संजीवनी मामला- शेखावत को क्लीन चिट मिलने के 5 कारण:एसओजी की चार चार्जशीट में सीधे आरोपी नहीं, न तो निवेश न पार्टनरशिप साबित हुई
संजीवनी मामला- शेखावत को क्लीन चिट मिलने के 5 कारण:एसओजी की चार चार्जशीट में सीधे आरोपी नहीं, न तो निवेश न पार्टनरशिप साबित हुई
जयपुर : प्रदेश का सबसे चर्चित संजीवनी क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी घोटाला, जिसमें 2 लाख से ज्यादा लोगों से एक हजार करोड़ से ज्यादा रुपयों की ठगी हुई। घोटाले की जांच करने वाली एजेंसी राजस्थान एसओजी 2 चार्जशीट दाखिल कर चुकी थी। लेकिन यह घोटाला तब देशभर में चर्चा बना, जब एसओजी की तीसरी चार्जशीट में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और उनके परिवार का नाम सामने आया। इस मामले को लेकर खूब राजनीति हुई।
लेकिन एसओजी ने अपनी आखिरी जांच में पाया कि गजेंद्र सिंह शेखावत की इस घोटाले में कोई भूमिका नहीं है। सोसाइटी चलाने के लिए निदेशक विक्रम ने उनके नाम का गलत तरीके से इस्तेमाल किया। हाल ही में 25 सितंबर को राजस्थान हाईकोर्ट ने भी उन्हें क्लीन चिट दे दी। हमने एअसोजी की अब तक हुई अलग-अलग जांच रिपोर्ट की पड़ताल कर जाना कि घोटाले में केंद्रीय मंंत्री पर आरोप क्या थे, उनकी जांच में क्या तथ्य सामने आए, जिनके बाद उन्हें क्लीन चिट दी गई?
पहला कारण : मुख्य आरोपी विक्रम सिंह झांसे में लेने के लिए शेखावत के नाम का करता था झूठा इस्तेमाल
संजीवनी क्रेडिट सोसाइटी घोटाले के मुख्य आरोपी विक्रम सिंह ने जोधपुर और बाड़मेर में संजीवनी सोसाइटी के ऑफिस खोल रखे थे। इस दौरान उसकी दोस्ती गजेंद्र सिंह शेखावत से हुई थी। गजेंद्र सिंह शेखावत उस समय सांसद नहीं थे, लेकिन पॉलिटिक्स से जुड़े होने के कारण लोगों में काफी लोकप्रिय थे।
सिंह ने शेखावत की लोकप्रियता का फायदा उठाकर सोसाइटी की मार्केटिंग में उनके नाम का उपयोग किया। विक्रम सिंह कई बड़े प्रोग्राम करवाता था, इन प्रोग्राम का मकसद होता था कि लोगों को दो से तीन गुना मुनाफा का झांसा देकर निवेश करवाना। शुरुआत में लोग उस पर भरोसा नहीं कर रहे थे।
ऐसे में उसने प्रोग्राम में बताना शुरू किया कि गजेंद्र सिंह शेखावत और उनके परिवार के लोगों ने भी कंपनी में निवेश कर रखा है और वे कंपनी के शेयर होल्डर हैं। वो लोगों को शेखावत के साथ अपनी फोटो दिखाकर अपना दोस्त बताता था। उसने अपने स्कूल के प्रोग्राम में भी गजेंद्र सिंह शेखावत को बुलाया था। ऐसे में अधिकतर लोग उसके झांसे में आ गए और अपनी जिंदगी भर की कमाई सोसाइटी निवेश में कर दी।
एसओजी की जांच में ऐसे कोई सबूत नहीं मिले जिनमें गजेंद्र सिंह शेखावत संजीवनी क्रेडिट सोसाइटी का प्रचार कर रहे हों। एक कार्यक्रम का वीडियो भी वायरल हुआ था जिसमें शेखावत विक्रम सिंह के बारे में जिक्र कर रहे हैं। लेकिन उसमें भी संजीवनी सोसाइटी से जुड़ी कोई बात नहीं थी। विक्रम ने लोगों से झूठ बोलकर शेखावत के नाम पर निवेश करवाया था। ऐसे में ठगी विक्रम सिंह ने की गजेंद्र सिंह शेखावत की कोई भूमिका नहीं थी।
दूसरा कारण : सोसाइटी में गजेंद्र सिंह शेखावत का न तो निवेश न पार्टनरशिप
विक्रम ने साल 2008 में संजीवनी क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी को राजस्थान सोसाइटी एक्ट के तहत रजिस्टर्ड कराया। इसके बाद सोसाइटी वर्ष 2010 में मल्टी स्टेट को-ऑपरेटिव सोसाइटी के रूप में बदल गई। मुख्य आरोपी विक्रम सिंह ही संजीवनी क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी का निदेशक था। विक्रम सिंह ने लोगों को झांसा दिया कि संजीवनी क्रेडिट सोसायटी में गजेंद्र सिंह शेखावत ने निवेश कर रखा है। वे सोसाइटी की कंपनी के शेयर होल्डर हैं।
जबकि एसओजी की जांच में सामने आया कि गजेंद्र सिंह शेखावत की संजीवनी क्रेडिट सोसाइटी में कोई पार्टनरशिप नहीं थी। उन्होंने सोसाइटी में किसी प्रकार निवेश नहीं किया था।
तीसरा कारण : मास्टरमाइंड ने शेखावत की कंपनी के शेयर खरीदे, ठगी में कोई भूमिका नहीं
गजेंद्र सिंह शेखावत नवप्रभा और ल्यूसिड कंपनी में शेयर होल्डर थे। नवप्रभा कंपनी में वे डायरेक्टर बन गए थे। संजीवनी क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी के निदेशक विक्रम ने शेखावत की कंपनी के शेयर खरीदने के लिए सोसाइटी से ही लोन लिया। फिर खुद और पत्नी के नाम पर 10 गुना ज्यादा कीमत पर शेखावत की कंपनी के शेयर खरीदे थे।
गजेंद्र सिंह शेखावत ल्यूसिड फार्मा में 8 नवंबर 2011 से 10 मार्च 2014 तक डायरेक्टर पद पर रहे। शेखावत ने वर्ष 2011-12 में ल्यूसिड फार्मा के कुल 7,40,000 शेयर 13 रुपए प्रति शेयर की दर से खरीदे। इनकी कीमत 96 लाख 20 हजार रुपए थी। शेखावत ने चार साल तक यह शेयर अपने पास रखने के बाद 18 फरवरी 2016 को ल्यूसिड फार्मा के 4 लाख 70 हजार शेयर 13 रुपए प्रति शेयर की दर से 61 लाख 10 हजार रुपए के शेयर विक्रम को और 2 लाख 70 हजार शेयर 13 रुपए प्रति शेयर की दर से 35 लाख 10 हजार रुपए के शेयर विक्रम की पत्नी विनोद कंवर को ट्रांसफर कर दिए।
इसके अलावा शेखावत ने अपने परिजनों और रिश्तेदारों के नाम से 13,55,720 शेयर 13 रुपए प्रति शेयर की दर से खरीदे थे। इनकी कीमत 1 करोड़ 62 लाख 4 हजार 360 रुपए थी। इनमें से 3,06,940 शेयर वर्ष 2015-16 में विनोद कंवर को 13 रुपए प्रति शेयर की रेट से बेच दिए। जिनकी कीमत 39 लाख 90 हजार 220 रुपए थी।
जांच में सामने आया कि ठगी के मास्टरमाइंड विक्रम ने सोसाइटी में निवेशित लोगों के पैसों से शेखावत की कंपनी के शेयर खरीदे थे। इसके लिए विक्रम ने फर्जी तरीके से लोन उठाया था। जबकि गजेंद्र सिंह शेखावत ने सिर्फ अपनी कंपनी के शेयर बेचे थे। कंपनी के शेयर बेचना कोई जुर्म नहीं है।
चौथा कारण : मास्टरमाइंड ने जो 1100 करोड़ का बोगस लोन उठाया, उसमें भी शेखावत का कहीं नाम नहीं
एसओजी की तीसरी चार्जशीट में सामने आया कि सोसाइटी ने बोगस तरीके से 1100 करोड़ रुपए के लोन स्वीकृत किए थे। इनमें 30 करोड़ के लोन बैक डेट में स्वीकृत किए गए। विक्रम सिंह राठौड़ और किशन सिंह चूली ने 31 मार्च से 2 अप्रैल 2013 तक 19 लोन स्वीकृत किए थे। इनकी एंट्री सोसाइटी बोर्ड के रजिस्टर में भी है। एसओजी ने लोन लेने वाले लोगों की जांच की। इनमें 60 हजार से ज्यादा ऐसे लोन फर्जी थे। लोन प्रति व्यक्ति 2 लाख रुपए के हिसाब से दिए गए।
लोन के लिए बैंक अकाउंट भी उनके फर्जी साइन करवाकर खोले गए थे। फिर लोन पास कर उन फर्जी अकाउंट में ट्रांसफर किए घए। जांच करने पर लोन लेने वालों के एड्रेस भी सही नहीं पाए गए। यह पूरा गबन विक्रम सिंह ने अपने रियल स्टेट के बिजनेस में इन्वेस्टमेंट के लिए किया था।
एसओजी की जांच में सामने आया कि विक्रम ने सोसाइटी से फर्जी लोगों के नाम पर करोड़ों का लोन लेकर प्रॉपर्टी खरीदी थी। लेकिन इसमें गजेंद्र सिंह शेखावत के पार्टनरशिप की कोई भूमिका सामने नहीं आई।
क्लीन चिट मिलने के बाद केंद्रीय मंत्री शेखावत का बयान…..
झूठ खड़ा करने का षड्यंत्र, अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति और बेटे की हार से उत्पन्न खीझ की मानसिकता के चलते मुझे घसीटने की कोशिश की गई थी। उन लोगों के मुंह पर तमाचा लगा है। ~ गजेंद्र सिंह शेखावत केंद्रीय मंत्री
फर्जी साइन से अकाउंट बनाए फिर लोन लिए
बाड़मेर के बालोतरा में रहने वाले धनसिंह (45) फैन्सी जनरल स्टोर चलाते हैं। धनसिंह ने एसओजी को बताया कि बाड़मेर के सरदारपुरा स्थित संजीवनी क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसायटी में उसने कभी कोई लोन नहीं लिया। विक्रम सिंह ने उसके नाम से फर्जी साइन करके पहले सेविंग अकाउंट संख्या SS-544 खोला। इसके बाद अकाउंट संख्या YL-539 खोलकर 1 करोड़ 95 लाख रुपए का लोन ले लिया। फर्जी सेविंग अकाउंट में ट्रांसफर करके विक्रम सिंह ने लोन का पूरा पैसा उठा लिया था। एसओजी ने जांच की तो उसे इस फर्जीवाड़े के बारे में पता लगा।
पांचवां कारण : एसओजी की चारों चार्जशीट में कहीं भी शेखावत पर सीधा आरोप नहीं
एसओजी की जांच में किसी भी चार्जशीट में गजेंद्र सिंह शेखावत और उनके परिवार के लोगों को सीधा आरोपी नहीं माना गया था। एसओजी ने पहली चार्जशीट 35 हजार पन्नों की दिसम्बर 2019 और तीसरी चार्जशीट साढ़े चार हजार पन्नों की फरवरी 2023 को पेश की थी। लेकिन इनमें से किसी भी चार्जशीट में गजेंद्र सिंह शेखावत को सीधा आरोपी नहीं माना गया था।
25 सितंबर 2024 को AAG (असिस्टेंट एडवोकेट जनरल) की ओर से बुधवार को एक विस्तृत रिपोर्ट हाईकोर्ट में दायर की गई। इसमें कहा गया- गजेंद्र सिंह शेखावत के खिलाफ कोई भी सबूत नहीं है और कंपनियों में निदेशक के रूप में उनके इस्तीफे के बाद किए गए अपराधों के लिए उन्हें जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। एसओजी के किसी भी केस में गजेंद्र सिंह शेखावत को आरोपी नहीं मानने पर कोर्ट ने भी आदेश जारी कर दिया कि गजेंद्र सिंह शेखावत के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है।
ऐसे हुआ था एक हजार से करोड़ से ज्यादा का संजीवनी क्रेडिट सोसाइटी घोटाला
बस कंडक्टर के बेटे ने शुरू की ठगी की कोऑपरेटिव सोसाइटी
बाड़मेर के इंद्रोई रामसर में रहने वाले बस कंडक्टर छुग सिंह का बेटा विक्रम सिंह शुरू से ही बिजनेसमैन बनना चाहता था। 2007 में बाड़मेर जिले में तेल-गैस, लिग्नाइट और जमीनों का बिजनेस बूम पर था। लोगों के पास जमीनें बेचने से मिले करोड़ों रुपए थे। लोग अपना पैसा इन्वेस्ट करना चाहते थे।
इसी का फायदा उठाकर रातों रात अमीर बनने के लिए विक्रम ने साल 2008 में संजीवनी क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी को राजस्थान सोसाइटी एक्ट के तहत रजिस्टर्ड कराया। इसके बाद सोसाइटी वर्ष 2010 में मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव सोसाइटी के रूप में बदल गई। इसका लाइसेंस केंद्र से मिला था। लोगों को जोड़ने के लिए लुभावने वादे किए गए। कुछ ही समय में पैसा 3 से 4 गुना करने का झांसा दिया गया। एजेंटों को ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ने के लिए कमीशन, फॉरेन टूर, गोल्ड व सिल्वर कॉइन जैसे गिफ्ट का लालच दिया गया।
दो राज्यों में 2 लाख लोगों ने 953 करोड़ इन्वेस्ट किए
सोसाइटी की शुरुआत बाड़मेर की सरदारपुरा ब्रांच से हुई थी। महज कुछ ही सालों में सोसाइटी ने राजस्थान में 211 और गुजरात में 26 ब्रांच शुरू कर 2,14,472 निवेशकों के 953 करोड़ रुपए इंवेस्ट कर दिए। इनमें 33 वर्चुअल ब्रांच भी थी। यह ब्रांच सिर्फ कागजों में थी। हकीकत यह ब्रांच कभी खोली ही नहीं थी। इन्हीं ब्रांचों से फर्जी लोन भी बांटे गए थे। इन फर्जी ब्रांच से 27 से 32 प्रतिशत ब्याज की दर से पर्सनल लोन, ईयरली लोन और मॉर्गेज लोन दिए गए।
32 प्रतिशत ब्याज दर से सोसाइटी को प्रॉफिट में बताते थे
संजीवनी क्रेडिट कॉ-ऑपरेटिव सोसाइटी में नए लोगों को हाई रिटर्न का झांसा देकर अलग-अलग स्कीम से जोड़ा जाता था। सोसाइटी को प्रोफिट में दिखाने के लिए सोसाइटी के दिए गए लोन पर 32 प्रतिशत ब्याज वसूलने की एंट्री की जाती थी। इसके लिए सॉफ्टवेयर से एंट्री बदल दी जाती थी। इसी तरीके से 33 वर्चुअल ब्रांच से 60 हजार फर्जी लोन दिए गए। यह लोन लेने के लिए 30 लाख फर्जी दस्तावेज तैयार किए गए। इनसे 1100 करोड़ रुपए के लोन लिए गए।
अब तक की जांच ऐसे हुई
संजीवनी क्रेडिट को-ऑपरेटिव सोसाइटी गबन के बाद पहली बार 23 अगस्त 2019 को पहली एफआईआर दर्ज हुई थी। एसओजी ने 11 दिसंबर 2019 को पहली चार्जशीट पेश की। इसमें एसओजी ने पांच लोगों को आरोपी मानकर गिरफ्तार किया था। पहली चार्जशीट पेश करने के कुछ दिन बाद ही एसओजी ने एक सप्लीमेंट्री चार्जशीट भी पेश की थी। इसके बाद एसओजी ने 7 फरवरी 2023 को दूसरी चार्जशीट पेश की थी। इसमें 19 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। 31 मार्च 2023 को एसओजी ने तीसरी चार्जशीट पेश की थी। इसके बाद एसओजी ने 13 अप्रैल को कोर्ट में तथ्यात्मक रिपोर्ट पेश की।