स्वतंत्र पत्रकार – डा. भरत मिश्र प्राची
आपातकाल की घोषणा देश में विकट परिस्थियों में देश हित में करने का लोकतांत्रिक संवैधानिक अधिकार सरकार के पास सुरक्षित होता है जो उचित माना जा सकता है। स्वहित, सत्ता परिप्रेक्ष्य के संदर्भ में आपातकाल की घोषणा कभी भी उचित प्रक्रिया नहीं मानी जा सकती जिसका परिणाम अंततः प्रतिकूल हीं होता है। देश पर आपात स्थिति न होते हुये भी 25 जून 1975 को तत्कालीन केन्द्र की कांग्रेस सरकार द्वारा सत्ता के परिप्रेक्ष्य में की गई आपात काल की घोषणा अनुचित लोकतांत्रिक पहल थी जिसका आम चुनाव में प्रतिकूल असर देखने को मिला। इतिहास साक्षी है जब – जब भी जहां – जहां सत्ता का दुरूप्योग स्वहित में किया गया है , जनाक्रोश उभरा है, परिणाम प्रतिकूल रहा है। आज भी सत्ता के पावर का स्वहित में उपयोग ऐनकेन प्रकारेण प्रत्यक्ष अपत्यक्ष रुप से जारी है। कानून का नाम लेकर की जा रही सर्वाधिक विपक्ष पर एकतरफा कार्यवाही आज अघोषित आपातकाल का स्वरुप धारण कर चुका है। जिसे विपक्ष द्वारा संविधान की रक्षा किये जाने जैसे सवाल उभर कर सामने आने लगे है। देश के सर्वौच्य न्यायालय की भी उंगुलियां जांच ऐजेंसियों की कार्यवाही पर उठती नजर आने लगी है।
सन् 1975 में केन्द्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा आपातकाल की घोषणा को उचित नहीं ठहराया जा सकता। पर इस प्रसंग को लेकर आज सत्ता पक्ष द्वारा संविधान की हत्या दिवस मनाये जाने का विचार भी उचित नहीं माना जा सकता जब कि आपातकाल के बाद देश में कई बार सत्ता परिवर्तित हो चुकी है, जिसमें कांग्रेस से हटकर सरकार सत्ता असीन रही, और आज भी लगातार दो दशक से कांग्रेस से हटकर सरकार सत्ता पर आसीन रही है पर इस तरह के सवाल कभी उभर कर सामने नहीं आये । आज दो दशक बिताकर तीसरी बार कांग्रेस से अलग हटकर सरकार जो सत्ता आयी है जिसपर विपक्ष द्वारा संविधान बदले जाने के लगातार आरोप लगाये जा रहे है। जिसे संसद में पूर्व जैसा स्वयं के बलबूते का स्पष्ट जनादेश नहीं मिला है। जिसकी साख धीरे – धीरे देश में हो रही चुनावी प्रक्रिया में गिरती जा रही है, जिसके सामने विपक्ष भारी पड़ता जा रहा है,
जहां विपक्ष में कांग्रेस के साथ तमाम आपात काल से ग्रसित राजनीतिक दल खड़े नजर आ रहे है कही इस का परिवेश उपरोक्त प्रसंग का जनक तो नहीं जिसके माध्यम से सत्ता पक्ष विपक्ष की एकता को तोड़ने का प्रयास कररहा हो। यदि इस तरह की प्रक्रिया पूर्व घटित आपात काल की घटना को लेकर संविधान की हत्या दिवस मनाने का है तो इसे राजनीतिक प्रेरक प्रसंग माना जा सकता जो लोकतंत्र के हित में कदापि नहीं । सत्ता पक्ष के इस तरह के प्रसंग पर देश भर से प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई है । इस संदर्भ में 25 जून 1975 को देश भर में तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा घोषित आपातकाल जिसे लेकर संविधान की हत्या दिवस मनाये जाने की बात सत्ता पक्ष द्वारा की जा रही है, संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत उचित ठहराये जाने की भी बात अब उभर कर सामने आने लगी है। आपातकाल की घोषणा के स्वरूप पर चर्चा होनी चाहिए पर इस प्रसंग का राजनीतिकरण किया जाना देश हित में कदापि नही हो सकता। पूर्व घोषित 1975 का आपातकाल उचित नहीं है पर इसे संविधान की हत्या दिवस मनाये जाने का प्रसंग भी प्रांसगिक नहीं ।