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क्या हम भी ऐसा करेंगे? . राजीव शर्मा


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क्या हम भी ऐसा करेंगे? . राजीव शर्मा

माइक्रोसॉफ़्ट : अमेरिकी कंपनी माइक्रोसॉफ़्ट से संबंधित एक तकनीकी समस्या के कारण दुनिया के कई देशों में दफ्तरों का कामकाज रुक गया। बैंक, रेलवे स्टेशन, होटल, हवाईअड्डे, शॉपिंग मॉल और कई जगहों पर कंप्यूटरों की स्क्रीन नीली हो गई। जिन लोगों पर इस समस्या को दूर करने की ज़िम्मेदारी है, वे अपने काम में लगे हुए हैं। जो कुछ नहीं कर सकते, वे या तो ‘पुराने’ तरीक़े से काम कर रहे हैं या ‘सबकुछ’ ठीक होने का इंतज़ार कर रहे हैं।

भारत में भी कई जगहों पर कामकाज रोकना पड़ा। यह विदेशी तकनीक में आई सिर्फ़ एक बाधा का नतीजा था। इसके सामने बड़े-बड़े बुद्धिजीवी ख़ुद को असहाय महसूस करने लगे। मैं विदेशी तकनीक का विरोधी नहीं हूँ। उन लोगों ने यहाँ तक पहुँचने के लिए बड़ी मेहनत की है और वे बड़े प्रतिभाशाली हैं।

आज सुबह (20.07.2024) जब मैं अख़बार पढ़ रहा था तो मेरे मन में एक सवाल आया ‘अगर भविष्य में किसी वजह से विदेशी सरकारें/ कंपनियाँ हमसे नाराज़ हो जाएँ और वे अपनी सेवाएँ बंद कर दें तो क्या होगा?’

हमारे यहाँ सरकारी/प्राइवेट दफ़्तरों से लेकर आम लोगों के घरों तक विदेशी तकनीक आधारित उपकरणों का इस्तेमाल होता है। किसी को ईमेल भेजना हो, मैसेज करना हो, वीडियो प्रसारित करना हो… सब जगह उन्हीं की तकनीक है!

याद करें, वर्ष 1971 के युद्ध के दौरान पश्चिमी देशों का हमारे साथ कैसा बर्ताव था? भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया तो विदेशी सरकारों ने कैसी प्रतिक्रियाएं दी थीं? जब कारगिल युद्ध हो रहा था, तब कुछ विदेशी कंपनियों ने किस तरह मौके का फ़ायदा उठाना चाहा था?

मेरा मानना है कि माइक्रोसॉफ़्ट से जुड़ी इस घटना से सबक़ लेकर हमें कुछ क़दम तुरंत उठाने चाहिएँ –

  1. भारत के पास कंप्यूटरों में इस्तेमाल होने वाली अपनी मज़बूत तकनीक हो।
  2. भारत के पास अपना सर्च इंजन हो।
  3. ईमेल और मैसेज आदि भेजने के लिए सरकार एक सुरक्षित प्लेटफ़ॉर्म बनाए।
  4. सरकारी दफ्तरों से विदेशी तकनीक को धीरे-धीरे हटाएँ और उसकी जगह अपनी तकनीक लेकर आएँ।

माइक्रोसॉफ़्ट की इस गड़बड़ से सबसे ज़्यादा सुरक्षित रहने वाले देश थे- चीन और रूस, क्योंकि उन्होंने अपने कामकाज के लिए ख़ुद की तकनीक विकसित की। क्या हम भी ऐसा करेंगे?

लेखक : राजीव शर्मा, कोलसिया, झुंझुनूं, राजस्थान

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