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पाकिस्तान से आए कपड़े से बना पोशाक पहनेंगे भगवान:250 साल में पहली बार बदला रथ का पहिया; इकलौता मंदिर जहां होता है जगन्नाथ-जानकी विवाह


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पाकिस्तान से आए कपड़े से बना पोशाक पहनेंगे भगवान:250 साल में पहली बार बदला रथ का पहिया; इकलौता मंदिर जहां होता है जगन्नाथ-जानकी विवाह

पाकिस्तान से आए कपड़े से बना पोशाक पहनेंगे भगवान:250 साल में पहली बार बदला रथ का पहिया; इकलौता मंदिर जहां होता है जगन्नाथ-जानकी विवाह

अलवर : पूरे देश में राजस्थान के अलवर में एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां भगवान जगन्नाथ का विवाह जानकी मैया से करवाया जाता है। 5 दिनों तक चलने वाले इस कार्यक्रम में भगवान इंद्र के विमान पर सवार होकर जगन्नाथ जी की बारात (रथयात्रा) निकलती है। इसमें बड़ी संख्या में विदेशी सैलानी भी शामिल होते हैं। इस साल 15 जुलाई को निकलने वाली रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ और माता जानकी को पाकिस्तान की मिल से दुबई आए कपड़े से बनी पोशाक पहनाई जाएगी। ये पोशाक जयपुर में तैयार करवाई गई है। 250 साल में पहली बार रथ का पहिया बदला गया है।

पढ़िए 250 साल पुरानी परंपरा की कहानी…

भगवान इंद्र के विमान का पुराना एक पहिया खराब हो गया है। ये पहिया नया बनवाया गया है।
भगवान इंद्र के विमान का पुराना एक पहिया खराब हो गया है। ये पहिया नया बनवाया गया है।

मंदिर के पंडित देवेंद्र शर्मा बताते हैं- आयोजन के दौरान अलवर के पुराना कटला सुभाष चौक स्थित जगन्नाथ मंदिर से भगवान रूपबास के जगन्नाथ मंदिर जाते हैं। यहां 5 दिनों तक कार्यक्रम होते हैं। शर्मा का दावा है कि पुरी के जगन्नाथ मंदिर के बाद सबसे बड़ी यात्रा यही निकाली जाती है।

अलवर के जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ के साथ मां जानकी विराजमान हैं। यहां भगवान की विष्णु जी और माता जानकी की लक्ष्मी स्वरूप में पूजा की जाती है। इसी कारण यहां पिछले 250 साल से जगन्नाथ जी और जानकी का विवाह कराया जा रहा है।

ये है इंद्र के विमान का मॉडल। ये मंदिर में लगा है। यह असली विमान का छोटा रूप है।
ये है इंद्र के विमान का मॉडल। ये मंदिर में लगा है। यह असली विमान का छोटा रूप है।

बूढ़े जगन्नाथ के दर्शन भी होते हैं
पंडित देवेंद्र शर्मा ने बताया- पांच दिन तक शादी की रस्में पूरी होने के बाद यात्रा मार्ग से ही दोनों साथ मंदिर तक आते हैं। इन पांच दिनों तक कई धार्मिक आयोजन भी होते हैं। इस बार 15 जुलाई को भगवान जगन्नाथ-माता जानकी से विवाह कर वापस पुराना कटला मंदिर आएंगे। इसी पांच दिन के आयोजन के दौरान बूढ़े जगन्नाथ के दर्शन भी होते हैं। ऐसा साल में केवल दो ही बार होता है।

पाकिस्तान की मिल से आए कपड़े से बनी पोशाक भगवान को धारण कराई जाएगी।
पाकिस्तान की मिल से आए कपड़े से बनी पोशाक भगवान को धारण कराई जाएगी।

पाकिस्तान की मिल के कपड़े से बनी है पोशाक
पंडित देवेंद्र शर्मा बताते हैं- इस बार पाकिस्तान की मिल से तैयार हुए कपड़े से भगवान जगन्नाथ की पोशाक बनाई गई है। अजमेर के रहने वाले कमलेश ललवानी दुबई में कपड़े के व्यापारी हैं। उन्होंने पाकिस्तान की मिल से भगवान के लिए कपड़ा दुबई मंगवाया था। इसके बाद जयपुर की छोटी चौपड़ में भगवान की पोशाक तैयार की गई। इस कपड़े से जगन्नाथजी, मां जानकी और सीता-राम जी की पोशाक बनाई गई है। इसके बाद 15 जुलाई को यह पोशाक भगवान को धारण कराई जाएगी।

भगवान जगन्नाथजी के लिए भक्त ने दुबई से इत्र भेजा है।
भगवान जगन्नाथजी के लिए भक्त ने दुबई से इत्र भेजा है।

दुबई से आया इत्र
शादी के दिन भगवान को नई पोशाक पहनाने के साथ इत्र लगाया जाएगा। यह इत्र मूल रूप से इंदौर के रहने वाले व्यापारी रोहिताश भोमिया ने दुबई से भिजवाया है। इसकी खासियत है कि यह शुद्ध प्राकृतिक फूलों से बनाया गया है।

कोरोना में खराब हुआ था 250 साल पुराना पहिया
पंडित देवेंद्र शर्मा बताते हैं- 250 साल में पहली बार ऐसा हुआ है, जब भगवान जगन्नाथ के रथ का एक पहिया खराब हो गया है। इसे इस बार बदला गया है। कोरोनाकाल में देखरेख के अभाव में 2 साल में पहिया थोड़ा सा खराब हो गया था। ऐसे में इस साल इसे बदल दिया गया है। पहिए को अलवर में ही बनाया गया है। इसे भडकौल गांव के कारीगर ने शीशम की लकड़ी से बनाया है। एक पहिया बनाने में 3 महीने का समय लगा है। इस पूरे पहिए पर करीब डेढ़ लाख रुपए खर्च हुए हैं। इससे पहले ये पहिए पूर्व राजा ने ब्रिटेन से मंगवाए थे। तब से हर साल विमान की मरम्मत होती है।

तस्वीर 2023 की रथयात्रा की है। अलवर शहर में इस रथयात्रा के साथ श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ पड़ा था।

पूरी रात में निकलती है बारात
जगन्नाथजी की रथयात्रा शाम को शुरू होती है। करीब 6 किलोमीटर की यात्रा पूरी करने में पूरी रात निकल जाती है। तड़के करीब 4 से 5 बजे रथ यात्रा मंदिर पहुंचती है। पूरे शहर में मेला लगता है। रूपबास में मेले का रूप बड़ा होता है। बाकी जहां-जहां से रथ निकलता है, वहां-वहां पहले ही दुकानें, भंडारे व प्याऊ चलते रहते हैं। भक्त भगवान के दर्शन करने को आतुर रहते हैं।

शुरुआत में हाथी खींचते थे रथ
पंडित देवेंद्र शर्मा ने बताया कि शुरुआत में रथ को चार-चार हाथी खींचते थे। बाद में हाथी मिलने कम हो गए। अब पिछले कई दशक से हाथी की जगह ट्रैक्टर से खींचा जाता है। हर बार नया ट्रैक्टर रथ को खींचने के लिए आता है। कई भक्त नया ट्रैक्टर भगवान जगन्नाथ जी के मेले के अवसर पर ही खरीदते हैं। यात्रा सबसे पहले 1893 में निकलनी शुरू हुई थी। इस रथ की ऊंचाई करीब 30 फीट है। अलवर शहर के म्यूजियम में इस रथनुमा विमान का मॉडल भी लगा हुआ है। यह महाराजा विनय सिंह ने दिया था।

200 मीटर दूर से ही हो जाते हैं दर्शन
जगन्नाथजी के दो मंजिला इंद्र विमान के ऊपर भगवान जगन्नाथजी को देखने का सबसे अधिक आकर्षण होता है। विमान इस तरह बना हुआ है कि 200 मीटर दूर खड़े व्यक्ति को भगवान के दर्शन हो जाते हैं।

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