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संस्कार और सामाजिक सरोकार


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संस्कार और सामाजिक सरोकार

संस्कार और सामाजिक सरोकार

राजेन्द्र शर्मा झेरलीवाला, वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक चिंतक

संस्कारों का उद्देश्य सनातन संस्कृति व सनातन धर्म की पृष्ठभूमि में व्यक्ति का समाजीकरण करना है । यही कारण है कि व्यक्ति के आचार, विचार , व्यवहार व क्रिया कलापों को ही हम संस्कारों की संज्ञा दे सकते हैं । संस्कार केवल धार्मिक ही नहीं होते बल्कि सामाजिक सरोकार भी रखते हैं , जिनकी अभिव्यक्ति हमारे सामाजिक जीवन के कार्यों से होती है । संस्कार सही अर्थों में वह प्रक्रिया है जो व्यक्ति को जैविक , सामाजिक व सांस्कृतिक प्राणी बनाने में अहम भूमिका निभाता है । इनका आधार व्यक्ति की आंतरिक क्षमताओं का सही रूप से मार्ग दर्शन करना होता है । संस्कारों द्वारा ही व्यक्ति के नैतिक गुणों का विकास होता है । संस्कारों का अत्यधिक महत्वपूर्ण उद्देश्य आंतरिक शक्तियों का उन्नयन करना है । गर्भावस्था से लेकर मृत्यु तक के सभी संस्कार इसलिए बनाए गये है जिसमें मानव जाति का भला हो व हम संस्कारों के बल पर सभ्य समाज का निर्माण कर सके । धर्मशास्त्रों के अनुसार उच्च संस्कार व सामाजिक सरोकार व उच्च आचरण से ही व्यक्ति मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है । अधर्म और अनैतिक संस्कारों से की गई इच्छाओं की पूर्ति कभी भी जीवन को सुखमय नहीं बनाती है ।

आज के बदलते आधुनिक परिवेश में व्यक्ति को नैतिक मूल्यों, आचरणो , संस्कारों व सामाजिक सरोकार के कामों का संवर्धन की बहुत जरूरत है । लेकिन इस आर्थिक युग में हमारी युवा पीढ़ी संस्कारों से विमुख हो रही है । इसमें अहम भूमिका इलैक्ट्रिक मिडिया , अश्लील साहित्य व अश्लील सांस्कृतिक आयोजनों की है । साहित्य भी बाजारू हो गया है मां सरस्वती के मंचो से उच्च साहित्य नदारद है । कवि सम्मेलनों को देखें तो भोडे चुटकले ही उच्च कोटि का साहित्य समझने लगे हैं । अच्छे संस्कार व सामाजिक सरोकार की स्थापना में साहित्य का बड़ा योगदान रहता है ।

आज हम हिन्दुत्व व हिन्दू धर्म के बारे में बड़ी बड़ी बाते सुनते हैं पर हिन्दुत्व कोई धर्म नहीं परन्तु एक सनातनी की जीवन शैली का अंग है । टीवी पर कुछ कथित धर्माचार्यों ने भी अश्लीलता परोसने में कोई कमी नहीं छोड़ी है । भगवान के रात्रि जागरण में अश्लील डांस देखने को मिलते हैं । हमें समाज को दूषित करने वाली व संस्कारों पर प्रहार करने वाली शक्तियों का पूरजोर तरीके से विरोध करना होगा । ऐसा वातावरण बनाने की दिशा में काम करना चाहिए जिससे संस्कारों के उच्च मापदंडों को पुनर्जीवित किया जा सके ।

राजेन्द्र शर्मा झेरलीवाला, वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक चिंतक

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