हरियाणा : हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा ने भले ही बंपर जीत हासिल की हो, लेकिन वह हरियाणा के 5 जिलों में अपना खाता भी नहीं खोल पाई। इन जिलों में नूंह, सिरसा, झज्जर, रोहतक और फतेहाबाद शामिल हैं। अगर बेल्ट के हिसाब से देखें तो ये जिले बागड़, देसवाल और नूंह बेल्ट में आते हैं। इन जिलों में कुल 19 विधानसभा सीटें हैं।
वहीं, कांग्रेस ने जाट लैंड और बागड़ बेल्ट को जीता। बागड़ ऐसी बेल्ट है, जहां कांग्रेस का प्रदर्शन पिछली बार से बेहतर रहा है। पार्टी को बागड़ बेल्ट से अतिरिक्त 6 सीटों का फायदा हुआ है। इस बेल्ट में जाट मतदाता सबसे ज्यादा हैं।
वहीं, इस बेल्ट में भाजपा का प्रदर्शन पिछली बार जैसा ही रहा। इस बार बागड़ बेल्ट में भाजपा ने 8, कांग्रेस ने 10, इनेलो ने 2 और निर्दलीय ने 1 सीट जीती। वहीं, 2019 में भाजपा ने 8, कांग्रेस ने 4, JJP ने 5, इनेलो ने 1 और निर्दलीय ने 2 सीटें यहां से जीती थीं।
इन 5 जिलों में क्यों हारी बीजेपी… सिरसा और फतेहाबाद में किसान आंदोलन का असर
सिरसा और फतेहाबाद की सभी 8 सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की। किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा असर इन जिलों में देखने को मिला। यहां नशाखोरी का मुद्दा भी चुनाव में छाया रहा। नशाखोरी रोकने के लिए भाजपा सरकार द्वारा किए गए इंतजाम नाकाफी नजर आए। इन सीटों पर जाटों के साथ-साथ जाट सिख मतदाताओं की नाराजगी भी देखने को मिली। दोनों जिलों की पंजाबी बेल्ट में भाजपा का प्रदर्शन निराशाजनक रहा।
रोहतक-झज्जर में हुड्डा मैजिक चला
रोहतक लोकसभा के अंतर्गत आने वाली सीटों पर हुड्डा फैक्टर अभी भी काम कर रहा है। दोनों जिलों की 8 में से 7 सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की। यहां भाजपा दूसरे या तीसरे स्थान पर रही। इसकी वजह यह रही कि लोगों में यह संदेश गया कि कांग्रेस की सरकार आ रही है और हुड्डा सीएम बन रहे हैं। इस वजह से यहां भाजपा का खाता भी नहीं खुला।
मेवात में मुसलमानों ने भाजपा को नकारा
मेवात की तीनों सीटों पर भाजपा कोई कमाल नहीं कर पाई। यहां नूंह दंगों का असर देखने को मिला। यहां के लोगों में बीजेपी के खिलाफ नाराजगी है। लोगों ने बीजेपी सरकार पर क्षेत्र में विकास न होने और भेदभाव का आरोप लगाया था। बीजेपी इन मुस्लिम बहुल इलाकों में अपना खाता भी नहीं खोल पाई।
विधायकों-मंत्रियों की कार्यशैली
सिरसा और फतेहाबाद में भाजपा विधायकों और नेताओं की कार्यशैली को लेकर भी लोगों में नाराजगी रही। सिरसा में भाजपा ने गोपाल कांडा पर भरोसा जताया। फतेहाबाद में लोग दुड़ाराम की कार्यशैली से नाखुश थे। टोहाना में बराला-बबली की टिकट से नाखुश थे और ऐलनाबाद, रानियां व डबवाली में कमजोर उम्मीदवार उतारे गए थे।
सत्ता विरोधी लहर
सत्तारूढ़ भाजपा सरकार के खिलाफ लोगों में जबरदस्त सत्ता विरोधी लहर थी। लोकसभा चुनाव के नतीजों का असर यहां भी देखने मिला। जनता कई जगहों पर खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर करती रही, लेकिन प्रदेश इकाई के नेता आंखें मूंदे रहे। ऐसे में जैसे ही मौका मिला, जनता ने वोट के जरिए अपनी बात रखी।
तीन लालों की धरती है बागड़ बेल्ट
बागड़ बेल्ट पर चौधरी ओमप्रकाश चौटाला, चौधरी बंसीलाल और भजनलाल परिवार का दबदबा रहा है। वर्तमान में भजनलाल परिवार से कुलदीप बिश्नोई, बंसीलाल परिवार से किरण चौधरी और चौटाला परिवार से अजय और अभय चौटाला राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।
राजनीतिक रूप से यह बेल्ट प्रदेश में सबसे मजबूत रही है और इस धरती ने ताऊ देवीलाल समेत 4 मुख्यमंत्री दिए हैं। राजस्थान और पंजाब से सटे होने के कारण यहां बागड़ी और पंजाबी दोनों भाषाएं बोली जाती हैं। बागड़ बेल्ट में चरखी दादरी, भिवानी, सिरसा, हिसार और फतेहाबाद जिलों के 21 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं।