अजमेर : मेरी उम्र करीब 7 साल की थी, इस उम्र में बच्चे ज्यादा तो नहीं समझ पाते लेकिन हां, आसपड़ोस में और अपने परिवार में ये यह कहते सुना था कि अब देश आजाद हो जाएगा। हम गुलाम नहीं रहेंगे। गोरे अपने देश इंग्लैंड भाग जाएंगे। लेकिन, पूरी बात कभी समझ नहीं आती थी। घर के बड़े बुजुर्ग अक्सर यह बातें किया करते थे। मेरी मां पढ़ी-लिखी नहीं थी, पिता रेलवे में काम किया करते थे। मां कहा करती थी- अब हिंदुस्तान आजाद होने वालो है। अब आपा गुलाम कोनी रेवा।
फिर एक दिन 14 अगस्त 1947 की रात को 12 बजे हिंदुस्तान की दासता की जंजीरें तोड़ दी गई और 15 अगस्त 1947 के दिन एकाएक अजमेर का माहौल ही बदल गया।
अजमेर के जाने-माने इतिहासविद् प्रो. ओमप्रकाश शर्मा ये बताते हुए उस दौर की यादों में खो जाते हैं जब उन्होंने आजादी के पहले दिन को महसूस किया था।
पढ़िए आजादी के दिन की कहानी शर्मा की जुबानी…
इतिहासविद् प्रो. ओमप्रकाश शर्मा कहते हैं- वो दिन अलग था। उस दिन समझ आने लगा था कि आजादी क्या है। क्यों मां कहती थी हम आजाद होने वाले हैं। जगह-जगह तिरंगा लहराया जाने लगा था।
ये कहते हुए उनकी आंखों में चमक साफ दिखाई पड़ती है। 86 साल के शर्मा यह कहते हुए खुद को गौरवान्वित महसूस करते हैं कि हमने आजादी देखी थी। आजादी की पहली हवा महसूस की थी।
इतिहासविद् प्रो. ओमप्रकाश शर्मा ने बताया कि 15 अगस्त 1947 के दिन अजमेर में पटेल मैदान में चीफ कमिश्नर ने तिरंगा फहराया, भीड़ बहुत थी और भारत माता के जयकारे रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। मिलिट्री स्कूल के बच्चों ने शानदार परेड की थी। उनके कदम ताल मानो बार-बार यह दोहरा रहे हो कि हम आजाद हैं।
खादी के रुमाल में मिले थे लड्डू
उन्होंने कहा कि यहां गवर्नमेंट स्कूल के बच्चों को खादी के रुमाल में देशी घी के 4-4 लड्डू डालकर बाटे गए थे। खादी का यह रूमाल सामान्य नहीं था, इस पर चारों ओर नीला बॉर्डर था। क्रॉस में दो तिरंगे लगे थे, रुमाल पर स्वतंत्र भारत लिखा था। यह खासतौर से आजादी के दिन ही तैयार किए गए थे।
इमारतें रोशनी में नहा उठी थी
प्रो. ओमप्रकाश बताते हैं कि रेलवे स्टेशन, मुख्य डाकघर, घंटाघर, नगर निगम सहित तमाम सरकारी इमारतों पर रोशनी की गई थी। नया बाजार चौपड़ पर नगर सेठ भागचंद सोनी ने तिरंगा फहराया था। यहां उस समय परकोटे में हजारों लोग जमा थे। वहीं मैगजीन पर शहर के रईस जीतमल लुणियां ने तिरंगा फहराया। इसी दिन कड़क्का चौक की एक गली का नाम अशोक गली रखा गया था। मेयो कॉलेज के साथ जीसीए और डीएवी कॉलेज में भी तिरंगा फहराया गया। जगह-जगह आजादी के जश्न का माहौल था।
इतिहासकार प्रो. ओमप्रकाश ने बताया कि आजादी के जश्न के दौरान वे परिवार के साथ नया बाजार चौपड़ पहुंचे, वहां सेठों के चंदे से गोल प्याऊ का निर्माण करवाया था। यह गोल प्याऊ तिरंगे के रंगों से रंगी थी। हिंदुस्तान आजाद होने पर उसे समय हम गौरवनित महसूस करते थे।
रेडियो खबर सुनने भीड़ जमा थी
अजमेर मराठा नाना साहब की देन थी। नाना साहब आखिरी गवर्नर थे अजमेर के जिन्होंने नया बाजार बनाया था। 1824 में नया बाजार में कई दुकानें बन रही थी। वहां लगे बोर्ड को पढ़-पढ़ कर हिंदी सीख गए थे। उस समय रेडियो कुछ लोगों के पास ही हुआ करता था। शहर के कड़का चोक में पान वाले के दुकानदार ने एक बड़ा सा रेडियो अपनी दुकान पर रख रखा था। रेडियो पर हिंदी में समाचार सुनने के लिए बड़ी भीड़ इकट्ठा हो जाती थी। 8 से 8:15 तक अंग्रेजी और 8:15 से 8:30 तक हिंदी खबरें सुनने के लिए बड़े लोग इकट्ठे होते थे।
आजादी के दिन भी उस समय भारी संख्या में लोग इकट्ठे हुए थे। मैं भी उस न्यूज को सुनने वालों में एक था। मेरे पिता की उंगली पकड़कर सुनने गया था। अजमेर शांत और विकसित शहर था। यहां निजी राजा महाराजा नहीं रहे। पृथ्वीराज चौहान के बाद अजमेर की किस्मत किसी राजा ने नहीं बदली थी।
इतिहासविद् प्रो. ओमप्रकाश शर्मा ने बताया कि अकबर, जहांगीर, शाहजहां, औरंगजेब तक भी अजमेर आए थे। उन्होंने कहा कि अजमेर को अंग्रेजों ने बहुत कुछ दिया। सबसे पहले अजमेर, पुष्कर, भिनाय में अंग्रेजी विद्यालय खोले थे। उन्होंने अजमेर में पहले चर्च स्थापित किए थे।
अजमेर की जेल को तोड़ा, सारे कैदी भाग गए
इतिहासविद् प्रो. ओमप्रकाश शर्मा ने बताया कि 1857 में अजमेर में गदर हुआ था। मोनिया इस्लामिया अजमेर का जेल खाना था। जिसमें कैदी भरे हुए थे। नसीराबाद में विद्रोह हुआ था। क्रांतिकारियों ने अजमेर आकर अजमेर का जेल तोड़ दिया था। इसके बाद सारे कैदी भाग गए थे। सारे के सारे यहां से दिल्ली चले गए। लेकिन रास्ते में ही अंग्रेज उन पर टूट पड़े थे। इसके बाद उन्हें मार डाला गया। इतिहासविद् प्रो. ओमप्रकाश शर्मा ने बताया कि आर्य समाज का केसरगंज क्षेत्र में बिल्डिंग बनी थी। जहां पहले खेत हुआ करते थे। इन्हें काटकर बाजार बनाया गया। इसके बाद साथ रास्तों का सर्किल बनाया गया।