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देवनानी बोले- ​​​​​​​छात्रसंघ चुनाव होने चाहिए, लीडरशिप डेवलप होती है:जब नेहरू प्रधानमंत्री थे, सब शांति से विपक्ष को सुनते थे; अब संसद का लेवल वैसा नहीं


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देवनानी बोले- ​​​​​​​छात्रसंघ चुनाव होने चाहिए, लीडरशिप डेवलप होती है:जब नेहरू प्रधानमंत्री थे, सब शांति से विपक्ष को सुनते थे; अब संसद का लेवल वैसा नहीं

देवनानी बोले- ​​​​​​​छात्रसंघ चुनाव होने चाहिए, लीडरशिप डेवलप होती है:जब नेहरू प्रधानमंत्री थे, सब शांति से विपक्ष को सुनते थे; अब संसद का लेवल वैसा नहीं

जयपुर : विधानसभा स्पीकर वासुदेव देवनानी ने छात्रसंघ चुनाव करवाए जाने का समर्थन किया है। विधानसभा में हुई युवा संसद के दौरान स्पीकर देवनानी ने कहा- आपके छात्रसंघ के भी चुनाव होते हैं। पहले छात्रसंघ के चुनाव बड़े आदर्श के रूप में होते थे, लेकिन आज धीरे-धीरे उसमें कमियां आती जा रही है। ये होने चाहिए, क्योंकि इससे लीडरशिप डेवलप होती है, लेकिन इसमें जो कमियां आ रही है। यूथ जिस तरह इन्वॉल्व हो रहा है। कहीं न कहीं विचार करने की आवश्यकता है।

देवनानी का यह बयान ऐसे वक्त आया है, जब सरकार ने छात्र संघ चुनावों को लेकर आधि​कारिक तौर पर अपना रुख साफ नहीं किया है। हाल ही में सरकार के उच्च शिक्षा विभाग की ओर से जारी वार्षिक कैलेंडर में छात्र संघ चुनावों का जिक्र जरूर है, लेकिन चुनाव और तारीखों पर कोई फैसला नहीं हुआ है। स्पीकर वासुदेव देवनानी के बयान ने सियासी हलकों में चर्चा जरूर छेड़ दी है।

18 जुलाई को राजस्थान यूनिवर्सिटी के बाहर प्रदर्शन कर रहे 24 से ज्यादा छात्र नेताओं को हिरासत में लिया गया था। लाठीचार्ज भी हुआ, जिसमें 12 छात्र नेता घायल हो गए थे।
18 जुलाई को राजस्थान यूनिवर्सिटी के बाहर प्रदर्शन कर रहे 24 से ज्यादा छात्र नेताओं को हिरासत में लिया गया था। लाठीचार्ज भी हुआ, जिसमें 12 छात्र नेता घायल हो गए थे।

नेहरू जी प्रधानमंत्री थे, पार्लियामेंट में सब शांति से विपक्ष के नेताओं को सुनते थे
देवनानी ने कहा- इस समय हमारा सिस्टम धीरे-धीरे नीचे की ओर जा रहा है। मुझे पार्लियामेंट की पहले की बातें ध्यान में हैं। उस वक्त बहुत छोटा था, जब नेहरू जी प्रधानमंत्री थे। विपक्ष का कोई व्यक्ति चाहे श्यामा प्रसाद मुखर्जी बोलते थे, जय प्रकाश जी बोलते थे, महावीर त्यागी बोलते थे तो सब शांति से उनकी बातों को सुनते थे।

अच्छी बातें होती थीं। पार्लियामेंटेरियन सिस्टम यही है कि सरकार एग्जीक्यूट करे। विपक्ष का काम है ध्यान आकर्षित करना और सुझाव देना, ताकि हम सब लोग मिलकर राज्य और देश की जनता की सही ढंग से सेवा कर सकें। समस्याओं का निदान कर सकें।

विरोध के लिए विरोध और समर्थन के लिए समर्थन से लोगों में लोकतंत्र के प्रति आस्था कम
देवनानी ने कहा- मुझे भी कई बार पीड़ा होती है। पार्लियामेंट और विधानसभा का लेवल धीरे-धीरे वैसा नहीं दिख रहा, जैसा पहले दिखाई देता था। दोनों पक्षों को एक दूसरे का सम्मान करना, भावनाओं का सम्मान करना चाहिए। केवल विरोध के लिए विरोध और समर्थन के लिए समर्थन दोनों बातें लोकतंत्र में आई है। उसके कारण से लोगों की लोकतंत्र के प्रति आस्था में प्रश्न चिन्ह दिखाई देता है।

भारत के लोकतंत्र में संविधान को कोई खत्म नहीं कर सकता
देवनानी ने कहा- व्यक्ति का नहीं, हम जिस दायित्व पर बैठे हैं, उसका सम्मान है। देश में कई बार सुनता हूं, नेता कहते हैं कि संविधान को समाप्त कर दिया जाएगा। मैं संवैधानिक पद पर होते हुए कह सकता हूं कि इस देश में संविधान कोई समाप्त कर नहीं सकता। चाहे कितने भ्रम फैलाए जाएं संविधान को कोई हटा नहीं सकता। यह हमारी शक्तियों का केंद्र है।

संविधान में आस्था और संविधान में श्रद्धा रखना हम लोगों का दायित्व बनता है। जो भी कहता है संविधान समाप्त होगा, मैं स्पष्ट शब्दों में कह देता हूं भारत के लोकतंत्र में संविधान को कोई समाप्त नहीं कर सकता।

राजस्थान की 5 बड़ी यूनिवर्सिटी में 10 साल के छात्र संघ चुनाव का रिकॉर्ड
राजस्थान की 5 बड़ी यूनिवर्सिटी में पिछले 10 साल के छात्रसंघ चुनावों का रिकॉर्ड देखें तो जयपुर और कोटा में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) पिछले 5 साल से अध्यक्ष पद पर खाता तक नहीं खोल पाई है। जोधपुर में भी एबीवीपी के हालात ठीक नहीं हैं। अजमेर और उदयपुर में एनएसयूआई की स्थिति ठीक नहीं है।

राजस्थान यूनिवर्सिटी: 5 साल से निर्दलीय बन रहा अध्यक्ष
राजस्थान यूनिवर्सिटी में पिछले 5 साल से एबीवीपी और एनएसयूआई का अध्यक्ष पद पर खाता नहीं खुला है। वर्तमान हालात में भी एबीवीपी और एनएसयूआई को टक्कर देने के लिए बड़ी संख्या में निर्दलीय छात्र भी चुनावी मैदान में हैं। पिछले 10 साल के छात्रसंघ चुनाव की बात करें तो निर्दलीय प्रत्याशियों ने अब तक सबसे ज्यादा 6 बार जीत दर्ज की है।

एक्सपर्ट बोले- लोकसभा चुनाव के बाद सरकार बचाव की मुद्रा में
वरिष्ठ पत्रकार नारायण बारेठ ने बताया कि छात्रसंघ चुनाव के माध्यम से ही जनमत का निर्माण होता है। यही कारण है कि सरकार फिलहाल बचाव की मुद्रा में चुनाव नहीं कराने के मूड में नजर आ रही है, क्योंकि लोकसभा चुनाव में उन्हें हार मिली थी। ऐसे में विपक्ष के नेता प्रदेश में छात्रसंघ चुनाव की डिमांड कर रहे हैं।

छात्र संघ चुनाव का आम राजनीति पर सीधा और गहरा प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि जो एबीवीपी कांग्रेस राज में छात्र संघ चुनाव कराने की मांग को लेकर आंदोलन कर रही थी, वह फिलहाल खामोश है। वहीं जो एनएसयूआई कांग्रेस राज में खामोश बैठी थी, वह बीजेपी सरकार में छात्रसंघ चुनाव कराने की मांग को लेकर सड़कों पर संघर्ष कर रही है।

क्या उपचुनाव से पहले ABVP की हार का डर!
राजस्थान में जल्द पांच सीटों पर विधानसभा उपचुनाव होंगे। उससे पहले प्रदेश की बड़ी यूनिवर्सिटीज में हार और जीत से ही जनता और युवा वोटर के बीच नैरेटिव बन सकता है। इसलिए सत्ता में रहने वाली पार्टी ऐसे मौके पर जोखिम नहीं उठाती है। पिछली बार जब सत्ता में कांग्रेस सरकार थी। तब उन्होंने चुनावी साल में भारी विरोध के बावजूद छात्र संघ चुनाव पर रोक लगाई थी। ताकि चुनावी साल में आम जनता के बीच किसी भी तरह के परसेप्शन को खराब नहीं हो।

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