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झुंझुनूं सूचना केंद्र विवाद पर भाजपा नेताओं की चुप्पी क्यों?


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झुंझुनूं सूचना केंद्र विवाद पर भाजपा नेताओं की चुप्पी क्यों?

प्रभारी मंत्री की नहीं मानती अफसरशाही आदेश या फिर अफसरशाही को है उनकी मौनमूक सहमति ?

जनमानस शेखावाटी संवाददाता : चंद्रकांत बंका

झुंझुनूं : झुंझुनूं जिला मुख्यालय पर स्थित सूचना केंद्र के भवन अधिग्रहण का मामला अब महज पत्रकार आंदोलन तक ही सीमित नहीं रहा है बल्कि जिस तरीके से झुंझुनूं जिले के विधायक, सांसद और विभिन्न संगठनों के साथ आम जनता इसके साथ जुड़ी है, यह अब जन आंदोलन बन चुका है। इस आंदोलन की गूँज मुख्यमंत्री कार्यालय तक भी पहुंची है और लगातार जनता के समर्थन का कारवां अभी तक बढ़ता ही जा रहा है। रोज जिला मुख्यालय के साथ उपखण्ड स्तर पर विरोध दर्ज करवाते हुए ज्ञापन सोपे जा रहे है। इसी के बीच एक बड़ा सवाल खड़ा होता है कि इस आंदोलन में अभी तक किसी बड़े भाजपा नेता या जिले के जनप्रतिनिधियों की चुप्पी को क्या समझा जाए ? बात यदि प्रभारी मंत्री अविनाश गहलोत से शुरू करें तो प्रेस वार्ता में खुद प्रभारी मंत्री ने कहा था कि मैंने जिला कलेक्टर को इस मामले में निर्देशित कर दिया है, पत्रकारों के हितो के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होगी।

यदि प्रभारी मंत्री के निर्देशों के बावजूद झुंझुनूं जिला प्रशासन सूचना केंद्र भवन के अधिग्रहण के लिए अड़ा हुआ है तो जैसा अभी तक आरोप लगता आया है कि मंत्रियों की अफसर नहीं सुनते है इस बात पर मोहर लग जाती है और यदि प्रभारी मंत्री कि कहीं ना कहीं भवन अधिग्रहण को लेकर अफसरों के साथ मौन मूक सहमति है तो उसके ऊपर भी बड़ा सवाल खड़ा होता है कि क्या प्रभारी मंत्री, भाजपा नेताओ, अफसर शाही का इसके पीछे कोई छुपा हुआ एजेंडा है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि झुंझुनूं विधायक राजेंद्र भाम्बू और जिला प्रमुख व भारतीय जनता पार्टी की जिला अध्यक्ष हर्षिनी कुलहरी को इस मामले से भली भांति पत्रकारों ने अवगत करवा दिया है लेकिन इसके बावजूद भी उनकी चुप्पी जन भावना के प्रति उनकी प्रतिबद्धता पर भी सवाल खड़ा करती है। वहीं जिले के जो दो अन्य भाजपा विधायक है इतनी बड़ा आंदोलन हो जाए और उनको पता भी नहीं चले ऐसा संभव नहीं है।

सांसद बृजेन्द्र ओला, विधायक पितराम काला, रीटा चौधरी, श्रवण कुमार, भगवाना राम सैनी, पूर्व मंत्री राजेंद्र गुढ़ा डॉ राजकुमार शर्मा ने तन मन धन से इस आंदोलन में समर्थन देने के साथ मुख्यमंत्री को भी पत्र लिखा है। वही 6 दर्जन से अधिक समाजिक संगठन और अन्य राजनितिक पार्टिया भी इस आंदोलन के समर्थन में उठ खड़ी हुई है। ऐसी स्थिति में भाजपा के तमाम बड़े नेताओ और जनप्रतिनिधियों पर अब चौथा स्तंभ के आंदोलन के साथ आवाज नहीं उठाने और जो यह आंदोलन जब जन आंदोलन बन चुका है इसकी भी बेपरवाही का जवाब उन्हें आगामी समय में जनता को देना पड़ेगा।

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