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पुण्यतिथि : 26 सितंबर पर विशेष, सैनिकों को गर्व के साथ सुनाए जाते हैं जनरल सगत सिंह की वीरता के किस्से


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पुण्यतिथि : 26 सितंबर पर विशेष, सैनिकों को गर्व के साथ सुनाए जाते हैं जनरल सगत सिंह की वीरता के किस्से

दुनिया के महान सेनानायकों में गिने जाते हैं चूरू के जनरल सगत सिंह, बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के असल हीरो कहे जाते हैं सगत सिंह, देश का तीसरे नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित हुए सगत सिंह

चूरू की धरती ने देश और दुनिया को अनेक नायाब हीरे दिए हैं, जिन्होंने एक से बढ़कर एक काम कर हमें गौरवान्वित किया है। दूसरे विश्वयुद्ध से लेकर बांग्लादेश मुक्ति संग्राम तक विभिन्न युद्धों में अपना कौशल दिखाने वाले श्रेष्ठ फील्ड कमांडर जनरल सगत सिंह भी ऎसे ही एक महान योद्धा थे, जिनकी गिनती दुनिया के अब तक के श्रेष्ठ सेनानायकों में होती हैं और उनके युद्ध कौशल और वीरता के किस्से भारतीय सैनिकों को तो देश के लिए लड़ने को प्रेरित करते ही हैं, आम आदमी के मन को भी उनका शौर्य रोमांचित करता है। भारतीय सेना के एक श्रेष्ठ फील्ड कमांडर और सबसे कामयाब सेनानायक माने जाने वाले जनरल सगत सिंह राठौड़ (परम विशिष्ट सेवा मेडल) को भारतीय सेना में वही स्थान हासिल है जो अमेरिकी सेना में जनरल पैटन और जर्मन सेना में रोमेल को हासिल था।

चूरू जिले की रतनगढ़ तहसील के गांव कुसुमदेसर के निवासी सगत सिंह का जन्म 14 जुलाई 1919 को हुआ। बचपन से ही देशप्रेम का जज्बा रखने वाले सगत सिंह ने स्कूली शिक्षा के दौरान ही इंडियन मिलेट्री एकेडमी ज्वॉइन कर ली और उसके बाद बीकानेर स्टेट फोर्स ज्वॉइन की। दूसरे विश्व युद्ध में इन्होंने मेसोपोटामिया, सीरिया, फिलिस्तीन के युद्धों में अपने जौहर दिखाए। सन् 1947 में देश आजाद होने पर उन्होंने भारतीय सेना ज्वॉइन करने का निर्णय लिया और सन् 1949 में 3 गोरखा राइफल्स में कमीशंड ऑफिसर के तौर पर उन्हें नियुक्ति मिल गई। आजादी के बाद सन् 1961 में गोवा मुक्ति अभियान में सगत सिंह के नेतृत्व में ऑपरेशन विजय अंतर्गत सैनिक कार्यवाही हुई और पुर्तगाली शासन के अंत के बाद गोवा भारतीय गणतंत्र का अंग बना। 1965 में ब्रिगेडियर सगत सिंह को मेजर जनरल के तौर पर नियुक्ति देकर जनरल आफिसर 17 माउंटेन डिवीजन की कमांड दे चीन की चुनौती का सामना करने के लिए सिक्किम में तैनात किया गया। वहां चीन की चेतावनी से अविचलित होकर सगत सिंह ने अपना काम जारी रखा और नाथू ला को खाली न करने का निर्णय लिया, जिसके फलस्वरूप नाथू ला आज भी भारत के कब्जे में है अन्यथा चीन इस पर कब्जा कर लेता।

सन् 1967 में मेजर जनरल सगत सिंह को जनरल सैम मानेकशॉ ने मिजोरम में अलगाववादियों से लड़ने की जिम्मेदारी दी, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। 1970 में सगत सिंह को लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर प्रोन्नति देकर 4 कॉप्र्स के जनरल ऑफिसर कमांडिंग के तौर पर तेजपुर में नियुक्ति दी गई। बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में सगत सिंह ने बेहतरीन युद्ध कौशल और रणनीति का परिचय दिया तथा युद्ध इतिहास में पहली बार किसी मैदानी सेना ने छाताधारी ब्रिगेड की मदद से विशाल नदी पार करने का कारनामा कर दिखाया। यह जनरल सगत सिंह के अति साहसी निर्णयों से ही संभव हुआ। इसके बाद पाकिस्तान के जनरल नियाजी ने 93,000 सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण किया और बांग्लादेश आजाद हुआ।

बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान वे हेलीकॉप्टर से लड़ाई का जायजा लेने जाते थे और युद्ध स्थल पर ही लैंड कर जाते थे। इस तरह के मुआयने के दौरान ही एक बार उनके हेलीकॉप्टर पर पाकिस्तानी सैनिकों ने गोलियां चलाई जिसमें पायलट भी बुरी तरह जख्मी हो गया। ऎसी स्थिति में सह पायलट ने नियंत्रण सम्हाला और हेलीकॉप्टर वापस अगरतला आया। बाद में जांच में पता चला कि हेलीकॉप्टर में गोलियों से 64 सुराख हो गए लेकिन फिर भी जनरल सगत सिंह पर इसका कोई असर न हुआ और वे एक दूसरा हेलीकॉप्टर लेकर निरीक्षण पर निकल पड़े।

बांग्लादेश मुक्ति युद्ध में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण उन्हें बांग्लादेश सरकार द्वारा सम्मान दिया गया और परम विशिष्ट सेवा मेडल (पी.वी.एस.एम.) के साथ-साथ भारत सरकार द्वारा देश के तीसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। 30 नवंबर 1976 को रिटायर हुए जनरल सगत सिंह ने अपना अंतिम समय जयपुर में बिताया। 26 सितंबर 2001 को इस महान सेनानायक का देहांत हुआ। उनकी बहादुरी के अनेक किस्से भारतीय सैन्य इतिहास में दर्ज हैं और युद्ध की चर्चाओं में गर्व के साथ सुनाए जाते हैं।

उनके साथ काम कर चुके जनरल सैन्य अधिकारियों के अनुसार, वे भारतीय सेना के बेस्ट फील्ड कमांडर थे। जनरल सगत सिंह आगे बढ़कर अपने सैनिकों का नेतृत्व करते थे और सैनिक उनके लिए जान देने को तैयार रहते थे। वे काम का बंटवारा करने और साथियों को जिम्मेदारी देने में बहुत माहिर थे तथा साथ ही जूनियर्स को मोटीवेट करते थे। गलती हो जाने पर वे जूनियर्स को जिम्मेदार ठहराने की बजाय जिम्मेदारी खुद लेते और गलती को सुधारने की कोशिश करते। मिलिट्री ट्रेनिंग इंस्टीट्यूशंस में आज भी जनरल सगत सिंह राठौड़ के बारे में युवा सैन्य अधिकारियों को पढ़ाया जाता है। ऎसे परम योद्धा और बहादुर देशभक्त जनरल सगत सिंह राठौड़ को कृतज्ञ नमन!

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