जयपुर : राजस्थान हाईकोर्ट में लंबे समय से जजों की कमी चल रही है और हालात ये हैं कि जजों के स्वीकृत 50 पद कभी भी पूरे नहीं भरे गए। इसके कारण हाईकोर्ट में ना केवल केसों की पेंडेंसी बढ़कर 6.51 लाख तक पहुंच गई है, वहीं केसों के निस्तारण की दर में भी 15 से 20 फीसदी तक की कमी आई है।
राजस्थान हाईकोर्ट में सीजे सहित जजों के 50 पद स्वीकृत हैं, लेकिन वर्तमान में इनमें से 33 पद ही भरे हुए हैं और 17 पद अभी भी खाली हैं। ऐसे में मौजूदा जजों पर ही लाखों केसों को निस्तारित करने का भार है। कानूनी न्याय सिद्धांत के तौर पर देखें तो पक्षकारों को देरी से मिला न्याय ,वास्तव में न्याय नहीं होता। हजारों ऐसे पक्षकार रहे जो अपने जीवन काल में हाईकोर्ट से न्याय नहीं ले सके और बिना न्याय मिले ही दुनिया से चले गए।
जजों की कमी से पक्षकारों को भी न्याय प्राप्त करने में संघर्ष करना पड़ रहा है और वकीलों पर भी अत्यधिक केसों का भार बढ़ रहा है। हाईकोर्ट में केसों की पेंडेंसी का असर ट्रायल कोर्ट पर भी पड़ रहा है और जमीनी स्तर पर न्याय दिलवाने वाली कोर्ट भी इससे प्रभावित हो रही हैं।
बीसीआर चेयरमैन भुवनेश शर्मा का कहना है कि राजस्थान हाईकोर्ट में केसों की पेंडेंसी को देखते हुए यहां पर प्लेटिनम जुबली साल में जजों की स्वीकृत संख्या 50 पदों को बढ़ाकर 100 जज किया जाना चाहिए। वहीं जजों के जितने पद खाली चल रहे हैं उन्हें भी जल्द भरा जाना चाहिए। इससे ना केवल केसों के फैसले होने में तेजी आएगी वहीं हाईकोर्ट की पेंडेंसी भी कम होगी।
हाईकोर्ट बार एसोसिएशन जयपुर के अध्यक्ष प्रहलाद शर्मा का कहना है कि हाईकोर्ट में जजों की कमी से अदालत की पूरी न्याय व्यवस्था ही चरमराई हुई है। हाईकोर्ट प्रशासन को तत्काल ही यहां पर मौजूदा जजों की संख्या में बढ़ोतरी करने का प्रस्ताव पारित करना चाहिए जिससे कि संख्या में बढ़ोतरी हो सके। हाईकोर्ट के आपराधिक मामलों के अधिवक्ता दीपक चौहान का कहना है कि कानून में केसों को तय करने की समय सीमा बताई गई है, लेकिन इनके निस्तारण में जजों की कमी व स्टॉफ की समस्या आड़े आती है। इसके चलते पक्षकारों को ना केवल समय पर न्याय मिल पाता है बल्कि उसने जिस उद्देश्य के लिए न्याय के मंदिर का दरवाजा खटखटाया था वह भी पूरा नहीं हो पाता। इसलिए राजस्थान हाईकोर्ट में जजों के पदों की संख्या बढ़ाई जाए और उन सभी पदों पर नियुक्तियां भी हों।
दिल्ली हाईकोर्ट में एक जज पर 2,121 केसों की जिम्मेदारी, राजस्थान हाईकोर्ट में 13,029 केसों का भार: राजस्थान हाईकोर्ट में केसों की पेंडेंसी के आधार पर स्वीकृत पदों के अनुपात में प्रति जज पर केस भार की बात की जाए तो राजस्थान हाईकोर्ट में हर जज पर 13029 केसों का भार है, जबकि दिल्ली हाईकोर्ट में प्रति जज 2121 केसों का ही भार है। इसके अलावा गुजरात हाईकोर्ट में भी प्रति जज पर 3296 केसों की जिम्मेदारी है और पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट में भी प्रति जज 5104 केसों का भार है।