गुरु पूर्णिमा : 20 या 21 जुलाई आखिर कब है गुरु पूर्णिमा? जानें सही तारीख और महत्व
गुरु व्यास पूर्णिमा का महान पर्व ज्ञान ध्यान पूजा दान पुण्य आशीर्वाद का शास्त्रोक्त महिमा है अनुसंधानकर्ता पंडित राजकुमार व्यास आचार्य
गुरु पूर्णिमा : कहते हैं हमारा जीवन सिर्फ हमारा ही नहीं बल्कि उन तमाम लोगों का है जिनकी इसमें भूमिका रही है. जैसे हमारे गुरि, हमारे गुरु हमारे जीवन में कोई भी हो सकता है. चाहे हमारी पहली गुरु हमारी मां हो या फिर स्कूल में पढ़ाने वाले वो शिक्षक जिन्होंने हम पर विशेष ध्यान देते हुए जीवन में कुछ बनने और आगे बढ़ने की सीख दी है. गुरु पूर्णिमा के अवसर पर हम आज ऐसे तमाम गुरुजनों को याद करते हुए उन्हें धन्यवाद करते हुए और आभार व्यक्त करते हुए ये बधाई संदेश पहुंचा सकते हैं.
गुरु व्यास पूर्णिमा का पर्व शास्त्रों के अनुसार 21 जुलाई को मनाना ही श्रेष्ठतम है, अखिल भारतीय पुश्तैनी ज्योतिष अध्यात्मिक अनुसंधान एवं विकास केंद्र खेतड़ी के ज्योतिष शिरोमणि पंडित राजकुमार व्यासाचार्य ने बताया कि पंचांग के अनुसार के इस साल 2024 के आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 20 जुलाई दिन शनिवार को शाम के समय 5:59 पर शुरू होगी, वही पूर्णिमा तिथि समापन 21 जुलाई दिन रविवार को दोपहर 3:46 पर होगा यह सत्यनारायण भगवान का व्रत 20 जुलाई को रखा जा सकता है 21 जुलाई को गुरु पूर्णिमा व्यास पूर्णिमा गुरु वंदना पूजा स्नान दान व दक्षिण का ही दिन माना जाता है मुहूर्त शास्त्र के अनुसार पूजा का समय प्रातः काल 7:19 से लेकर दोपहर 12:27 तक श्रेष्ठ है। उसके बाद वह गुरु की वंदना पूरे दिन कर सकता है।
गुरु पूर्णिमा पूजा विधि
गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कार्यों से मुक्त हो जाएं, इसके बाद स्नान करें। इस दिन भगवान वेद व्यास और अपने गुरु की मूर्ति स्थापित करके इनकी विधि विधान से पूजा करें। इस दौरान उन्हें फूल, फल और मिठाईयों का भोग लगाएं। इसके बाद में अपने गुरु मंत्रों का जाप करें। इस दौरान गुरु चालीसा का पाठ भी करें। इन सब के बाद जरूरतमंद को दान करना न भूलें।
महर्षि वेदव्यास को समर्पित है पर्व
वेदों, उपनिषदों और पुराणों को लोकप्रिय बनाने वाले महर्षि वेदव्यास को समस्त मानव जाति का गुरु माना जाता है। महर्षि वेदव्यास का जन्म ईसा से लगभग तीन हज़ार साल पहले आषाढ़ पूर्णिमा को हुआ था। उनके सम्मान में हर साल गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है।
गुरु पूर्णिमा व्रत कथा
आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन व्रत रखने का भी विशेष महत्व है और कहा जाता है कि कथा के बिना यह व्रत पूर्ण नहीं होता है। व्रत रखने वालों को इस दिन कथा अवश्य पढ़नी और सुननी चाहिए। कहा जाता है कि महर्षि वेद व्यास ने बाल्यकाल में अपने माता-पिता से भगवान के दर्शन की इच्छा व्यक्त की थी, लेकिन माता सत्यवती ने वेद व्यास की इच्छा को अस्वीकार कर दिया था।
तब वेद व्यास जिद करने लगे और उनके आग्रह पर उनकी माता ने उन्हें वन जाने की अनुमति दे दी। साथ ही कहा कि जब भी उन्हें घर की याद आए, वे वापस आ जाएं। इसके बाद वेद व्यास तपस्या के लिए वन में चले गए और वन में जाकर उन्होंने कठोर तपस्या की। इस तपस्या के पुण्य से वेद व्यास को संस्कृत भाषा में निपुणता प्राप्त हुई। इसके बाद उन्होंने चारों वेदों का विस्तार किया और महाभारत, अठारह महापुराण और ब्रह्मसूत्र की रचना की। महर्षि वेद व्यास को चारों वेदों का ज्ञान था। यही कारण है कि इस दिन गुरु की पूजा करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है।
गुरु पूर्णिमा केसे बनाए
उसके सानिध्य में गुरु की हर प्रकार से शिक्षा ग्रहण कर सकता है 21 जुलाई रविवार को गुरु पूर्णिमा व्यास पूर्णिमा इसलिए श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि अजर अमर भगवान वेदव्यास जी का जन्मदिन है क्योंकि इन्होंने चारों वेदों की 18 पुराने की संहिताओं की धार्मिक ग्रंथो की रचना की है उन्हीं की वजह से इनको प्रथम गुरु मानते हैं वैसे तो प्रत्येक व्यक्ति महिलाओं व पुरुषों ने अपनी भावनाओं के हिसाब से कई यह गुरुओं को गुरु मान रखा है जैसे धन धन सतगुरु, निरंकारी योग गुरु बाबा रामदेव स्वामी विवेकानंद जय गुरुदेव राधा स्वामी व कई एक संत महात्माओं को गुरु मान रखा है उनके प्रति शिष्य की अटूट आस्था है चाहे वह किसी भी धर्म का हो या मजहब का हो। हिंदू मुस्लिम सिख इसाई सभी गुरुओं का सम्मान है देश में और वै सभी सम्मान योग्य भी है।
गुरु गुरु ही होता है चाहे वह शिक्षा का गुरु हो कास्ट कल का गुरु नृत्य में संगीत का गुरु मूर्ति कला का गुरु शिल्प कला का गुरु वाद्य कला चित्रकला जितनी भी कलाएं हैं जो गुरु अपने शिष्य को सीखना है वह गुरु भी सम्मानित में पूजनीय है केवल विद्या से ही मतलब नहीं है गुरु पूर्णिमा के दिन ऐसे गुरुओं का भी आशीर्वाद लेना चाहिए उनके स्थान पर जाकर पूजा अर्चना वह जो भी यथा शक्ति दान दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद लेवें गुरु का आशीर्वाद बहुत श्रेष्ठ होता है जो भी कल है संसार में उसके माध्यम से चाहे वह गाड़ी का ड्राइवर भी क्यों ना हो जिस गुरु ने उसे कलाकार उसे ज्ञान दिया है उस कला से वह अपने-अपने परिवार की जीविका चलता है।
वह जीवन के सभी कार्य व उसे विद्या से निर्विघ्नम तरीके से संपन्न करता है गुरु परमात्मा के तुल्य माना गया है क्योंकि गुरु ज्ञान की गंगा है जीवन जिने की कला पहले तो माता-पिता पर परिवार सीखाता है जीवन की प्रथम पाठशाला है फिर गुरु जीवन जीने की कला बताता है सत्य बोलने वाला धर्म के अनुसार चलने वाला परिश्रम कर कर विनम्र रहो शांत रहो चरित्रवान बनो वह अनेक अनेक जीवन में काम आने वाला सूत्र बताते हैं।
यह गुरु तो आपने बना लिया, लेकिन इसके साथ-साथ एक दुसरा गुरु ब्राह्मण जाति के व्यक्ति को बनाना चाहिए उसे गुरु मंत्र लेना चाहिए वह ब्राह्मण गुरु योग्य होना चाहिए चरित्रवान निर्वाषिनी संतोषी ज्ञानवान धर्म परायण सुधाचरण वाले ब्राह्मण को गुरु बनाना चाहिए वह गुरु मंत्र लेना चाहिए।
अगर आप किसी ब्राह्मण को गुरु नहीं बनाएंगे तो जो भी आप भजन दान पुण्य कर रहे हैं वह आपको लाभ नहीं मिलेगा, यह आप किसी से भी पूछ सकते हो कि ब्राह्मण गुरु बनाना आवश्यक है या नहीं। यह बात शास्त्र में लिखि हैं।
गुरु ब्राह्मण को दानदाता अपनी इच्छा अनुसार अपनी श्रद्धा अनुसार यथाशक्ति दान देता है गुरु ब्राह्मण को दान लेने वाले खुशी खुशी से आशीर्वाद देना चाहिए अगर वैसा नहीं करता है व दुखी मन से दान लेता है दान में कमी निकलता है तो वह ब्राह्मण गुरु दान देने वाला पाप का भागीदार होगा दान देने वाला यथाशक्ति दान देकर मुक्त हो गया।
उसको पुण्य फल प्राप्त होगा।
इसलिए जो भी दानदाता दे उसे खुशी-खुशी स्वीकार करना चाहिए वह उसे धन की वंश की रोजगार की दीर्घायु की सभी प्रकार का उसे खूब आशीर्वाद देना चाहिए। दान देने वाले के दान हजम हो जाता है व संभव हो सके तो उसके प्रति भजन करें, इसीलिए शास्त्रों में गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देव महेश्वर गुरुर साक्षात परम ब्रह्म तस्मै गुरुवे नमः।
गुरु पूर्णिमा का महत्व
गुरु पूर्णिमा का मुख्य उद्देश्य गुरुओं का सम्मान करना और उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना है। गुरु हमें ज्ञान का मार्ग दिखाते हैं और जीवन में सफलता प्राप्त करने में हमारी मदद करते हैं। गुरु पूर्णिमा ज्ञान प्राप्ति का प्रतीक है। इस दिन हम अपने गुरुओं से ज्ञान प्राप्त करने का संकल्प लेते हैं और जीवन में सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने का वचन देते हैं। गुरु पूर्णिमा का दिन आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस दिन हम अपने गुरुओं से आशीर्वाद प्राप्त करके मोक्ष के मार्ग पर आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): ये लेख लोक मान्यताओं पर आधारित है। इस लेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनमानस शेखावाटी उत्तरदायी नहीं है।