खेतड़ी : खेतड़ी राजा अजीत सिंह स्वामी विवेकानंद के सान्निध्य में रहने वाले राजस्थान के प्रथम व्यक्ति थे। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि ” भारत की उन्नति के लिए जो कुछ मैंने थोड़ा बहुत किया है, वह में नहीं कर पाता यदि राजा अजीत सिंह मुझे नहीं मिलते ” स्वामीजी अपने अल्प जीवन में तीन बार राजस्थान आये तथा वे तीनों बार ही खेतड़ी रुके। स्वामी विवेकानंद और राजा अजीत सिंह की प्रथम मुलाकात राजस्थान के माउंट आबू में हुई थी। राजा अजीत सिंह स्वामी विवेकानंद के प्रभावशील, तेजस्वी, व्यक्तित्व तथा उनकी ओजस्वी वाणी से मुग्ध होकर उनको गुरु – रूप में वरण किया और आग्रह पूर्वक आबू से अपने साथ खेतड़ी लेकर आये, खेतड़ी में उनका बड़ा स्वागत किया गया तथा उनके कहने पर ही खेतड़ी में एक प्रयोगशाला कि स्थापना की गई व महल की छत पर एक सूक्ष्मदर्शी यंत्र लगाया गया। जिसमें तारामंडल का अध्ययन राजाजी को स्वामीजी कराते थे। यहां पर ही पंडित नारायणशास्त्री से स्वामी विवेकानंद ने पाणिनिभाष्य पढा़ जिससे बह्मं की सर्वप्रभुता व सर्वव्यापी ईश्वरीय श्रद्धा का उन्हें बोध हुआ, इससे उनके ज्ञान के विकास में एक कड़ी जुड़ना कह सकते है। स्वामीजी का विश्व – विख्यात नाम विवेकानंद खेतड़ी राजा ने ही दिया था।
स्वामी विवेकानंद की खेतड़ी यात्राओं का संक्षिप्त विवरण
(1) प्रथम यात्रा : आबू से खेतड़ी, (वर्ष) 7 अगस्त से 27 अक्टूबर 1891, (82) दिन रुके।
(2) द्वितीय यात्रा : मद्रास से खेतड़ी, (वर्ष) 21 अप्रैल से 10 मई 1893, (18) दिन रुके।
(3) तृतीय यात्रा : अमेरिका से खेतड़ी, 12 दिसम्बर से 21 दिसम्बर 1897, (9) दिन रुके।
इसी दौरान स्वामी विवेकानंद शिकागो के सर्वधर्म सम्मेलन (11 सितम्बर 1893 ) में जाने की तैयारीयों में जुट गये। खेतड़ी राजा के कहने पर सचिव मुंशी जगमोहन लाल ने स्वामी विवेकानंद के लिए माकुल व्यवस्था की और 31 मई 1893 को ओरियन्ट कम्पनी के पैनिनन्शुना’ नामक जहाज के प्रथम श्रेणी का टिकट खरीद कर स्वामी विवेकानंद को दिया और स्वामी विवेकानंद शिकागो के सर्वधर्म सम्मेलन के लिए रवाना हुए। स्वामी विवेकानंद ने शिकागो के सर्वधर्म महासभा को जिस पोशाक (चोगा और पगड़ी) से सम्बोधित किया वह खेतड़ी जलवायु से बचने ओर राजा अजीत सिंह जी के आग्रह व स्नेह का सूचक मानी जाती है। राजस्थान की गर्म जलवायु से स्वामी विवेकानंद को असुविधा होते देख राजा अजीत सिंह ने उन्हें साफा बाधने की सलाह दी, जिसे यहां के अन्य लोग भी लू से बचने के लिए बाधते थे। स्वामी विवेकानंद जब 1897 में अंतिम बार खेतड़ी लोटे, तो खेतड़ी पधारने पर राजा अजीत सिंह ने अपनी ओर प्रजा की ओर से 12 दिसम्बर 1897 के दिन ‘पन्नासर तालाब’ पर प्रतिभोज देकर खेतड़ी और खेतड़ी के भोपालगढ़ किले को रोशनी से जगमगाकर उनका भव्य स्वागत किया और अपनी श्रद्धा भक्ति प्रकट की। उस समय केवल अकेले किले की रोशनी पर (14 मण) तेल खर्च किया गया था। स्वामी विवेकानंद इसी श्रद्धा भक्ति से ओत – प्रोत होकर खेतड़ी को अपना दूसरा घर कहा था।
टाॅपिक एक्सपर्ट …
स्वामी विवेकानंद मुम्बई से ‘पैनिनन्शुना’ नामक जहाज में सवार होकर अमेरिका के शिकागो शहर पहुंचे थे। इस यात्रा में उनके साथ सेठ छबीलदास लल्लूभाई और जमशेदजी टाटा भी थे। इस जहाज में कुल यात्रियों की संख्या 500 थी।
डॉ. जुल्फिकार, भीमसर, विवेकानंद शोधकर्ता और युवा लेखक