बापू…!!!
बापू ! क्या तू मापता है कपड़ा इस लाठी से
उन नग्न बदनों को ढकने
जो तेरे ही मोटे चश्मे के आगे उघड़ जाते हैं
न जाने कितने हजार
या तू हांकता है इस भारतवर्ष को जो दिशाहीन हो गया है
या तेरी लाठी दिशा सूचक यंत्र हो गई है
या तू कर रहा है आह्वान देशवासियों का उसी डगर पर
जहां तेरे कदमों के धूमिल निशान अभी भी बाकी है
कितना कात सकेगा तू सूत यहां हर दूसरा है कपूत
तू क्यों झुक गया है लाठी के सहारे
क्या तेरे कंधे नहीं सह पा रहे हैं बोझ भारत मां के सपनों का
बापू ! क्या तू जांचता है इंसान की शक्ल में भेड़िया
क्या तू खदेड़ पाएगा इन्हें अंग्रेजों की तरह देश की सीमाओं से
क्या तू हांपता नहीं ?
बापू ! क्यों रखा तूने अर्ध नग्न शरीर ?
यहां तो पूरे ढके बदन को भेदती है विंस्टन चर्चिल की आंखें
देख बापू ! तेरे साथ पापों की अवधारणा की अनुपालनना
क्या यही है ना तेरी कहीं सिद्धांत विहीन राजनीति
बापू ! क्या तू लौट सकता है इस जहां को पुन:
सत्य अहिंसा ग्यारह व्रत का पाठ पढ़ाने
या तुझे रास नहीं आएगा यह सफेद सियासत का चोला
जो है सबसे मैला
पर यह जो लबादा है जिस पर लदे हैं कई दाग भ्रष्टाचार बलात्कार हिंसा लूट चोरी के
अब बता बापू ! क्या तू “उमा” के आह्वान पर
पुन: अर्धनग्न बनेगा देश की बागडोर थामेगा ?
– उमा व्यास (पुलिस उप निरीक्षक)
कार्यकर्ता, श्री कल्पतरु संस्थान