Kargil Vijay Diwas: युद्ध का हर मंजर आज भी आंखों के सामने, जान जोखिम में डाल सेना के लिए बनाया था रास्ता
करगिल विजय दिवस के मौके पर हम आज बात कर रहे हैं, उन सैनिकों की। जिन्होंने टाइगर हिल पर अपनी टीम के साथ तिरंगा लहराने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था

अलवर : करगिल विजय दिवस के मौके पर हम आज बात कर रहे हैं, उन सैनिकों की। जिन्होंने टाइगर हिल पर अपनी टीम के साथ तिरंगा लहराने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था और आज सकुशल अपने परिवार के बीच अपना जीवनयापन कर रहे हैं। अलवर के मोती नगर निवासी रिटायर्ड नायब सुबेदार ओमप्रकाश शर्मा ने बताया कि इंडियन आर्मी में पहली जॉइनिंग फरवरी 2 फरवरी 1991 को मैकेनाइज्ड इन्फेंट्री रेजीमेंट सेंटर अहमदनगर महाराष्ट्र में ट्रेनिंग की गई। 9 महीने ट्रेनिंग करने के बाद पहली पोस्टिंग 13 मैकेनाइज्ड 18 राजपूत बबीना मध्य प्रदेश में हुई। बबीना के बाद अमृतसर पंजाब में पोस्टिंग पंजाब से बठिंडा बठिंडा से फिरोजपुर पंजाब में सन 1995 मैकेनाइज्ड इन्फेंट्री के अंदर 25 वीं यूनिट तैयार हुई। जिसमें न्यू जॉइनिंग 1995 में 25 यूनिट मैकेनाइज्ड में हुई।
युद्ध का हर मंजर आज भी आंखों के सामने
रामनगर निवासी सूबेदार बाबूलाल यादव ने बताया कि करगिल युद्ध में जो हुआ वो मैं कभी नहीं भूल सकता। युद्ध का एक-एक मंजर मेरी आंखों के सामने है। मैं अपने परिवार के साथ माता वैष्णो देवी के दर्शन करके लौटा ही था कि दो घंटे बाद सेना के मुख्यालय से संदेश आया कि करगिल युद्ध में जाना है। मैं दिल्ली में एडी आर्मी में पोस्टेड था और परिवार के साथ दिल्ली ही रह रहा था। बेटा मात्र पांच साल का था। तेज गर्मी थी, करगिल का रास्ता तक पता नहीं था। गाड़ी में बैठा दिया और मैप के आधार पर करगिल पहुंच गए। हमारा काम सेना को सहारा देना था, सेना आगे बढ़ रही थी हम पीछे से उनको सहारा देते चल रहे थे। दुश्मन हमला कर रहा था। मिसाइल और एयरगन के हमले से सेना को बचाते चल रहे थे। परिवार से बात को दिल्ली कॉल बुक होती थी।
फौज में सेवा के लिए आते हैं…मौज के लिए नहीं
वीरांगना सलमा बेगम ने बताया कि पति शहीद सलीम खान करगिल युद्ध के दौरान पूंछ में पोस्टेड थे। युद्ध में जाने से पहले एक महीने की छुट्टी बिताकर गए थे। युद्ध के चलते बातचीत नहीं होती थी। शहीद होने के कुछ दिन पहले बात हुई थी। परिवार में शादी थी, मैंने कहा कि आप शादी में जरूर आना तो कहा कि आऊंगा जरूर जिंदा या मरकर। मैंने कहा कि आप ऐसा मत बोलो, युद्ध हो जाए तो आप सेना की नौकरी छोड़ देना तो पति ने कहा कि फौज में सेवा के लिए आते हैं मौज के लिए नहीं। मुझे आज मौका मिला है देश के लिए कुछ करने का। युद्ध के दौरान पैर में गोली लगी थी, सेना के ऑफिस से जानकारी मिली मुझे चिंता हो रही थी तब उन्होंने कहा कि चिंता मत करो मैं ठीक हूं। वो सेना में रहते हुए परिवार के लिए खत लिखते थे।
जान जोखिम में डालकर सेना के लिए बनाया रास्ता
अलवर के बोहरा कॉलोनी निवासी सूबेदार मेजर नेमीचंद ने बताया कि जब करगिल का युद्ध हुआ तो मेरी पोस्टिंग 112 इंजीनियर रेजीमेंट में थी। हम पश्चिम बंगाल में डयूटी पर थे। वहां से सेना का संदेश आया कि आपको करगिल युद्ध के लिए जाना है। सख्त आदेश था कि परिवार को इसकी जानकारी नहीं दें कि वहां कैसे हालात है, बस यही कहना है कि हम सब ठीक हैं। उस समय मेरी पत्नी भी मेरे साथ थी, बेटी बहुत छोटी थी, उनको वहां से चंडीगढ़ सेना के क्वार्टरों में भेज दिया। मेरा काम था सेना के लिए रास्ता बनाना। दुश्मन ने कारगिल में जगह-जगह पर बम दबा दिए थे। हैंड ग्रेनेड व गोले लगा दिए गए थे, सेना यदि वहां से निकलती है तो नुकसान हेाता है। ऐसे में हर दिन जान जोखिम में डालकर सेना के लिए रास्ता तय कर रहे थे। हेलीकॉप्टर से बिस्किट, चने के पेकैट फेंके जाते थे। नदी का पानी पीना पड़ा था।