थी। लेकिन जब नाबालिग की मां ने अपनी पुत्री की सुपुर्दगी चाही तो बाल कल्याण समिति ने आनन फानन में उसे चूरू सखी सेंटर पर स्थानान्तरित कर दिया। यहां पर भी नियमों कायदों के कारण ज्यादा दिन तक रख नहीं सकते थे। तो आनन फानन में जयपुर बालिका आश्रय गृह भेजा गया। पिछले डेढ़ महीने में मां अपनी बेटी को अपने पास लाना चाहती थी। बेटी भी बिना कोई दबाव के मां के पास जाने के लिए बार—बार बोल रही थी। लेकिन बाल कल्याण समिति मां को बेटी की सुपुर्दगी देने की बजाय मां को सरकारी कार्यालयों में और बेटी को अलग—अलग आश्रय स्थलों के चक्कर कटवाती रही।

आदतन एफआईआर बाज बन गए बाल कल्याण समिति वाले
बाल कल्याण समिति का सीधा सीधा सा काम केवल और केवल ऐसे बच्चों की देखभल और उनका पुनर्वास है। जिनको संरक्षण और देखभाल की जरूरत है। लेकिन पर्यावरण सुधार समिति के संचालक राजेश अग्रवाल और उसके स्टाफ तथा झुंझुनूं बाल कल्याण समिति की एक पूर्व महिला सदस्य के पत्रकार पति को झूठे केसों में फंसाने के लिए बाल कल्याण समिति चूरू आदतन एफआईआरबाज बन गई। जिसमें झुंझुनूं बाल कल्याण समिति से जुड़ा एक नाम भी नाबालिग ने खुलकर बताया है। जो षड़यंत्र में शामिल है। बाल कल्याण समिति चूरू ने राजेश अग्रवाल पर अब तक तीन मुकदमे और इस पत्रकार पर दो मुकदमे दर्ज करवाए है। पोक्सो के एक मामले में पूर्व में एफआर लग चुकी है। बावजूद इसके एफआईआर दर्ज करवाने के लिए बाल कल्याण समिति चूरू बाज नहीं आ रही है। अब बाल कल्याण समिति झुंझुनूं का कार्यभार मिलने के दो दिन में ही उन्होंने एक और मामला दर्ज करवा दिया। जो पूरी तरह झूठ पर टिका हुआ सामने आया है।

कलेक्टर के नाम का दुरूपयोग करने में भी नहीं हिचकिचाए
इस मामले में अपने पद का दुरूपयोग तो बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष व सदस्यों ने किया ही है। लेकिन कलेक्टर झुंझुनूं के नाम का भी दुरूपयोग करने से जरा सा भी हिचकिचाहट नहीं की। नाबालिग की मां की एप्लीकेशन को खारिज करने के आदेश में बाल कल्याण समिति ने लिखा है कि उन्होंने कलेक्टर झुंझुनूं के आदेश से पोक्सो का मामला चूरू में दर्ज करवाया है। जबकि ​कलेक्टर झुंझुनूं रामावतार मीणा ने ऐसा कोई भी आदेश और निर्देश देने से साफ इंकार किया है।

अब बचते फिर रहे, कोई दूसरे का नाम ले रहा, तो कोई बात करते-करते काट रहा है फोन, किसी ने थोड़ा बताया, सवालों का जवाब नहीं मिला तो बोला-धन्यवाद

इस मामले को लेकर बाल कल्याण समिति झुंझुनूं की कार्यवाहक अध्यक्ष व सदस्यों से हमने बातचीत करने की कोशिश की। तो अलग-अलग माहौल देखने को मिला। अध्यक्ष ने बात करते करते फोन कट कर दिया। तो दूसरे सदस्य ने महिला सदस्य का नाम लेते हुए बातों से पल्ला झाड़ लिया।

इस मामले में बाल कल्याण समिति झुंझुनूं की कार्यवाहक अध्यक्ष कमला देवी ने बताया कि हमने जो भी किया है। वो नियमों के अनुसार। कानून के हिसाब से सही किया है सारा काम। बच्ची के हित में ही किया है। वो हमारी बच्ची थी। जो किया है नो वो बच्ची के हित में किया है। यह कहते हुए फोन काट दिया। इसके बाद उन्हें संवाददाता ने कई बार फोन मिलाया। लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया। वहीं बाल कल्याण समिति झुंझुनूं के कार्यवाहक सदस्य हरफूल सिंह से भी बातचीत की गई। उन्होंने पहले तो नाबालिग को मां को सुपुर्द ना करने के कारण बताया और कहा कि उन्होंने कोई डॉक्यूमेंट्स पेश नहीं किया। लेकिन जब हमारे संवाददाता ने उन्हें काउंसलिंग, एसआईआर, एफआईआर और प्रार्थना पत्र खारिज को लेकर सवाल किया तो उन्होंने साफ-साफ पल्ला झाड़ते हुए कहा कि काउंसलिंग का मुझे नहीं पता। आप शर्मिला जी से बात करो। प्रार्थना पत्रों को खारिज करने के आदेश पर मेरे साइन भी नहीं है। काउंसलिंग, एफआईआर और प्रार्थना पत्र खारिज के मामले में आप शर्मिला जी से बात करो। थोड़ी देर बाद उन्होंने वापिस फोन करके बताया कि हमने जो कार्रवाई की। वो हमारे दिमाग से नियमानुसार किया है। ना तो हमारा मकसद था कि बच्ची को परेशान करें। उन्होंने कहा कि जब नाबालिग की मां आई थी। तो उसके पास ना तो आधार कार्ड था और ना ही राशन कार्ड। जब उनसे मांगा तो उन्होंने कहा कि कुछ नहीं है हमारे पास। बच्ची ने अब क्या कहा है। उस पर मैं नहीं जाना चाहता। बातचीत में हरफूल ने बाल अधिकारिता विभाग के अधिकारियों द्वारा तैयार की गई एसआईआर रिपोर्ट पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि रिपोर्ट में ना तो आधार कार्ड आया और ना ही राशन कार्ड। लगातार सवालों से फंसते हुए हरफूल ने अंत में यही कहा कि मैं फाइल देखकर ही बताउंगा। इससे ज्यादा कुछ नहीं बता सकता। धन्यवाद। मामले में एक सदस्य मनीराम ने भी कुछ नहीं कहा।

हमने नहीं, एसपी ने करवाई है एफआईआर—शर्मिला पूनियां

नाबालिग बच्ची द्वारा चूरू में दर्ज करवाई एफआईआर मामले में अब जब बाल कल्याण समिति झुंझुनूं की कार्यवाहक सदस्य शर्मिला पूनियां घिरती नजर आई तो उन्होंने बड़ी बात कही है। उन्होंने कहा है कि जो एफआईआर दर्ज हुई है। वो बाल कल्याण समिति ने नहीं, बल्कि एसपी ने करवाई है। उन्होंने एफआईआर को लेकर झुंझुनूं कलेक्टर द्वारा दिए गए आदेश के मामले में भी संवाददाता द्वारा यह पूछने पर ​भी कि कलेक्टर झूठ बोल रहे है क्या। तो पूनियां ने कहा बोल सकते है। हमारे पास उनका आदेश है। उन्होंने कहा कि कोई भी कुछ भी आरोप लगा सकता है। लेकिन बाकायदा बच्ची के कहने पर रिपोर्ट तैयार की गई है। उन्होंने कहा कि बाकि बातें फाइल देखकर ही बताई जा सकती है। उन्होंने बच्ची द्वारा दी गई यह जानकारी कि 11 अक्टूबर को शर्मिला पूनियां ने फोन पर बाल कल्याण समिति झुंझुनूं की पूर्व अध्यक्ष अर्चना चौधरी से बातचीत करवाई थी। जिस पर भी उन्होंने गोलमाल जवाब देकर और अधिक सवाल पैदा कर दिया है। उन्होंने कहा कि उन्होंने बाल कल्याण समिति बीकानेर के अध्यक्ष व्यासजी से बात करवाई थी। उन्होंने कहा कि जो निर्णय लिया गया है कि वो उनके अकेले का नहीं है। बल्कि पूरी समिति का है।

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