राजेन्द्र शर्मा झेरलीवाला, वरिष्ठ पत्रकार व सामाजिक चिंतक
यह विहंगम दृश्य जिसमे असहाय गौवंश कूड़ा , करकट व लठ्ठ खाने को मजबूर को लेकर प्रदर्शित करता है । गौवंश की सेवा को लेकर गौशालाओं का संचालन हो रहा है जिसको सरकार अनुदान देने के साथ ही शेखावाटी के भामाशाह उदार मन से दान देते हैं । जब जिला मुख्यालय पर प्रशासन की नाक के नीचे गौवंश दयनीय स्थिति में जी रहा है तो जिले के अन्य कस्बों की तो बात करना ही बेमानी होगा ।
भाजपा सरकार के गठन होते ही प्रशासन ने जिले की गौशालाओं का निरीक्षण कर खानापूरी की लेकिन शायद सड़कों पर घूम रहा असहाय गौवंश प्रशासन को दिखाई नहीं दे रहा । गौशाला प्रबंधन की बात करें तो उनका कहना है कि सड़कों पर असहाय गौवंश घूम रहा है यह नगर परिषद की जिम्मेदारी है कि उनको गौशाला में भिजवाने की व्यवस्था करे यह कह कर अपनी नैतिक जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहा है । लगता है गौशाला संचालन की आड़ में गौवंश के साथ धोखा हो रहा है । गौ सेवक के रुप मे खुद को महिमा मंडित करने की खबरें बहुत देखने को मिलती है लेकिन यथार्थ के धरातल पर गौवंश की दुर्दशा इस दृश्य से देखकर लगाया जा सकता है । ऐसा नहीं कि गौ सेवको की कमी है या गौ सेवा का जज्बा लोगों में नहीं है । चिड़ावा के समीप जखोड़ा में सिमित साधनों से बीमार व घायल गौवंश का उपचार निःशुल्क करने की व्यवस्था गौ सेवको ने कर रखी है । जबकि उन गौशालाओं को जो सरकार से अनुदान लेने के साथ उनको प्रवासी भामाशाहों से समय समय पर आर्थिक सहयोग मिलता रहता है । उन भामाशाहों को भी इस बात पर विचार करना चाहिए कि उनके द्वारा दी गई आर्थिक सहायता का उपयोग गौवंश की सेवा में न होकर गौवंश की सेवा की आड़ में दिखावा तो नहीं हो रहा है ।
अंत में गौवंश की इस दयनीय स्थिति को लेकर जनता की अदालत में एक ज्वलंत प्रश्न रखने की कोशिश है कि आखिर गौवंश की इस दयनीय स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन है गौशाला संचालक, भामाशाह, प्रशासन या सरकार ?