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रिलेशनशिप- ‘जीत में विनम्र, हार में गरिमापूर्ण रहना’:रतन टाटा के ये शब्द हमेशा याद रखना और वो 11 सबक, जो उनके जीवन का सार थे


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रिलेशनशिप- ‘जीत में विनम्र, हार में गरिमापूर्ण रहना’:रतन टाटा के ये शब्द हमेशा याद रखना और वो 11 सबक, जो उनके जीवन का सार थे

रिलेशनशिप- ‘जीत में विनम्र, हार में गरिमापूर्ण रहना’:रतन टाटा के ये शब्द हमेशा याद रखना और वो 11 सबक, जो उनके जीवन का सार थे

मुंबई में फ्लोरा फाउंटेन के बगल में एक बड़ी सी इमारत है- टाटा हाउस। उस बिल्डिंग की बाजू वाली गली में ग्रे कलर की इंडिका कार से एक 70 साल के शख्स उतरते हैं। उन्होंने हल्के नीले रंग की सूती शर्ट और एक ढीली सी ग्रे कलर की पैंट पहन रखी है। पैरों में लेदर की सैंडिल है। गाड़ी से उतरकर वह सीधे बिल्डिंग की तरफ बढ़ते हैं और इमारत में घुसते ही दिख रही लिफ्ट के बगल में खड़े हो जाते हैं। सामने ऊपर जाने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे लोगों की लाइन है। वह पीछे खड़े हैं।

ये जो मामूली से कपड़ों में, एक बड़ी साधारण सी गाड़ी खुद चलाकर आया और लाइन में खड़ा इंसान है, वो कोई और नहीं, बल्कि खुद रतन टाटा हैं। इस टाटा हाउस के मालिक। देश की सबसे पुरानी और सबसे समृद्ध कंपनियों में से एक टाटा ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के ओनर।

परसों बुधवार को देर रात करीब 11 बजे रतन नवल टाटा ने अंतिम सांसें लीं। 86 साल के रतन टाटा मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल की इंटेंसिव केयर यूनिट (ICU) में भर्ती थे।

दुनिया में जो भी आया है, उसे एक दिन जाना ही है। लेकिन सवाल ये है कि कोई अपने पीछे कौन सी लीगेसी छोड़कर जाता है। वो किन विचारों, मूल्यों, आदर्शों के रूप में लोगों की स्मृतियों में और आने वाली पीढ़ियों की जिंदगी में हमेशा जीवित रहता है।

टाटा हाउस में काम करने वाले बहुत से लोग उनसे कहीं ज्यादा तैयार होकर, सूट-बूट में चमकते हुए ऑफिस आते थे। लेकिन रतन टाटा रोज उन्हीं साधारण कपड़ों में ऐसे आते कि अगर कोई उनका चेहरा न पहचानता हो तो उन्हें टाटा हाउस का मामूली एम्प्लॉई भी समझ सकता था।

वे रोज लिफ्ट के सामने खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करते। अगर उनके सामने कोई चपरासी, कोई क्लर्क भी खड़ा हो और रतन जी को पहले जाने के लिए कहे तो वो इनकार कर देते और चुपचाप लाइन में खड़े रहते। टाटा हाउस में ऐसी ही कहानियां उनके अंकल जेआरडी टाटा के बारे में भी सुनाई जाती हैं। क्या पता यह विनम्रता, यह सादगी उनमें वहीं से आई हो।

तो चलिए, आज इस कॉलम में भारी दिल, भरी आंखों और मन में बहुत सारे प्यार और सम्मान से याद करते हैं रतन टाटा को।

कोई रतन टाटा कैसे बनता है

हम जीवन में हमेशा सक्सेस की, समृद्धि की, पद, पावर और पैसा हासिल करने की बात करते हैं। हर कोई ये सब पाना चाहता है। लेकिन इस बारे में बात कम ही होती है कि ये सब पाने वाले लोगों में वो क्या यूनीक बात थी, जिसने उन्हें सफलता के उस ऊंचे मुकाम तक पहुंचाया।

कोई लीडर सिर्फ इसलिए नहीं बन जाता क्योंकि पिता की खड़ी कंपनी उसे विरासत में मिल गई। कंपनी तो मिल सकती है, लेकिन सफलता, अपने आसपास के लोगों का प्यार और सम्मान नहीं मिल सकता, अगर उसमें काबिलियत न हो, उसके व्यक्तित्व में गहराई और चरित्र में महानता न हो।

रतन टाटा ने अपनी जिंदगी में जो कमाया, वो सिर्फ पैसा और सफलता नहीं थी। सच पूछो तो ये चीजें उनके लिए सबसे मामूली थीं। उन्होंने जो कमाया, वो है इज्जत और जानने वालों के दिलों में उनके लिए अपार मुहब्बत।

समृद्धि को दिखावे की जरूरत नहीं होती

किन्हीं खास मौकों को छोड़ दें तो रतन टाटा हमेशा बड़े मामूली कपड़े और चप्पल पहनते थे। मामूली फोन रखते थे, इंडिका गाड़ी से चलते थे और उसे भी वो खुद ही चलाते थे। उनकी रोजमर्रा की जिंदगी, रहन-सहन, पहनावे में कोई दिखावा नहीं था। ये सिर्फ बाहरी बातें नहीं थीं। ये किन्हीं गहरे मूल्यों से निकली बात थी कि बाहरी चमक से उन्हें फर्क नहीं पड़ता था। फर्क पड़ता था तो सिर्फ इस बात से कि उनका काम कितना सुंदर और चमकदार है।

भावनाएं कमजोरी नहीं, हमारी ताकत हैं

रतन जी ने एक बार कहा था कि मैंने अपने जीवन में सबसे हिम्मत, सबसे ताकत का एक ही काम किया है कि अपनी फीलिंग्स को दुनिया के सामने जाहिर होने दिया। वो कितने खुले दिल से प्यार करते थे, अपने इमोशंस को जाहिर करते थे, इसकी सैकड़ों कहानियां आपको उन युवाओं से, बच्चों से सुनने को मिलेंगी, जो कभी भी अपने किसी यूनीक आइडिया के साथ फंडिंग की उम्मीद में रतन टाटा के पास पहुंच जाते थे।

जब भी उन्हें कोई यूनीक, ओरिजिनल आइडिया मिला तो उन्होंने खुले दिल से उसका स्वागत किया, युवाओं की मदद की। वो अगर लोगों पर नाराज होते थे तो प्यार जताने में भी कभी पीछे नहीं रहते थे।

लीडर का काम कंट्रोल करना नहीं, केयर करना है

हम सब जीवन में लीडर बनना चाहते हैं, लेकिन ये नहीं सोचते कि एक सच्चे लीडर का काम क्या है। वो सिर्फ लोगों को निर्देश नहीं देता, उनसे काम नहीं कराता, उन्हें काम सिखाता भी है। उनका हाथ पकड़ता है, राह दिखाता है। उन्हें काबिल बनने में मदद करता है और ये सब करने के बदले में कुछ नहीं चाहता। वो हमेशा परवाह करता है, फिक्र करता है, फख्र करता है।

इस बात के गवाह वो सैकड़ों, हजारों लोग हैं, जिन्होंने उनके साथ काम किया है। जिन्होंने रतन टाटा के विजन के साथ-साथ उनकी केयर देखी है, उनके साथ ग्रो किया है। इस लीगेसी के आगे संसार की सारी संपदाएं बहुत मामूली हैं।

आलोचना हमारी सबसे बड़ी शिक्षक है

1981 में जब जेआरडी टाटा ने रतन टाटा को टाटा ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज का अगला उत्तराधिकारी घोषित किया तो इस फैसले पर खुश होने वालों से ज्यादा बड़ी तादाद थी उन लोगों की, जो इससे नाराज थे। टाटा समूह के कर्मचारी, निवेशक और शेयरहोल्डर्स, सब इस फैसले से नाराज थे। अखबारों के एडिटोरियल और ओपिनियन कॉलम कह रहे थे कि एक नौसिखिया इस जिम्मेदारी को उठाने के काबिल नहीं। रतन टाटा को भयानक सार्वजनिक आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।

लेकिन इन सबका नतीजा क्या हुआ? रतन टाटा ने एक बार सार्वजनिक मंच से ये बात कही थी कि आलोचना हमारी सबसे बड़ी शिक्षक है। वही सिखाती है। चुनौतियां असल में सीखने का मौका हैं और गलतियां जिंदगी के सबसे कीमती सबक हैं।

कोई राह ऐसी नहीं होती, जो एक रेखा में बस सीधी चलती रहे। उतार-चढ़ाव ही उस रास्ते के जिंदा होने की निशानी हैं। सीधे-सीधे तो ECG की लाइन भी चले तो इसका मतलब कि इंसान मर गया।

क्या ऐसा नया सोचा, जो पहले किसी ने न सोचा था

फेमस हॉलीवुड एक्टर अल पचीनो ने कुछ दिन पहले न्यूयॉर्क टाइम्स के साथ बातचीत में एक बड़ी सुंदर बात कही- “बेस्ट कुछ नहीं होता। सब अच्छा काम कर रहे हैं। सब बेस्ट हैं। सवाल है कि आप कितने ओरिजिनल हैं। आपने क्या नया सोचा, क्या नया किया, जो पहले कभी नहीं हुआ था।”

रतन टाटा की पूरी जिंदगी, पूरा करियर इनोवेशन और यूनीकनेस का गवाह है। इसलिए आगे बढ़ने के लिए हमेशा खुद से एक ही सवाल पूछना चाहिए- “मैंने क्या नया किया, क्या नया सोचा। बेस्ट नहीं, मैं कितना ओरिजिनल हूं।”

जो दूसरों से चाहते हो, पहले खुद करके दिखाओ

बतौर लीडर हम जो चाहते हैं कि हमारी टीम करे, जिस रास्ते पर चले, उस रास्ते पर पहले हमें खुद चलना होता है। पहले वो खुद करके दिखाना होता है। अगर चाहते हैं कि टीम मेहनत करे तो उससे चार गुना मेहनत पहले खुद करनी होती है। अगर प्यार पाना चाहते हैं तो बहुत सारा प्यार पहले देना होता है। वही चीज हम तक लौटकर आती है, जो हमने दी हो।

रतन टाटा की जिंदगी इसकी मिसाल है। उन्हें इतना प्यार, इतना सम्मान इसलिए मिला क्योंकि उन्होंने वो दिया। उनकी टीम मेहनत इसलिए करती थी क्योंकि 80 साल की उम्र में वो खुद टीम के युवाओं से ज्यादा मेहनत करते थे।

इंसानों और रिश्तों में कितना इन्वेस्ट किया

कंपनी और करियर को बढ़ाने में तो सब इन्वेस्ट करते हैं, लेकिन सवाल ये है कि जिंदगी में, रिश्तों में, दोस्तियों में कितना इन्वेस्ट किया। उन्हें सिर्फ पैसा और सुविधा नहीं दी। उन्हें अपना वक्त दिया, अटेंशन दिया, प्यार और ख्याल दिया। पार्टनर को बांहों में भरकर कहना नहीं भूले कि उनसे कितना प्यार करते हैं। हर रात बच्चों का माथा चूमकर, उन्हें कहानी सुनाकर सुलाया। अपने दोस्तों, सहकर्मियों के सुख-दुख में साथ खड़े रहे, हाथ थामा, गले लगाया।

यही सबसे कीमती पूंजी है, जो रतन टाटा साथ लेकर गए। उन्होंने कभी शादी नहीं की। उनका अपना कोई परिवार नहीं था, लेकिन फिर भी बहुत बड़ा परिवार था, उन लोगों का जो उनसे प्यार करते थे, उनकी परवाह करते थे।

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