कैसे चहकती है चिड़िया जैसे कोई तानसेन का संगीत
वो छोटी सी चिड़िया कितना फुदकती है एक पेड़ से दूसरे पे
वो बेमकसद नहीं निकली है घोसले से
उसको चोंच भर दाने चाहिए बच्चों का पेट भरने
उसे कंठ भर पानी चाहिए बच्चों का गला तर करने
वो चिड़िया कितनी हसरतों से फुदकती है
पर वो देखती है तालाब सूखे पड़े हैं
झरने थम गए, घरों पर बस पानी के परिंडे में काई बची है
तो हो निराश वो चल पड़ती है किसी और दिशा में
पर उसे कहाँ पता है दस दिशाओं का
उसे सूखा ही मिलेगा हर तरफ
नैऋत्य हो या ईशान
उसे कहां मिलेंगे वो दो जून के दाने, वो पानी की बूंदे
फिर बैठा है अजगर भी उसके घोसलों की तरफ
चिड़िया ने भी बनाया है दो दरवाजे का घोंसला
शायद वो सांप को भ्रमित कर सकती है
पर इंसान को कैसे करेगी
कैसे वो अपने बच्चों को बचा पाएगी
उस सांप से नहीं, इंसानी हसरतों से
वो बहते दरिया का पानी पीने वाली चिड़िया
तेरी गलती यह है कि तू अस्तित्व में देरी से आई
तुम्हारे प्रकृतिनुमा मकान में इंसानी बस्तियां कब की बस चुकी
फिर तू चाहे कैसे भी ढूंढ दाना पानी
लगेगा तुम्हें की फ़क़त खाक छानी
अरे ओ मासूम चिड़िया
तेरे हिस्से के पानी से धो ली है मैंने अपनी गाड़ी
क्या तू कीचड़ पीने की आदी है
तेरे हिस्से के दानों को मैं कर आयी निर्यात
क्या तुझे भूंसे में सुई ढूंढने की कला है
तो ढूंढ लो तुम भी कुछ दाने
और हां, गलती से तुम मेरे घर की मुंडेर पर मत आना
मैंने ए.सी. की रक्षा के लिए नुकीले प्लास्टिक लगाए हैं
कहीं तुम फंसकर मेरे शाम का भोजन न बन जाओ
और कहीं बच्चे तुम्हारे इंसानी सांप निगल ना जाए
ओ भोली चिड़िया काश तू भी सीख लेती
घोंसले की जगह खेती करना,पानी बचाना
तो तू मेरा मुंह नहीं तकती
मुझसे कोई उम्मीद ना रखती
लेकिन तेरे तिकोने पैरों की छाप की चाह मुझे आज भी है
पर कहां बनाएगी तू मेरे आंगन में ना कच्ची मिट्टी है ना पुताई
अब तेरे यह निशान भी शायद हवा में बन सके तो बना
ओ छोटी चिड़िया
तू प्रलय की पहली को तो नहीं दोहराना चाहती ना
कहीं तू इस युग को सतयुग बनाने की चाह तो नहीं रखती
ताकि तू भी संसद में अपनी बात बोलकर उठा सके
बेशक तू बेजुबान होके जुबान चाहती है
ताकि कोई तुझे समझे
पर सच कहूं समझ हमें आ गया है
पर हम समझ के अनजान बनने के आदी हैं
चलो अब लौट जाओ तुम अपने तिनकों के घोंसले में
ओ छोटी चिड़िया
तुम इस खाद्य जाल का बेहद जरूरी हिस्सा हो
कहीं तुम अपनी प्रजाति समेत खो मत जाना
ओ नन्ही चिड़िया
तेरी चहचहाट मुझे राग मल्हार से भी प्यारी है
पर शायद यह अंधाधुंध विकास तेरी हैसियत से ज्यादा पसंद है
‘उमा’ यह चिड़िया पंख पाके तुझसे आजाद है
और तू सब कुछ पा के भी हसरतों की गुलाम है
उमा व्यास (एसआई, राज.पुलिस)
कार्यकर्ता, श्री कल्पतरु संस्थान